महान विभूति संत गोस्वामी तुलसीदास के स्पर्श से पावन वस्तुएं !

गोस्वामी तुलसीदास (जन्म : वर्ष १५११, देहत्याग : वर्ष १६२३) ये उत्तरप्रदेशके महान संत हैं । उन्हें महर्षि वाल्मिकी ऋषि का अवतार कहा जाता है । वे रामचरितमानस, अयोध्याकांड, सुंदरकांड इत्यादि महान आध्यात्मिक ग्रंथों के रचयिता हैं । उनका आध्यात्मिक अधिकार सिद्ध करनेवाले एक प्रसंग यहां प्रकाशित कर रहे हैं ।

 

 

उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जनपद के राजापुर इस गोस्वामी तुलसीदास के गांव में उनके देहत्याग के पश्‍चात् उन्होंने भक्तों को दृष्टांत देकर यह बताया कि, ‘कालिंदी (यमुना) नदी में मैं प्रतिमा रूप में हूं । वहां से मुझे ले जाईएं तथामंदिर में रखकर पूजा करें ।’ तदनुसार भक्तों ने प्रतिमा ढूंढना आरंभ किया ।सप्ताह के पश्‍चात् भी प्रतिमा प्राप्त नहीं हो रही थी । उस समय तुलसीदास ने भक्तों को पुनः दृष्टांत देकर बताया कि, ‘जिस स्थान पर पानी में बबुले आ रहे हैं, उस स्थान पर मैं हूं ।’ तत्पश्‍चात् उनके घर के पास ही प्रभु किनारे पर यह प्रतिमा प्राप्त हुई । उपर्युक्त निर्देशित की गई उनकी जन्मकक्षा में रखी हुई स्वयंभू प्रतिमा !

 

संत तुलसीदास द्वारा राजापुर, चित्रकूट के संकटमोचन हनुमानमंदिर में स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा

 

गोस्वामी तुलसीदास की चरणपादुका !उनका भावपूर्ण दर्शन कर अपना जीवन कृतार्थ करेंगे !

 

संत तुलसीदास द्वारा पूजन किया गया शाळिग्राम ! उनके शिष्यों के वंशज आजभी उसकी नित्य, भावपूर्ण पूजा करते हैं।

 

तुलसीदास लिखित अयोध्याकांड इस ग्रंथ का उनके हस्ताक्षरवाला पन्ना ! उसमें विद्यमान चैतन्य ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करेंगे !

 

शिष्य तुलसीदास ने उनके गुरु नरहरिदास की उत्कट गुरुसेवा की । राजापुर,उत्तरप्रदेश के नरहरिदास का पवित्र महल मंदिर ।

 

राजापुर, चित्रकुट का ४०० वर्षों से अधिक प्राचीन यह पिपल का पेड स्वयंगोस्वामी तुलसीदास ने लगाया है ।

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