संतों का कार्य आध्यात्मिक (पारलौकिक) स्तर का होने से लौकिक सम्मान एवं पुरस्कारों के प्रति उनमें कोई आसक्ति नहीं होती । अपितु मनोलय एवं अहं का लय होने से वे सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करनेवाले सम्मान एवं पुरस्कार के परे जा चुके होते हैं । ऐसा होनेपर भी केवल संत ही संत की पहचान कर सकते हैं और उनको ही अन्य संतों के कार्य का महत्त्व समझ में आता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आध्यात्मिक कार्य का महत्त्व ज्ञात होने से अनेक संतों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को पुरस्कारों के माध्यम से सम्मानित किया । उसके कुछ उदाहरण यहां दिए गए हैं ।
महर्षिजी कहते हैं, ईश्वर के प्रति हमारी पूर्णरूप से आस्था है । ईश्वर ने हमें जो बताया, उसी को हमने नाडीशास्त्र में लिखा । ईश्वर ने हमें बताया कि साधकों को कैलास जाकर अथवा वैकुंठ जाकर दर्शन करने की आवश्यकता नहीं है । उसके लिए हमने परम गुरुजी को ही (प.पू. डॉक्टरजी को) अवतार के रूप में पृथ्वीपर भेजा है । महर्षिजी कहते हैं, ईश्वर के प्रति हमारी पूर्ण आस्था है । ईश्वर ने हमें जो बताया, वही हमने इस नाडीशास्त्र में लिखा ।
ईश्वर ने हमें बताया कि साधकों को कैलास अथवा वैकुंठ के दर्शन करने की आवश्यकता नहीं । उसके लिए हमने परमगुरुजी को ही (प.पू. डॉक्टरजी को) अवतार के रूप में पृथ्वीपर भेजा है । उनके दर्शन करने से ही साधकों को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होनेवाला है । अतः गुरुचरणों को छोडकर कहींपर भी न जाईए ।
(संदर्भ : नाडीवाचन क्रमांक ६५, १०.३.२०१६)
– पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, ईरोड, तमिलनाडू (१२.३.२०१६, सायंकाल ५.१३)
सावंतवाडी के प.पू. भाऊ मसूरकरजी
द्वारा अध्यात्म के महनीय कार्य के विषय में
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का किया गया सम्मान !
१७.११.१९९९ को सावंतवाडी (जनपद सिंधुदुर्ग) के श्री विठ्ठल मंदिर की स्थापना को २५० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में अध्यात्मक्षेत्र में निहित महान विभूतियों को सम्मानित किया गया । इस अवसरपर सावंतवाडी के अध्यात्म के गाढे अभ्यासक प.पू. भाऊसाहेब मसूरकरजी ने सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी एवं उनकी धर्मपत्नी डॉ. (श्रीमती) कुंदा आठवले को अध्यात्म में उनके द्वारा किए गए महनीय कार्य के कारण सम्मानित किया । इस अवसरपर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के विषय में प.पू. भाऊजी ने कहा, जो सत्य को विश्व के सामने रखते हैं, वे संत होते हैं ! इस प्रकार के संत डॉ. आठवलेजी को मैने नहीं, अपित श्री विठ्ठलजी ने ही यहां लाया है !
(दैनिक पुढारी, २१.११.१९९९)
कोल्हापुर के प.पू. तोडकर महाराज द्वारा
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सम्मानित किया जाना !
अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को उनकी
धर्मपत्नी के साथ सिंहासनपर बिठाकर तथा
उनपर पुष्पवृष्टि कर उनका किया गया सम्मान !
२२.७.२००० को परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने कोल्हापुर के संत प.पू. तोडकर महाराज के द्रोणागिरी आश्रम का पहली बार अवलोकन किया । उस अवसरपर प.पू. तोडकर महाराज एवं उनके भक्तों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं उनकी धर्मपत्नी डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई को सिंहासनपर बिठाकर उनपर पुष्पवृष्टि की । तत्पशात शॉल एवं श्रीफल समर्पित कर उनको सम्मानित किया ।
(दैनिक सनातन प्रभात, २३.७.२०००)
आ. ढोल, ताशे और हनुमानजी के नामजप की
गूंज में और पालकी के साथ शोभायात्रा निकालकर
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को किया गया सम्मानित !
