सूखी लाल मिर्च रज-तमात्मक तरंगों को अपनी ओर वेग से आकर्षित एवं घनीभूत कर उन्हें शीघ्रता से वातावरण में प्रक्षेपित करने में अग्रसर होती है । इसे अग्नि में जलाने पर इसमें घनीभूत रज-तम का उसी क्षण वायुमंडल में विघटन हो जाता है; इसलिए ऐसा नियम है कि ‘मिर्च से कुदृष्टि उतारते समय अग्नि निकट होनी अत्यावश्यक है’ । मिर्च की रज-तमात्मक तरंगें आकर्षित करने की गति राई की तुलना में अधिक होने के कारण स्थूलदेह और मनोदेह की कुदृष्टि उतारने में प्रायः मिर्च का उपयोग किया जाता है । नमक के आद्र्ताजन्य कोष के स्पर्श से मिर्च के कार्य करने की गति और बढ जाती है । मनोदेह की रज-तमात्मक तरंगों का उच्चाटन, मन की संदेहजन्य विचारप्रक्रिया को प्रतिबंधित करने में सहायक होता है । परिणामस्वरूप जीव तनावमुक्त हो जाता है । जो जीव विचारों की अधिकता से पीडित हैं, उनकी इस पद्धति से कुदृष्टि उतारने से अधिक मात्रा में लाभ होता है ।
१. कुदृष्टि उतारने की पद्धति
यह पद्धति, राई-नमक से कुदृष्टि उतारने की पद्धति के समान ही है । अधिक जानकारी हेतु यहा क्लिक करें ।
२. कुदृष्टि उतारने में लाल मिर्च का महत्त्व
अ. सूखी खडी लाल मिर्च से कुदृष्टि उतारने की सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया दर्शाने वाला चित्र
(अध्यात्मशास्त्र के अनुसार न्यूनतम ३ मिर्च लेनी होती हैं; परंतु सूक्ष्म-प्रक्रिया समझने हेतु चित्र में केवल एक मिर्च दिखाई गई है ।)
१. ‘सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में कष्टदायक स्पंदन : २ प्रतिशत’
२. ‘सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में स्पंदनों की मात्रा : मारक शक्ति २ प्रतिशत,आकर्षण शक्ति २.२५ प्रतिशत, कष्टदायक शक्ति २ प्रतिशत तथा विघटन शक्ति २.२५ प्रतिशत
३. अन्य सूत्र
- अनेक पदार्थ तमोगुणी होते हैं; परंतु मिर्च में रज-तम होने पर भी उसमें लोह-चुंबक की भांति वायुमंडल का तमोगुण आकर्षित करने की क्षमता सर्वाधिक होती है ।
- लाल मिर्च में तमोगुण आकर्षित करने की क्षमता होती है । कुदृष्टियुक्त मिर्च अग्नि में जलाने पर उसमें आकर्षित कष्टदायक शक्ति का विघटन होता है ।
- सूखी लाल मिर्च का उपयोग भोजन में भी किया जाता है । उस समय उसका मूल रज-तम गुण बना रहता है; परंतु, यहां मिर्च का कार्य देह को ऊर्जा की पूर्ति करना होता है ।
३. कुदृष्टि उतारने के लिए कष्ट की तीव्रतानुसार लाल मिर्च की संख्या
‘कष्ट की तीव्रता के अनुसार सूखी लाल मिर्च विषम संख्या में लें । आगे दी गई सारणी में कुदृष्टि लगने पर होनेवाले कष्ट तथा उन्हें दूर करने के लिए उतारते समय आवश्यक मिर्च की संख्या दी गई है ।
कष्टका स्वरूप लाल मिर्चकी | संख्या |
१. शरीर भारी होना, हाथ-पैरों में झुनझुनी होना, मितली | ३ |
२. अस्वस्थता में वृद्धि होना, अचानक पसीना छूटना, मन में अनिष्ट विचार आना | ५ |
३. बोलने पर नियंत्रण न होना, अनायास धुंधला दिखाई देना, मुंह से लार टपकना, गालियां देना, आत्महत्या करने की इच्छा होना | ७ |
४. मूच्र्छित होना, स्वयं में विद्यमान अनिष्ट शक्ति प्रकट होना, दूसरों की हत्या करने का मन करना | ९ |
(कष्टों के उपरोक्त लक्षण न दिखाई दें, तो मिर्च ३ से अधिक; परंतु विषम संख्या में अपनी सुविधानुसार लेनी चाहिए ।)
४. कुदृष्टि की तीव्रता कैसे पहचानें ?
कुदृष्टि उतारने के पश्चात जब नमक-मिर्च अंगारों पर डाले जाते हैं, उस समय सूखी खांसी आ रही है अथवा नहीं तथा दुर्गंध आ रही है अथवा नहीं, इससे कुदृष्टि लगने की मात्रा समझ में आती है ।
अ. जब सूखी खांसी आए तो समझें कि कुदृष्टि नहीं लगी है । भोजन बनाते समय जब हम मिर्च भूनते हैं, तब सूखी खांसी आती है । यदि सूखी खांसी न आए तो यह इस बात का लक्षण है कि कुदृष्टि लगी है । सूखी खांसी न आने का कारण यह है कि उस समय मिर्च का तीखापन अनिष्ट शक्तियों के स्पंदन नष्ट करने के लिए व्यय होता है । अर्थात कष्ट जितना तीव्र, सूखी खांसी की मात्रा उतनी ही अल्प होती है ।
आ. यदि दुर्गंध न आए तो कुदृष्टि नहीं लगी है और आए तो लगी है, ऐसे समझें ।
५. नमक, राई और लाल सूखी मिर्च, तीनों एकत्रित
नमक, राई और सूखी लाल मिर्च से कुदृष्टि उतारने की पद्धति एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार, नमक और लाल मिर्च से कुदृष्टि उतारने के समान ही है; केवल ‘राई’ यह सामग्री अतिरिक्त है । कुदृष्टि उतारते समय हाथ में लगभग दो चम्मच नमक, आधा चम्मच राई और विषम संख्या में सूखी लाल मिर्च लेनी चाहिए ।
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘कुदृष्टि (नजर) उतारने की पद्धतियां (भाग १) (कुदृष्टिसंबंधी अध्यात्मशास्त्रीय विवेचनसहित)?’