रणझुंजार अधिवक्ता समीर पटवर्धन का रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में विशेष आदर !

सनातन के साधक श्री. समीर गायकवाड को
जमानत प्राप्त करने हेतु अविरत प्रयास
करनेवाले रणझुंजार अधिवक्ता समीर पटवर्धन का
रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में विशेष आदर !

रामनाथी (गोवा), २४ जून – स्वयं का विचार करने की अपेक्षा धर्मकार्य करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ जिस प्रकार हिन्दू समाज के भूषण हैं, उसी प्रकार हिन्दुत्वनिष्ठों द्वारा किए गए कार्य में आनेवाली बाधाएं दूर करनेवाले अधिवक्ताएं भी हिन्दु धर्मप्रेमियों के लिए सदैव ‘आदर्श’ हैं । हिन्दुत्वनिष्ठ तथा पुरो(अधो)गामियों के न्यायालयीन लडे में निर्भयता पूर्वक हिन्दुत्व का पक्ष प्रस्तुत करनेवाले तथा सनातन के साधक श्री. समीर गायकवाड की कारागृह से जमानत पर मुक्तता करनेवाले रणझुंजार धर्मवीर अधिवक्ता समीर पटवर्धन भी इसीलिए ही सभी के आदर्श सिद्ध हुए हैं । अतएव रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में आरंभ हिन्दु जनजागृति समिति के ‘कार्य तथा संघभाव वृद्धि’ कार्यशाला में धर्मवीर अधिवक्ता समीर पटवर्धन तथा उनकी पत्नी अधिवक्ता (श्रीमती) सुचित्रा पटवर्धन का आदर किया गया ।

(बायी ओर) अधिवक्ता समीर पटवर्धन का आदर करते हुए पू. नंदकुमार जाधव
(बायी ओर) अधिवक्ता (श्रीमती) सुचित्रा पटवर्धन का आदर करते हुए सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडये

सनातन के उत्तर महाराष्ट्र धर्मप्रसारक पू. नंदकुमार जाधव ने अधिवक्ता समीर पटवर्धन का आदर किया, तो सनातन की पश्चिम महाराष्ट्र धर्मप्रसारक सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडये ने अधिवक्ता (श्रीमती) सुचित्रा पटवर्धन का आदर किया । उस समय अधिवक्ता पटवर्धन के सुपुत्र शुभंकर पटवर्धन, सनातन की संत सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर तथा हिन्दु जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे उपस्थित थे ।

 

ईश्वर ने इस कार्य के लिए मुझे चुना, इसलिए
उसके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ! – अधिवक्ता समीर पटवर्धन

अधिवक्ता समीर पटवर्धन ने अपने वक्तव्य में यह कृतज्ञतापूर्वक उद्गार व्यक्त किए कि, ‘यह मेरा भाग्य है कि, इस परिवाद के निमित्त मैं सनातन संस्था के साथ जुडा हूं । अब मेरा जीवन सनातन संस्था को समर्पित है । ‘माझ्या मार्गावर चालून तर बघ, नाही तुला सर्वांचे केले तर सांग’, इस भगवान श्रीकृष्ण के वचन की अनुभूति मैंने इस परिवाद के कालावधी में की । ईश्वर ने विश्वास से मुझे इस कार्य के लिए चुना है, उसके लिए मैं उनके चरणों में कृतज्ञ हूं । इस कालावधी में हिन्दु विधीज्ञ परिषद के अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर तथा अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर ने मुझे अधिक सहकार्य किया । किंतु मेरा ही नाम आगे आया है । वास्तव में सभी की सहायता के कारण समीर गायकवाड की जमानत की प्रक्रिया पूर्ण हुई है ।’

श्रीमती सुचित्रा पटवर्धन ने अपना मनोगत व्यक्त करते समय बताया कि, ‘पति को प्रत्येक कार्य में सहकार्य करना, यह प्रत्येक हिन्दु स्त्री का कर्तव्य है । उसी के अनुसार मैं मेरे पतिदेव को सहकार्य करती हूं ।’

 

त्यागी एवं पती को धर्मकार्य में
पूरीतरह से सहकार्य करनेवाली अधिवक्ता
(श्रीमती) सुचित्रा पटवर्धन ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

