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१. सेवा की लगन
अधिक आयु होते हुए भी पू. आजी में सेवा करने की लगन अधिक मात्रा में हैं । उनमे अध्यात्मप्रसार करने का इतना उत्साह है कि, सेवा हेतु वे किसी भी इमारत के ४५ सोपान चढकर भी ऊपर जा सकती हैं ।
– श्रीमती आश्विनी ब्रह्मे तथा श्रीमती राधा सोनवणे, पुणे ।
२. निर्मलता
पू. आजी के मन में सामने की व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं रहती । उनका मन निर्मल है । केवल उनके दर्शन से ही हमारा मन निर्मल होता है ।
– कु. क्रांती पेटकर, पुणे
३. प्रेमभाव
अ. पू. आजी से पहली ही बार भेंट होने के पश्चात् भी उनमें विद्यमान अपनापन तथा प्रेमभाव के कारण ऐसा प्रतीत हुआ कि, उनके साथ पहले से ही पहचान है ।
– कु. वैभवी भोवर (आयु २० वर्ष), पुणे (२४.४.२०१७)
आ. पू. आजी मेरी सनातन माता हैं । उन्होंने मुझे साधना में आने के पश्चात् प्रसाद किस प्रकार करना, हाथ में जपमाल किस प्रकार पकडना तथा भाव किस प्रकार रख सकते हैं ? इस प्रकार की छोटी-मोठी बातें सीखार्इं ।
– श्रीमती आश्विनी ब्रह्मे, पुणे
इ. हमें मराठेआजी का आधार अधिक मात्रा में प्रतीत होता है ।
ई. पू. आजी जब वक्तव्य करती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि, उनके मुख से शब्दरूपी पुâल अथवा मोती ही बाहर निकलते हैं ।
– श्री. महेश पाठक, पुणे
४. ईश्वर के प्रति भाव
अ. पू. आजी ४ वर्ष पूर्व रामनाथी आश्रम में गई थी । उस समय उन्होंने प.पू. गुरुदेवजी के सत्संग में बताएं गएं सूत्रों की वही अच्छी तरह से जतन की है । उन्होंने उस वही में लिखें सूत्रं हम सभी को पढकर सुनाएं ।
आ. पू. आजी ने उनके घर के देवघर की रचना अत्यंत भावपूर्ण पद्धति से की है । वह देखकर अपनी भावजागृति होती है तथा हम पर आध्यात्मिक उपाय होते हैं ।
५. सूक्ष्म का पहचानने की क्षमता
पू. आजी से भेंट कर जाते समय सहसाधिका ने उन्हें मेरे संदर्भ में बताया कि, ये जनपदसेविका हैं । उस समय पू.आजी ने बताया कि, यह बात आप ने मुझे पहले क्यों नहीं बताई; किंतु इन्हें देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, इन में कुछ पृथक-सा है । इससे मुझे पू. आजी की सूक्ष्म का पहचान ने की क्षमता का अनुभव हुआ ।
६. पू. आजी में आध्यात्मिक उन्नत्तीदर्शक इस प्रकार परिवर्तन हुए
अ. पू. आजी का मुंह (चेहरा) आनंदी एवं प्रसन्न रहता है । उनकी ओर देखने के पश्चात् अपना उत्साह दुगना होता है ।
आ. उनकी त्वचा एकदम नरम हुई है । उनके शरीर को स्पर्श करने के पश्चात् चैतन्य की अनुभूति आती है ।
इ. ऐसा प्रतीत होता है कि, वह निरागस बालक के समान वक्तव्य करती है । साथ ही उनके आचार-विचारों में भी अधिक सहजता प्रतीत होती है ।
– कु. वैभवी भोवर
७. अनुभूति
पू. आजी को प्रत्यक्ष में सत्संग के सूत्रं ठीक तरह से सुनाई नहीं आते हैं;किंतु सत्संग के पश्चात् उस संदर्भ में चर्चा करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि, उन्हें सभी सूत्रं साधना के कारण अंतर्मन से ज्ञात हो रहे हैं ।
पू. आजी को अल्प सुनाई देता है । एक सत्संग के पश्चात् मैंने पू. आजी से पूछा कि, क्या आप को सत्संग में बताएं गए सूत्रं सुनाई दिएं ? ध्यान में आएं ? वास्तव में उस समय उन्हें सत्संग के सूत्रं ठीक प्रकार से सुनाई नहीं आएं थे । अपितु उन्होंने मुझे उस सत्संग के सभी सूत्रं ठीक तरह से बताई । उस समय मुझे प्रतीत हुआ कि, उन्हें साधना के कारण अंतर्मन से ही सभी सूत्रं ज्ञात हो रहे हैं ।
– श्रीमती राधा सोनवणे
८. पू. आजी ने साधकों को संदेश दिया है..
पू. आजी संतपदी विराजमान होने के पश्चात् सनातन की ओर से उनका आदर किया गया । उस समय साधकों को संबोधित कर पू. आजी ने बताया कि, अपने आसपास के तथा अपने साथ रहनेवाले सभी लोगों पर अधिक प्रेम करें ! प्रेमभाव ही अधिक बढाना चाहिए !
– कु. वैभवी भोवर (२४.४.२०१७)