२४.११.२०११ को प.पू. तोडकर महाराज के द्रोणागिरी आश्रम में परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी एवं डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई के जानेपर उन दोनों का अत्यंत भावपूर्ण वातावरण में तथा सहस्रों भक्तों की उपस्थिति में स्वागत किया गया । उनके आगमन के उपलक्ष्य में आश्रम को रंगोली निकालकर तथा पांवडा बिछाकर सुशोभित किया गया था । द्रोणागिरी आश्रम में उनका आगमन होते समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई के मस्तकपर छत्र पकडा गया और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की जयजयकार की गई । इस अवसरपर प.पू. तोडकर महाराज ने प.पू. आठवले महाराजजी की जय ! अंकित जयजयकार के फलक को गैस के गुब्बारों को लगाकर उसको हवा में छोड दिया ।
तत्पश्चात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं डॉ. (श्रीमती) कुंदाताई के हस्तों पुष्पमालाएं और भगवे वस्त्र से सजाई गई दो पालकियों में वीर हनुमानजी की २ मूर्ति रखी गईं । उनमें से एक मूर्ति छोटे बच्चों के हनुमानजी की थी । तिसरी नाव की आकार की पालकी में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को बिठाया गया । इन तीनों पालकियों को आश्रम के निकट ही श्री विनायक मंदिर एवं शहाजी वाटिका की परिक्रमा करवाकर पुनः द्रोणागिरी आश्रम लाया गया । इस शोभायात्रा में ध्वज एवं पताका धारण किए हुए सहस्रों हनुमानभक्त सम्मिलित थे, ढोल और ताशे बजाए जा रहे थे और हनुमानजी के नाम का गजर किया जा रहा था । इस पालकी शोभायात्रा में दत्त, हनुमानजी, शिव-पार्वती, श्री गणेशजी, नामदेव महाराज एवं छत्रपति शिवाजी महाराज की वेशभूषा में उपस्थित छोटे बच्चे भी थे ।
(दैनिक सनातन प्रभात, २५.११.२००१)
ठाणे के प्रकाशन संस्थान जासूसी नजरें द्वारा
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को भारत गौरव रत्न से सम्मानित किया जाना
सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी द्वारा मराठी भाषा की रक्षा हेतु दिया गया योगदान तथा सनातन धर्म एवं अध्यात्म के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए सर्वोत्कृष्ट कार्य के कारण उनको भारत गौरव रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । यह विशेष मानद पुरस्कार जासूसी नजरें प्रकाशन संस्थान, हाजी मलंग बाडी, कल्याण, जनपद ठाणे इस संस्था द्वारा प्रदान किया गया ।
(दैनिक सनातन प्रभात, ३१.१२.२००६)
सोलापुर के शनैश्वर देवस्थान द्वारा
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को शनैश्वर कृतज्ञता धर्म पुरस्कारत प्रदान किया जाना
२५.५.२००९ को प. तपोनिधि शिवयोगी नंदगिरी महाराज के शनैश्वर देवस्थान की ओर से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को शनैश्वर कृतज्ञता धर्म पुरस्कार प्रदान किया गया ।
मुंबई के प.पू. योगविशेषज्ञ दादाजी वैशंपायन
सत्कर्म सेवा सोसाईटी की ओर से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को
योगविशेषज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार प्रदान किया जाना
२५.७.२०१० को प.पू. योगविशेषज्ञ दादादी वैशंपायन सत्कर्म सेवा सोसाईटी की ओर से परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी को सम्मानपत्र एवं १५ सहस्र रुपए की धनराशि प्रदान कर उनको योगविशेषज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया । इस सम्मानपत्र में कहा गया है, आपके द्वारा किए जा रहे विशेष सामाजिक, आध्यात्मिक इत्यादि उल्लेखनीय कार्य हेतु हमारे न्यास की ओर से आपको प.पू. योगविशेषज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है । आपका यह कल्याणकारी कार्य उत्तरोत्तर अखंडता से चलता रहे, यह शुभकामना !