श्रीमती सुचित्रा पटवर्धन स्वयं एक अधिवक्ता हैं, अपितु उन्हें प्रसिद्धी का बिलकूल मोह नहीं है । हर बार वह अधिवक्ता समीर पटवर्धन का साथ देने हेतु उनके पीछे छाया के अनुसार खडी रहती है । इस परिवाद के संदर्भ में अनेक सूत्रों के विषय में उन्होंने हमें समुपदेश किया । अधिवक्ता समीर पटवर्धन को परिवाद के कारण अपने बच्चों की ओर ध्यान देना सहज नहीं था; विंâतु श्रीमती पटवर्धन ने उस संदर्भ में कभी भी परिवाद(तक्रार)नहीं किया । वह समर्थरूप से बच्चों का पालन करती रही; इसलिए ही अधिवक्ता पटवर्धन को धर्मकार्य के लिए समय व्यतीत करना सभंव होता है ।

 

गुरू की आज्ञा के कारण धर्मकार्य कर सभी के
सामने आदर्श रखनेवाले शिष्य अधिवक्ता समीर पटवर्धन !

श्री. समीर गायकवाड की बंदी के पश्चात् ‘कोल्हापुर बार असोसिएशन’ के अधिवक्ताओं ने यह परिवाद लडने के लिए अस्वीकृती प्रदर्शित की थी । किंतु उस समय परिवाद लडने के लिए अधिवक्ता समीर पटवर्धन स्वयं अग्रेसर हुए । उनके गुरुदेव पू.इम्तियाजभाई महालकी ने उन्हें यह आज्ञा की थी कि, ‘श्री. समीर गायकवाड निरपराध हैं तथा आप को उनका परिवाद लडना चाहिए ।’ न्याय व्यवस्था के संदर्भ में आए कटू अनुभव के कारण अधिवक्ता पटवर्धन गत ११ वर्षों से वकालत से दूर रहे थे; किंतु गुरु का
आज्ञापालन करने हेतु उन्होंने यह परिवाद लडा । यह कार्य करते समय उन्हें अधिक मात्रा में विरोध का भी सामना करना पडा । कठीन प्रसंग आकर भी वे लगन से धर्मकार्य करते रहें । अधिवक्ता पटवर्धन केवल अधिवक्ता नहीं हैं, तो गुर्वाज्ञापालन करनेवाले शिष्य भी हैं ।

 

१७ जून को न्यायालय में सुनवाई हेतु जाने से पूर्व
अधिवक्ता समीर पटवर्धन को आई कुछ विशेष अनुभूतियां

१. १७ जून को प्रातः घर के गच्ची में खडे थे, उस समय एक ही समय पर ४ गरुडों का दर्शन हुआ । इससे पूर्व एक गरुड के दर्शन की अनुभूति उन्होंने ली थी; विंâतु एक ही समय पर ४ गरुडों का दर्शन
होना, यह पहली ही बार हुआ था ।

२. न्यायालय में जाने से पूर्व गणपति के दर्शन हेतु हम मंदिर गए थे । आंखे बंद करने के पश्चात् धुम्रवर्ण के भव्य गणेशमूर्ति का दर्शन हुआ था तथा यह ध्वनि आया कि, ‘श्री. समीर गायकवाड को जमानत प्राप्त हुई है ।’ मेरी आंखों में भावाश्रू आएं । तत्पश्चात् न्यायालय में पहुंचने से पूर्व ही एक अधिवक्ता ने भ्रमणभाष पर मुझे सूचित किया कि, ‘श्री. समीर गायकवाड को जमानत सम्मत हुई है ।’

३. अधिवक्ता समीर पटवर्धन को उनके गुरु ने बताया था कि, ‘श्री. समीर गायकवाड की मुक्तता निाqश्चत ही होगी ।’ उसी के अनुसार १७ जून को श्री. समीर गायकवाड को जमानत सम्मत हुई ।
अधिवक्ता समीर पटवर्धन के साथ सेवा करनेवाले साधकों ने इस प्रकार बताई उनकी गुणविशेषताएं

 

विनम्र, आज्ञाधारक, लगन तथा हिन्दु्त्व का
कार्य करनेवालों के प्रति भाव रखनेवाले अधिवक्ता समीर पटवर्धन ! – श्री. नागेश गाडे

१. अधिवक्ता पटवर्धन को इस बात का अधिक खेद था कि, सनातन संस्था के साधक श्री. समीर गायकवाड निरपराध होते हुए भी कारागृह में बंदी हैं । श्री. समीर गायकवाड को जमानत करने की लगन उन्हें निरंतर थी तथा उसके लिए ही वे प्रत्येक दिन गिन रहे थे ।

