यज्ञायाग पर टिपण्णी करनेवालों को यह है मुंहतोड उत्तर !
सोमयाग के कारण परिसर का
कार्बन डायऑक्साइड तथा जिवाणुओं की मात्रा न्यून होती है ।
‘रत्नागिरी शहर के पटवर्धनवाडी, मारुति मंदिर में १६.१.२०१५ से २१.१.२०१५ इस कालावधी में माणगांव, सिंधुदुर्ग के श्री वासुदेवानंद स्वामीसमर्थ जनकल्याण न्यास द्वारा सोमयाग का आयोजन किया गया था । सोमयाग का वातावरण पर क्या परिणाम होता है, इस बात का अभ्यास करने हेतु गोगटे-जोगळेकर महाविद्यालय के रसायनशास्त्र विभाग की ओर से प्रा. मयुर देसाई तथा प्रा. विजय गुरव ने यज्ञ के प्रथम दिन से यज्ञ से कुछ दूरी पर वैज्ञानिक मापन करनेवाले यंत्र के माध्यम से वातारवरण में होनेवाले कार्बन-डाय ऑक्साइड की मात्रा का परीक्षण किया । वैज्ञानिक प्रयोग से यह सिद्ध हुआ है कि, ज्वलन के कारण हवा में कार्बन-डाय-ऑक्साईड वायु की मात्रा बढती है; किंतु होमहवन के पश्चात् इस परिसर के कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा न्यून हुई । जीवशास्त्र विभाग ने सोमयाग के परिसर में प्रा. डॉ. कुलकर्णी तथा उनके सहकारियों ने वातावरण के जिवाणुओं के परिवर्तन की मात्रा का अभ्यास किया । उस में यह सिद्ध हुआ कि, सोमयाग के परिसर में यज्ञ से पूर्व पाए गए जिवाणु यज्ञ के पश्चात् न्यून हुए । ’ (२७.१.२०१५)
कासारवाडी में २५ अप्रैल २०१३ से सर्व यज्ञों का राजा अर्थात् ‘साग्निचित् अश्वमेध महासोमयाग’ आरंभ हुआ था । यज्ञ के प्रथम दिन २५ अप्रैल दोपहर लगभग ४.३० बजे सोलापुर जनपद के साथ महाराष्ट्र के कुछ स्थानों पर पर्जन्यवृष्टि हुई । (अंनिस के समान बुद्धिप्रामाण्यवादियों को तमाचा ! यज्ञयागों पर टिपण्णी करनेवाले तथाकथित बुद्धिप्रामाण्यवादी तथा धर्मद्रोही यज्ञ का सामर्थ्य जान जाएंगे, वही सुदिन होगा ! – संपादक – दैनिक सनातन प्रभात)
इस पर्जन्यवृष्टि के संदर्भ में प.पू. नाना काळेगुरुजी ने बताया कि,‘‘इंद्र तथा वरुण देवता प्रसन्न हुए हैं, यह इस बात प्रमाणपत्र है । यदि सर्वत्र इस प्रकार के यज्ञ किए जाएंगे, तो अकाल की समस्या ही निर्माण नहीं होगी । ’’
यज्ञ के पूर्व कुछ दिन प.पू. नाना काळेगुरुजी ने वराहमिहीर के ‘वृष्टिगर्भधारणा तथा वृष्टिप्रसव’ सिद्धांत के अनुसार पर्जन्य के संदर्भ में संभावना व्यक्त की थी ।