सारणी
४. धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदान करनेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
५. यमदीपदान की विधी हेतु आवश्यक सामग्री आर महत्त्व
६. यमदीपदान पूजनविधि और उसका शास्त्रीय आधार
८. पूजित दीप घरके बाहर दक्षिण दिशामें रखनेके परिणाम
९. यमदीपदान करनेके संदर्भमें सनातन आश्रम, पनवेलके संत प.पू. परशराम पांडे महाराजजी बताते हैं ।
१०. व्यापारियोंद्वारा किया जानेवाला द्रव्यकोष पूजन
११. धनत्रयोदशीके दिन स्वर्ण अथवा चांदीके नए पात्र क्रय करनेका शास्त्रीय कारण
‘धनत्रयोदशी’ दिनके विशेष महत्त्वका कारण यह दिन देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है । धनत्रयोदशी मृत्युके देवता यमदेवसे संबंधित व्रत है । यह व्रत दिनभर रखते हैं । व्रत रखना संभव न हो, तो सायंकालके समय यमदेवके लिए दीपदान अवश्य करते हैं ।
१. धनत्रयोदशी दिनविशेष
शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण त्रयोदशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात `धनत्रयोदशी’ । इसीको साधारण बोलचालकी भाषामें `धनतेरस’ कहते हैं । इस दिनके विशेष महत्त्वका कारण यह दिन देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है ।
२. धन्वंतरि जयंती
समुद्रमंथनके समय धनत्रयोदशीके दिन अमृतकलश हाथमें लेकर देवताओंके वैद्य भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए । इसीलिए यह दिन भगवान धन्वंतरिके जन्मोत्सवके रूपमें मनाया जाता है । आयुर्वेदके विद्वान एवं वैद्य मंडली इस दिन भगवान धन्वंतरिका पूजन करते हैं और लोगोंके दीर्घ जीवन तथा आरोग्यलाभके लिए मंगलकामना करते हैं । इस दिन नीमके पत्तोंसे बना प्रसाद ग्रहण करनेका महत्त्व है । माना जाता है कि, नीमकी उत्पत्ति अमृतसे हुई है और धन्वंतरि अमृतके दाता हैं । अत: इसके प्रतीकस्वरूप धन्वंतरि जयंतीके दिन नीमके पत्तोंसे बना प्रसाद बांटते हैं ।
३. यमदीपदान
दीपावलीके कालमें धनत्रयोदशी, नरकचतुर्दशी एवं यमद्वितीया, इन तीन दिनोंपर यमदेवके लिए दीपदान करते हैं । इनमें धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदानका विशेष महत्त्व है, जो स्कंदपुराणके इस श्लोकसे स्पष्ट होता है ।
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।। – स्कंदपुराण
इसका अर्थ है, कार्तिक मासके कृष्णपक्षकी त्रयोदशीके दिन सायंकालमें घरके बाहर यमदेवके उद्देश्यसे दीप रखनेसे अपमृत्युका निवारण होता है ।
इस संदर्भमें एक कथा है कि, यमदेवने अपने दूतोंको आश्वासन दिया कि, धनत्रयोदशीके दिन यमदेवके लिए दीपदान करनेवालेकी अकाल मृत्यु नहीं होगी ।
४. धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदान
करनेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
४ अ. दीपदानसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होना
दीप प्राणशक्ति एवं तेजस्वरूप शक्ति प्रदान करता है । दीपदान करनेसे व्यक्तिको तेजकी प्राप्ति होती है । इससे उसकी प्राणशक्तिमें वृद्धि होती है और उसे दीर्घ आयुकी प्राप्ति होती है ।
४ आ. यमदेवके आशीर्वाद प्राप्त करना
धनत्रयोदशीके दिन ब्रह्मांडमें यमतरंगोंके प्रवाह कार्यरत रहते हैं । इसलिए इस दिन यमदेवतासे संबंधित सर्व विधियोंके फलित होनेकी मात्रा अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक होती है । धनत्रयोदशीके दिन संकल्प कर यमदेवके लिए दीपका दान करते हैं और उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।
४ इ. यमदेवके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना
यमदेव मृत्युलोकके अधिपति हैं । धनत्रयोदशीके दिन यमदेवका नरकपर आधिपत्य होता है । साथही विविध लोकोंमें होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके संचारपर भी उनका नियंत्रण रहता है । धनत्रयोदशीके दिन यमदेवसे प्रक्षेपित तरंगें विविध नरकोंतक पहुंचती हैं । इसी कारण धनत्रयोदशीके दिन नरकमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंद्वारा प्रक्षेपित तरंगें संयमित रहती हैं । परिणामस्वरूप पृथ्वीपर भी नरकतरंगोंकी मात्रा घटती है । इसीलिए धनत्रयोदशीके दिन यमदेवके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए उनका भावसहित पूजन एवं दीपदान करते हैं । दीपदानसे यमदेव प्रसन्न होते हैं ।
संक्षेपमें कहें तो, यमदीपदान करना अर्थात दीपके माध्यमसे यमदेवको प्रसन्न कर अपमृत्युके लिए कारणभूत कष्टदायक तरंगोंसे रक्षाके लिए उनसे प्रार्थना करना ।
५. यमदीपदान की विधी हेतु आवश्यक सामग्री आर महत्त्व
यमदीपदान विधिमें नित्य पूजाकी थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हलदी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए । साथही आचमनके लिए ताम्रपात्र, पंचपात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं । यमदीपदान करनेके लिए हलदी मिलाकर गुंदे हुए गेहूंके आटेसे बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं ।
५ अ. गेहूंके आटेसे बने दीपका महत्त्व
धनत्रयोदशीके दिन कालकी सूक्ष्म कक्षाएं यमतरंगोंके आगमन एवं प्रक्षेपणके लिए खुली होती हैं । इस दिन तमोगुणी ऊर्जातरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगे अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं । इन तरंगोंमें जडता होती है । ये तरंगे पृथ्वीकी कक्षाके समीप होती हैं । व्यक्तिकी अपमृत्युके लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं । गेहूंके आटेसे बने दीपमें इन तरंगोंको शांत करनेकी क्षमता रहती है । इसलिए यमदीपदान हेतु गेहूंके आटेसे बने दीपका उपयोग किया जाता है ।
यमदीपदानके उद्देश्यसे की जानेवाली पूजाके लिए दीप स्थापित करनेके लिए श्रीकृष्णयंत्रकी रंगोली बनाते है । यमदीपदान हेतु इसप्रकार कृष्णतत्त्वसे संबंधित रंगोली बनानेका विशेष महत्त्व है ।
५ आ. यमदीपदानके समय दीप रखनेके
लिए कृष्णतत्त्वसे संबंधित रंगोली बनानेका शास्त्रीय आधार
दीपकी पूजनविधिसे पूर्व श्रीविष्णुके २४ नामोंसे उनका आवाहन कर विधिका संकल्प करते हैं । `श्रीकृष्ण’ श्रीविष्णुके पूर्णावतार हैं । यमदेवमें भी श्रीकृष्णजीका तत्त्व होता है । इस कारण पूजनके पूर्व किए जानेवाले आवाहनद्वारा विधिके स्थानपर अल्प समयमेंही यमदेवका आगमन तत्त्वरूपमें होता है । मृत्युसे संबंधित जडत्वदर्शक तरंगोंसे व्यक्तिको होनेवाला कष्ट, श्रीकृष्णजीके तथा यमदेवके अधिष्ठानके फलस्वरूप घट जाता है । यही कारण है कि, धनत्रयोदशीके दिन श्रीकृष्णजीका तत्त्व आकृष्ट करनेवाली रंगोली बनाते हैं । यमदेवमें शिवतत्त्व भी होता है । इस कारण शिवतत्त्वसे संबंधित रंगोली भी बना सकते हैं । इसका लाभ श्रीकृष्ण तत्त्वकी रंगोलीसे प्राप्त लाभ समानही होता है ।
६. यमदीपदान पूजनविधि और उसका शास्त्रीय आधार
प्रथम आचमन, प्राणायाम, उपरांत देशकालका उच्चारण किया जाता है । यमदीपदान के लिए संकल्प किया जाता है। संकल्प करते समय इस प्रकार उच्चारण किया जाता है ।
मम अपमृत्यु विनाशार्थम् यमदीपदानं करिष्ये ।
इसका अर्थ है, अपनी अपमृत्युके निवारण हेतु मैं यमदीपदान करता हूं ।
ताम्रपात्रमें रखा आटेका दीप प्रज्वलित किया जाता है । रंगोलीसे बनाए गए श्रीकृष्णयंत्रके मध्यबिंदुपर दीप रखा जाता है । दीपको चंदन, अक्षत, हलदी एवं कुमकुम अर्पित किया जाता है । दीपको पुष्प अर्पित किया जाता है। दीपको नमस्कार किया जाता है। इसके पश्चात् यह दीप उठाकर घरके बाहर ले जानेके लिए ताम्रपात्रमें रखा जाता है । दीपको घरके बाहर ले जाते हैं । घरके बाहर दीपको दक्षिण दिशाकी ओर मुख कर रखा जाता है ।
यमदेवताको उद्देशित कर प्रार्थना की जाती है ।
मृत्युना पाशदंडाभ्यां कालेन श्यामयासह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतां मम ।। – स्कंदपुराण
इसका अर्थ है, त्रयोदशीपर यह दीप मैं सूर्यपुत्रको अर्थात् यमदेवताको अर्पित करता हूं । मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें ।