२. श्री. समीर गायकवाड के परिवाद के लिए अधिवक्ता पटवर्धन दिन के ८ घंटे अधिनियम का अभ्यास करते थे । ‘युक्तिवाद के समय कौनसा सूत्र प्रस्तुत करने से लाभ हो सकता है, वह किस प्रकार प्रस्तुत
कर सकते हैं ।’ इस बात का विचार वे निरतंर करते रहते थे । यदि रात्रि के समय पर कोई भी सूत्र उनके ध्यान में आया, तो वे उस संदर्भ का भी अभ्यास करते थे ।

३. उनकी आयु, शिक्षण तथा अनुभव मुझ से अधिक होते हुए भी मैंने बताएं सूत्रं भी वे नम्रतापूर्वक स्वीकारते थे । उनमें अंतर्भूत साधकत्व के कारण वे छोटी-छोटी बातें भी पूछते थे ।

४. एक बार एक सेवा हेतु कोई अधिवक्ता उपलब्ध नहीं था । उस समय अधिवक्ता पटवर्धन से पूछने के पश्चात् उन्होंने बताया कि, ‘आप मुझे प्रश्न पूछने की अपेक्षा कभी भी कहीं भी जाने के लिए कह सकते हैं । मैं जाऊंगा ।’ उस सेवा के लिए डेढ घंटा प्रवास कर वे कोल्हापुर में गए । उनकी इस बात से धर्मकार्य करनेवालों के प्रति उनका भाव क्या है, यह ध्यान में आया ।

 

अधिवक्ता पटवर्धन के सहवास में व्यतीत किए पल
अर्थात् कृतज्ञता के पल ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

१. अधिवक्ता समीर पटवर्धन को प्रसिद्धी का मोह नहीं है । गुर्वाज्ञा तथा धर्मकार्य के रूप में वे श्री. समीर गायकवाड का परिवाद लड रहे हैं ।

२. परिवाद के संदर्भ में अधिवक्ता पटवर्धन को अधिकांश बार धमकी के दूरध्वनि आएं । एक बार उन्हें कुछ लोगों ने घेरा डालकर परिवाद न लडने के संदर्भ में धमकी भी दी थी । न्यायालय के अन्य अधिवक्ताओं के साथ ही कुछ लोग उनसे श्री. समीर गायकवाड के परिवाद से विवाद करते थे; किंतु ईश्वर पर होनेवाली श्रद्धा, निर्भयता तथा आत्मविश्वास के कारण उन्हें इन सभी घटनाओं का सामना करना सहज हुआ है ।

३. अधिवक्ता पटवर्धन को यदि उनके युक्तिवाद के समय कुछ सूत्र प्रस्तुत करने के लिए बताया गया, तो वे उसका शांति से स्वीकार करते थे । साथ ही यदि कोई सूत्र ध्यान में नहीं आ रहा है, तो उसे ज्ञात कर उसका अभ्यास भी करते हैं ।

४. न्यायालय में पक्ष प्रस्तुत करते समय अधिवक्ता पटवर्धन निरंतर मेरा साथ देते थे । श्री. समीर गायकवाड को जमानत प्राप्त होने तक सर्व प्रक्रिया में हम दोंनों में संघभाव रहने के कारण यह प्रतीत होता है कि, हम दोनों पृथक नहीं है; अपितु एक ही है ।’ अधिवक्ता पटवर्धन के साथ परिवाद लडते समय अनेक प्रसंगों में उनसे बहुत सारी बातें सीखना प्राप्त हुआ । वह सभी पल कृतज्ञता के पल थे ।

५. परिवाद लडते समय उनकी जिव्हा पर फोड आना, तीव्र उष्णता प्रतीत होना, साथ ही ४-५ वर्ष में कभी भी नहीं हुई, ऐसी पुरानी व्याधी उद्भवना, इस प्रकार के आध्यात्मिक कष्ट प्रतीत हुए । उन कष्टों पर उन्हें बताएं गए नामजप, मुद्रा एवं उपाय वे नियमित रूप से तथा गंभीरता से पूरे करते थे । आजतक ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि, परिवाद के डेढ वर्ष की कालावधी में कष्टों के कारण वे न्यायालय में उपस्थित नहीं रहें ।

क्षणिकाएं

१. अधिवक्ता समीर पटवर्धन सभागृह में प्रवेश करते समय शिविरार्थियों ने प्रचंड घोषणाओं के साथ उनका स्वागत किया ।

२. अधिवक्ता पटवर्धन मनोगत व्यक्त करते समय वर्षा आरंभ हुई । उस समय उपस्थितों को ऐसा प्रतीत हुआ कि, ‘जैसे कि, अब वरुणदेवता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ।’

३. अधिवक्ता समीर पटवर्धन की गुणविशेषताएं बताते समय अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर का भाव जागृत हुआ था ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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