ठाणे स्थित संस्था खानकाह सूफी दीदार
शाह चिश्ती के संस्थापक अध्यक्ष पू. डॉ. अनजाना चिश्ती की ओर से
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सनातन पद्मभूषण उपाधि से सम्मानित किया जाना
इस विषय में प्राप्त पत्र को आगे दे रहे हैं –
१९.३.२०१४
प्रति,
माननीय संपादक,
दैनिक सनातन प्रभात, रामनाथी, फोंडा, गोवा,
सनातन संस्था सनातन धर्म की सत्यता को अंग्रेजी, मराठी, हिंदी इत्यादि भाषाआें में जनमानसतक पहुंचाने हेतु सक्षम है । दुराचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार एवं अमानवीयता इन अपराधों का महाराष्ट्र एवं गोवा राज्य से समूल निमूर्लन होने हेतु चलाए जा रहे अभियानो में सनातन संस्था की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । देश में सुखशांति लाने हेतु तथा जनमानस में मानवतावादी सनातन धर्म की स्थापना करने हेतु डॉ. जयंत आठवलेजी अभिनंदन के पात्र हैं । हमारी संस्था की ओर से इसके पहले भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सम्मानित किया गया था । अब हम इस वर्ष उनको उनके कार्य हेतु विशेष पुरस्कार सनातन पद्मभूषण से सम्मानित कर कर रहे हैं । सनातन प्रभात नाम ही गुणयुक्त है । इस नियतकालिक द्वारा सदैव कट्टरवाद, आतंकवाद, उग्रवाद एवं नक्सलवाद का विरोध किया गया है । यह समाचारपत्र इस्लामविरोधी भी नहीं है तथा ईसाईमत का विरोधी भी नहीं है । जो कृत्य एवं लेखन जनजीवन में अशांति एवं द्वेष फैलाता है, साथ ही राष्ट्रीय एकतापर आघात करता है, उसका सनातन प्रभात द्वारा सप्रमाण विरोध किया गया है और वही राष्ट्रहित हेतु प्रशंसनीय पत्रकारिता का लक्षण है । इसीलिए ही हमारी संस्था की ओर से सनातन प्रभात को धर्मवीर पुरस्कार से विभूषित किया गया है ।
शुभकामनाआें के साथ
– डॉ. अनजाना चिश्ती, संस्थापक अध्यक्ष, खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती, हाजी मलंगबाही, बी.ओ. बाडी, कल्याण (पूर्व), जनपद ठाणे, महाराष्ट्र
अखिल मानवजाति के लिए अद्वितीय
कार्य करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य का
राज्य अथवा केंद्र शासन की ओर से संज्ञान नहीं लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण !
संतों का कार्य आध्यात्मिक स्तर का होता है । अतः व्यावहारिक स्तरपर कार्य करनेवाले शासन की सभा में संतों का महत्त्व क्या होगा ? अतः वास्तविक रूप से अखिल मानवजाति के विश्वव्यापी हिन्दू धर्मप्रसार एवं भारत में हिन्दू राष्ट्र के माध्यम से राष्ट्रनिर्माण का कल्याणकारी कार्य करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य का राज्य अथवा केंद्र शासन की ओर से संज्ञान लिया गया हो, इसका एक भी उदाहरण नहीं है । इसके विपरीत शासन की एार से संतों को उत्पीडन एवं कष्ट ही भोगने पडते हैं, साथ ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को इसी प्रकार के अनुभव प्राप्त हैं । कहते हैं ना, जो जहां उपजता है, वहां वह बिकता नहीं !, यही सत्य है !