जिन्हें श्लोककी जानकारी नहीं, वे अर्थको समझ कर मृत्युके पाशसे मुक्त होनेके लिए एवं अपने कल्याणके लिए प्रार्थना कर सकते हैं । प्रार्थना जितनी भावपूर्वक की जाती है, उतना ही लाभ अधिक होता है । दीपदान हेतु जल छोडा जाता है ।
७. दीपका पूजन करनेके परिणाम
(सनातनकी साधिका श्रीमती अंजली गाडगीळजी द्वारा बनाए सूक्ष्म-परीक्षणपर आधारित सूक्ष्म-चित्रद्वारा)
दीपको चंदन लगानेपर विष्णुतत्त्वकी नीली आनंददायी ज्योति दीपके मध्यमें विराजमान होती है । दीपको फूल अर्पण करनेपर नीली ज्योतिमें पीले बिंदुके रूपमें तेजका अस्तित्व दिखायी देता है । दीपको अक्षत अर्पित करनेपर नीली ज्योतिमें पीले बिंदुके रूपमें विद्यमान तेजतत्त्व क्रियाशील होता है । इस तेजतत्त्वद्वारा वातावरणमें तेजतत्त्वकी तरंगें वलयोंके रूपमें प्रक्षेपित होती हैं ।
८. पूजित दीप घरके बाहर दक्षिण दिशामें रखनेके परिणाम
दक्षिण दिशा यमतरंगोंके लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशासे यमतरंगें अधिक मात्रामें आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं ।
दक्षिण दिशासे यमतरंगोंका प्रवाह दीपकी ओर आकृष्ट होता है । यमतरंगोंका यह प्रवाह दीपके चारों ओर वलयांकित रूपमें फैलता है । यमतरंगोंके कारण कनिष्ठ प्रकारकी अनिष्ट शक्तियां दूर हट जाती हैं । यमतरंगोंके रूपमें आए यमदेवके दर्शन हेतु स्थानदेवता एवं वास्तुदेवता भी तत्त्वरूपमें उस स्थानपर आते हैं । इन देवताओंके आगमनके कारण वायुमंडल चैतन्यमय बनता है । वास्तुमें रहनेवाले सभी सदस्योंको इसका लाभ होता है ।
इस प्रकार यमतरंगोंके निकट आनेके कारण धनत्रयोदशीके दिन दीपका पूजन कर उसका यमदेवके लिए किया दान उन्हें अल्पावधिमें एवं सहजतासे प्राप्त होता है । परिणामस्वरूप अपमृत्युके लिए कारणभूत तरंगोंसे व्यक्तिकी रक्षा होती है ।
९. यमदीपदान करनेके संदर्भमें सनातन आश्रम,
पनवेलके संत प.पू. परशराम पांडे महाराजजी बताते हैं ।
यम, मृत्यु एवं धर्मके देवता हैं । हमें सतत भान होना आवश्यक है कि, प्रत्येक मनुष्यकी मृत्यु निश्चित है । ऐसे भानसे मनुष्यके हाथों कभी बुरा कर्म अथवा धनका अपव्यय नहीं होता । यमदेवके लिए दीपदान कर कहें कि, हे यमदेव, इस दीप समान हम सतर्क हैं, जागरूक हैं । जागरुकता व प्रकाशका प्रतीक दीप हम आपको अर्पित कर रहे हैं, इसका स्वीकार करें ।
प.पू. पांडे महाराजजीद्वाराद्वारा बताए अनुसार मृत्युका भान सदैव रखकर हम जीवन बिताएंगे, तो हमसे अवश्यही धर्मपालन होगा ।
१०. व्यापारियोंद्वारा किया जानेवाला द्रव्यकोष पूजन
व्यापारी लोगोंके लिए यह दिन विशेष महत्त्वका है । व्यापारी वर्ष, एक दीवालीसे दूसरी दीवालीतक होता है । नए वर्षकी लेखा-बहियां इसी दिन लाते हैं । कुछ स्थानोंपर इस दिन व्यापारी द्रव्यकोषका अर्थात तिजोरीका पूजन करते हैं ।
पूर्वकालमें साधनाके एक अंगके रूपमेंही व्यापारी वर्ग इस दिन द्रव्यकोषका पूजन करते थे । परिणामस्वरूप उनके लिए श्री लक्ष्मीजीकी कृपासे धन अर्जन एवं उसका विनियोग उचित रूपसे करना संभव होता था । इस प्रकार वैश्यवर्णकी साधनाद्वारा परमार्थ पथपर अग्रसर होना व्यापारी जनोंके लिए संभव होता है ।
धनत्रयोदशीके दिन विशेष रूपसे स्वर्ण अथवा चांदीके नए पात्र तथा नए वस्त्रालंकार क्रय किए जाते हैं । इससे वर्षभर घरमें धनलक्ष्मी वास करती हैं ।
११. धनत्रयोदशीके दिन स्वर्ण
अथवा चांदीके नए पात्र क्रय करनेका शास्त्रीय कारण
धनत्रयोदशीके दिन लक्ष्मीतत्त्व कार्यरत रहता है । इस दिन स्वर्ण अथवा चांदीके नए पात्र क्रय करनेकी कृतिद्वारा श्री लक्ष्मीके धनरूपी स्वरूपका आवाहन किया जाता है और कार्यरत लक्ष्मीतत्त्वको गति प्रदान की जाती है । इससे द्रव्यकोषमें धनसंचय होनेमें सहायता मिलती है ।
यहां ध्यान रखनेयोग्य बात यह है कि, धनत्रयोदशीके दिन अपनी संपत्तिका लेखा-जोखा कर शेष संपत्ति ईश्वरीय अर्थात सत्कार्यके लिए अर्पित करनेसे धनलक्ष्मी अंततक रहती है ।