भगवतभक्ति का अनुपमेय उदाहरण अर्थात् संतश्रेष्ठ नामदेव महाराज !

छोटी आयु में संत नामदेव के पिताजी ने उन्हें बताया, ‘आज तू भगवान को प्रसाद चढाएगा ।’ उस दिन नामदेव ने केवल प्रसाद नही चढाया, तो भगवान के सामने रखे गए प्रसाद की ओर देखकर वे प्रतीक्षा करते रहें, कि भगवान कब आएगा तथा कब प्रसाद ग्रहण करेगा ! बाल नामदेव के इस भोले भाव से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष विठ्ठल उनके सामने प्रकट हुए तथा नामदेव द्वारा दिया गया प्रसाद भक्षण किया । ‘नामदेव कीर्तन करी, पुढे देव नाचे पांडुरंग’, इस रचना द्वारा संत नामदेव के भक्तिभाव का स्तर ध्यान में आता है ।

एक बार एक कुत्ता रोटी लेकर भाग गया । उसे सुखी रोटी खानी न पडें, इसलिए संत नामदेव उसके पीछे घी का बडगा लेकर भागते रहें । निरंतर ईश्‍वर के अनुसंधान में रहनेवाले संत नामदेव को उस कुत्ते में भी विठ्ठल का दर्शन हुआ था ।

संत नामदेव महाराज ने पूरा जीवन भगवान के नाम का प्रसार किया । भागवत धर्म की पताका पंजाब तक लेकर जाने का उनका कार्य उन्होंने अपने कर्तृत्व पर किया । संत नामदेव के साधारणतः  २५०० अभंग की ‘अभंगगाथा’ प्रसिद्ध है । उन्होंने हिन्दी भाषा में भी कुछ अभंगरचनाएं की है (अनुमान से १२५ पद की) । उनमें से लगभग ६२ अभंग ‘नामदेवजी की मुखबानी’ इस सीख पंथ के ‘गुरुग्रंथ साहेब’ में गुरुमुखी लिपी में प्रसिद्ध हैं । संत नामदेव को मराठी भाषा के प्रथम आत्मचरित्रकार तथा चरित्रकार माना जाता है । संत नामदेव ने ‘आदि’, ‘समाधी’ तथा ‘तीर्थावळी’ इन गाथाओं के तीन अध्यायों में संत ज्ञानेश्‍वर का चरित्र लिखा है ।

 

मानवजन्म का सार्थक करने का
उपदेश करनेवाले संत नामदेव के अभंग

शेकटिली पाळी तेव्हां मनुष्य जन्म । चुकलीया कर्म फेरा पडे ॥१॥
एक जन्मीं ओळखी करा आत्मारामा । संसार सुगम भोगूं नका ॥२॥

संसारीं असावें असोनि नसावें । कीर्तन करावें वेंळोवेळां ॥३॥
नामा म्हणे विठो भक्ताचिये द्वारीं । घेऊनियां करीं सुदर्शन ॥४॥

भावार्थ : ८४ लक्ष योनियों के पश्‍चात् जीव को मनुष्य जन्म प्राप्त होता है, किंतु उस समय यदि अधिक मात्रा में चुकाएं हुई, तो पुनः फेरा करना पडता है । अतः इस जन्म में ही आत्माराम से (ईश्‍वर से) पहचान करें ! संसार में रत होने की अपेक्षा उस में रहकर भी नहीं रहना तथा निरंतर नामजप करना । भक्त के द्वार पर उसका उद्धार करने के लिए विठ्ठल प्रतीक्षा ही कर रहा है ।

दाही दिशा मना धांकसीं तूं सईरा । न चुकती येरझारा कल्पकोटी ॥१॥
विठोबाचे नामीं दृढ धरीं भाक । तेर सांडी मृगजळ ॥२॥

भक्तिमुक्ति सिद्धि जोडोनियां कर । करिति निरंतर कळगणें ॥३॥
नामा म्हणे मना धरीं तूं विश्वास । मग गर्भवास नहे तुज ॥४॥

भावार्थ : हे मन, यदि तू दस दिशाओं को दौडेगा, तो भी जन्म-मृत्यु की परिक्रमा काल के अंत तक तेरा पीछा नहीं छोडेगी । विठ्ठल के नाम पर दृढ विश्‍वास रख ! क्योंकि यही नाम संसाररूपी मृगजल नष्ट कर भक्ति, मुक्ति तथा सिद्धी तेरे सामने हाथ जोडकर खडी करेगा । तु विश्‍वास रख, पश्‍चात् तुझे गर्भवास (पुनर्जन्म) नहीं ।

श्रीविठ्ठल की अनन्यसाधारण भक्ति करनेवाले भक्त शिरोमणी संत नामदेव महाराज ! पंढरपुर के उनके सदन में होनेवाली विठ्ठल प्रतिमा का भावपूर्ण दर्शन करेंगे ।

संत नामदेव महाराज के पंढरपुर के सदन में होनेवाले केशवराज मंदिर में विठ्ठल की नयनमनोहारी प्रतिमा

श्रीक्षेत्र गोपाळपुर में संत नामदेव के सदन में गोपालकृष्ण मंदिर में भाव जागृत करनेवाली मुरलीधर श्रीकृष्ण की प्रतिमा !
पंढरपुर के निकट श्रीक्षेत्र गोपाळपुर में संत नामदेव तथा संत जनाबाई के अस्तित्व से पावन हुआ संत नामदेव का सदन !

संत नामदेव ने जिस स्थान पर समाधी ग्रहण की, वह स्थान अर्थात् पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर की पहली सीढी !अपना अहं कभी भी वृद्धिगंत न हो, इसलिए संत नामदेव भगवान के चरणों में यही विलीन हुए ।

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