सनातन की संत पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनराय द्वारा साधकों को बताएं गए अनमोल सूत्रं

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (२२.६.२०१७) के दिन सनातन की साधिका ४५ वी संत पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनराय को ७५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । उस अवसर पर उन्होंने साधकों को मार्गदर्शक सूत्रं बताएं । वे इस प्रकार हैं …..

पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनराय के चरणों में सनातन परिवार का कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार !

पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनराय

अधिकांश साधक उनकी साधना में आनेवाली बाधाएं पू. माता को (पू. मेनरायआजी को) कहते हैं । उस समय माता द्वारा बताएं गएं मार्गदर्शक सूत्र यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।

१. वास्तव में अग्निहोत्र का अर्थ है, साधना के अग्नि में अपनी दोषप्रवृत्तियों का होम करना ।

२. साधना के कारण आत्मा अपनी स्वरूप को प्राप्त करता है ।

३. जब निश्चय अस्थिर रहता है, उसी समय श्रद्धा वृद्धिंगत होती है ।

४. भावाश्रु से पाप धोया जाता है । भावाश्रु से पाप धोते-धोते मन निर्मल हो जाता है ।

५. साधक अपना समय व्यतीत न करें । जितना समय है, उतना समय अखंड नामजप करना । उसी मात्रा में साधना का विकास होगा ।

६. नामजप अथवा मंत्रजप जितना अंदर तक जाएगा, उतनी मात्रा में थकान न्यून होती है ।

७. जिस प्रकार से बीज उलटा अथवा सीधा किसी भी प्रकार बोनेसे उसे अंकुर आता ही है । उसी प्रकार हम कैसे भी नामजप करें, तो भी हमें अवश्य लाभ होगा ही; किंतु नामजप पर श्रद्धा होना आवश्यक है । उसके लिए हमारे सामने राम का जप करने की अपेक्षा मरा का जप करनेवाले वाल्या कोली का उदाहरण है । श्रद्धा से; किंतु अज्ञान के कारण उलटा नामजप करने के पश्चात् भी उसने ऋषिपद प्राप्त किया ।

संदर्भ : हिन्दी सनातन प्रभात

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