सारणी
१. किस विधिमें पत्नी पतिकी बाइं ओर बैठे ?
२. पतिके दाहिने हाथको हस्तस्पर्श करते समय पत्नी अपनी चार उंगलियोंसे स्पर्श करती है, अंगूठेसे क्यों नहीं ?
३. पत्नी किस विधिमें पतिके दाहिने हाथको अपने दाहिने हाथकी अनामिकासे स्पर्श करे ?
४. पत्नी पतिके दाहिने हाथको अपनी किन चार उंगलियोंसे स्पर्श करे ?
१. किस विधिमें पत्नी पतिकी बाइं ओर बैठे ?
‘यज्ञकर्ममें पत्नी यजमानकी बाइं ओर बैठे । यज्ञकर्म तेजतत्व व ब्राह्मकर्मसे संबंधित है, इसलिए इस कर्ममें शिव बाह्मरूपमें प्रधान माने जाते हैं । इस विधिमें पत्नीको गौण स्थान दिया गया है । इसलिए उसका स्थान बाइं ओर रखा है; क्योंकि यज्ञकर्म ब्राह्मशक्तिसे अर्थात ज्ञानशक्तिसे संबंधित है । इस कर्ममें सत्त्वसे उच्च सत्त्व गुणकी आवश्यकता रहती है । इसलिए रजोगुणकी द्योतक कार्यरत आदिशक्तिको गौण, अर्थात बाइं ओर स्थान दिया जाता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २८.१.२००५, रात्रि ९.४५)
२. पतिके दाहिने हाथको
हस्तस्पर्श करते समय पत्नी अपनी चार
उंगलियोंसे स्पर्श करती है, अंगूठेसे क्यों नहीं ?
‘पतिके हाथको अपनी चार उंगलियोंसे स्पर्श कर पत्नी अपना अंगूठा आकाशकी दिशामें सीधा रखे । अंगूठा आकाशतत्वसे संबंधित है, अतः ब्रह्मांडमें विद्यमान श्री दुर्गादेवीकी निर्गुणसंबंधी तरंगें अंगूठेसे ग्रहण की जाती हैं । अंगूठा उच्चतत्त्वसे संबंधित है, इसलिए अंगूठेद्वारा ग्रहण किए गए निर्गुण तत्वके बलपर अथवा स्रोतपर शेष चार उंगलियोंसे प्रक्षेपित तरंगें कार्य करती हैं । इस प्रक्रियासे उच्चतत्त्व (आकाशतत्त्व) के बलपर कार्य होता है, इसलिए पूजाविधिमें जीवको अधिकाधिक ईश्वरीय (निर्गुण) तत्त्वका लाभ होनेमें सहायता मिलती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१.२००५, दोपहर १२.५०)
३. पत्नी किस विधिमें पतिके दाहिने
हाथको अपने दाहिने हाथकी अनामिकासे स्पर्श करे ?
जब पूजाविधिमें पति जलकी सहायतासे अर्घ्य देता है, तब पत्नी पतिके दाहिने हाथको अपने दाहिने हाथकी अनामिकासे स्पर्श करे; क्योंकि अनामिका आपतत्त्वसे संबंधित है । दो समान स्तरके तत्त्व आपसमें समरस हो जाते हैं, उसी प्रकार अनामिकासे प्रक्षेपित आपतत्त्वकी तरंगें अर्घ्य प्रदान करनेवाले घटकोंमें संक्रमित होती हैं, अतः अर्पित जलमें भी इन घटकोंके ईश्वरीय चैतन्य आपतत्त्वके प्रवाहके कारण शीघ्र ग्रहण होकर शीघ्र ही जलसे एकरूप होते हैं । इसके पश्चात यह जल तुलसीमें डालनेसे अथवा इसका उपयोग वास्तुशुद्धि हेतु करनेसे वातावरणमें चैतन्य प्रक्षेपित होता है ।
अनामिकासे प्रक्षेपित श्री दुर्गादेवीकी कार्यशक्तिकी आपदर्शक तरंगोंके कारण पतिकी हथेलीसे छोडी गई वस्तुका चैतन्य भी कार्यरत होता है । इस कारण इन घटकों से प्रक्षेपित पवित्रक अधिक प्रवाही बनकर संपूर्ण वातावरणमें प्रक्षेपित होते हैं तथा वातावरणकी सात्त्विकता को बढाते हैं । इससे चैतन्य भी बढता है, उस विशिष्ट कर्मसे इच्छित फलप्राप्ति होती है तथा जीवपर देवताओंकी कृपादृष्टि अल्पावधिमें होती है ।’
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१.२००५, दोपहर २.०७)
४. पत्नी पतिके दाहिने हाथको किस प्रकार स्पर्श करे ?
‘दाहिने हाथकी उंगलियोंसे आगे झुककर स्पर्श करना चाहिए । आगे झुकनेसे मणिपूर चक्रपर दबाव पडता है और वह कार्यरत होता है । इससे उसके आसपास स्थित पंचप्राण भी कार्यरत होते हैं तथा उंगलियोंसे संक्रमित तरंगोंको गति प्राप्त होती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१.२००५, दोपहर ३.०३)