१. प.पू. डॉक्टरजी ने आश्रम में सर्वत्र घूमकर अस्वच्छता तथा
अव्यवस्थितपन दूर करने के कारण वास्तु में होनेवाले कष्ट न्यून होना
अस्वच्छता तथा अव्यवस्थितपन का निवास जहां रहेगा, वहां अनिष्ट शक्तियों का प्रादुर्भाव होना तथा प.पू. डॉक्टरजी ने आश्रम के अनिष्ट स्पंदनदूर करने के लिए स्वयं सफाई करना !
१. फोंडा आश्रम में होनेवाली अस्वच्छता, अव्यवस्थितपन के कारण वहां अनिष्ट शक्तियों के कष्ट अधिक मात्रा में थे । प.पू. डॉक्टरजी ने आश्रम में सर्वत्र घूमकर अस्वच्छता तथा अव्यवस्थितपन दूर करने के कारण वास्तु में होने वाले कष्ट न्यून हुए : वर्ष २००० में दैनिक सनातन प्रभात का मुख्यकार्यालय फोंडा, गोवा के आश्रम में (सुखसागर में) स्थलांतरित हुआ । फोंडा आश्रम में प.पू. डॉक्टर निवास करने के लिए आए, उस समय उस वास्तु में अत्यंत कष्ट थे । वहां संगणक में लगातार बिगाड, विद्युत पूर्ति करनेवाले यंत्रोंमें बिगाड, इस प्रकार की अनेक अडचनें आती थी । उस समय एक साधक ने आश्रम में होनेवाले कष्टों के संदर्भ में प.पू. डॉक्टरजी से पूछा । उस समय प.पू. डॉक्टरजी ने बताया कि, ‘वास्तु में प्रविष्ट अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव साधकों के साधना के प्रभाव की अपेक्षा अधिक है । अतः साधकों को साधना में वृद्धि करनी चाहिए । तत्पश्चात् १-२ दिन में ही प.पू. डॉक्टरजी आश्रम के प्रत्येक कक्ष में आए । उन्हें प्रत्येक स्थान पर अधिक मात्रा में अस्वच्छता, अडचनें, अव्यवस्थितपन दिखाई दिया । आश्रम के संपूर्ण परिसरमें होनेवाला अव्यवस्थितपन तथा अस्वच्छता प.पू. डॉक्टरजी ने स्वयं साधकोंके साथ दूर की । तत्पश्चात् वास्तु में होनेवाले कष्ट न्यून हुए ।
२. रामनाथी आश्रम के निर्माणकार्य के समय अत्यंत अस्वच्छता थी तथा प.पू.डॉक्टरजी ने आश्रम में सर्वत्र घूमकर स्वयं अस्वच्छता दूर करना : लगभग १५ वर्ष पूर्व प.पू. डॉक्टर सनातन के रामनाथी आश्रम में स्थलांतरित हुए ।प्रतिदिन प्रातः वे आश्रम में चल रहे निर्माणकार्य के बारे में पूछते थे । उनमें होनेवाली चुकाएं दर्शाकर उसमें सुधार लाते थे । वे साधकों को लगातार बताते थे कि, साधकों की साधना अच्छी नहीं हो रही है । साधकों में सुधार नहीं पाएं जा रहे थे । निर्माणकार्य में भी अनेक अडचनें आ रही थी । एक दिन प.पू.डॉक्टर आश्रम परिसर का निरीक्षण कर रहे थे, उस समय उन्हें अधिक मात्रा में कूडा तथा अस्तव्यस्त सामान दिखाई दिया । उस संदर्भ में उन्होंने इस से पूर्वभी साधकों को बताया था; किंतु उस बात की ओर अनदेखा किया गया । उसमें विशेष सुधार नहीं हुआ था । अतः एक दिन प.पू. डॉक्टरजी ने स्वयं आश्रमके पूरे परिसर में घूमकर ९ थैलियां कूडा इकठ्ठा किया तथा इधर-उधर पडा सामान व्यवस्थित किया । तत्पश्चात् अडचनों की मात्रा न्यून हुई ।
प.पू. डॉक्टरजी ने साधकों के निदर्शन में यह बात स्पष्ट की कि,अव्यवस्थितपन तथा अस्वच्छता का परिणाम सीधा साधकों की साधना पर,साथ ही अनिष्ट शक्तियों के कष्ट बढने में हो रहा है । साथ ही साधकों का दुर्लक्षित करनेवाला हिस्सा अपनी कृती द्वारा साधकों को सीखाया । वहीं बात नीचे उद्धृत किए गए लिखान में साधकों के उदाहरण से ध्यान में आती है ।
– श्री. धैवत विलास वाघमारे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।(९.१.२०१६)
२. कुछ छोटी छोटी बातें सेवाकेंद्र के रसोई में सीखने को प्राप्त हुई !
२ अ. दूध लेते समय उस पर आई मलई मुंह से फुंक लगाकर अथवा ऊंगलीसे दूर करने की अपेक्षा चम्मच से दूर करनी चाहिए ! : ‘दुध की मलई मुंह से फुंक लगाकर अथवा ऊंगली से दूध दूर नहीं करना’, यह सूत्र मेरे मन पर इतना अंकित हुआ था कि, तत्पश्चात् अभी तक मैंने कभी भी दूध फुंक लगाकर अथवा ऊंगली से दूर नहीं किया अथवा यदि किसी ने ऐसा प्रयास किया, तो उसे त्वरित उचित कृती का भान करवाती ।
२ आ. भोजन अथवा पानी के भगोने पर रखी थाली को नीचे रखते समय, बांफ की बाजू को नीचे रखने की अपेक्षा थाली उलटी बाजू से रखना ! : भोजन अथवा पानी के भगोने पर रखी थाली नीचे रखते समय यदि वाष्प की बाजु नीचे रखते है, तो किसी भी प्रकार का कूडा अथवा मिठ्ठी उस पर आसानी से चिपक सकती है एवं थाली पुनः भगोने पर रखते समय उससे चिपकी हुई धूल-मिठ्ठी भगोने में गिरने की संभावना है । अतः थाली के बांफ की बाजू को नीचे रखने की अपेक्षा उलटी बाजु नीचे रखनी चाहिए | यह कृती मैंने उस समय गुरुमाऊली से सीखी थी । वहीं कृती आज भी उसी तरह से करती हूं ।
३. लोग हमें ‘सनातनवाले’ इस नाम से पहचानते हैं,
अतः समाज में घूमते समय व्यवस्थित ही जाना चाहिए !
एक बार मैं सेवाकेंद्र से जनपद स्तरीय सत्संग हेतु जा रही थी । उस समय मेरे साथ एक साधक थे । वे गुरुमाऊली के पास यह कहने हेतु गए कि, ‘सत्संग के लिए जाता हूं ।’ किंतु १० से १५ मिनट पश्चात् वे आए । उस समय ‘केवल जाता हूं’, यह कहकर आने के लिए गए थे; किंतु इतनी देर क्यों हुई ?’, ऐसा विचार मेरे मन में आया ।’ उन्होंने मुझे बताया कि, ‘गुरुमाऊली को बताने के लिए गया था, किंतु उस समय मेरा सदरा(शर्ट) अस्तव्यस्त था, अतः गुरुमाऊली ने मुझे (साधक को) ‘सदरे को इस्त्री करने के लिए बताया ।’ साथ ही त्वरित गुरुमाऊली ने उन्हें उसके पीछे का कारण बताया कि, ‘‘हम समाज में जाते हैं, उस समय हम अपनी पहचान साथ लेकर नहीं जाते, तो संस्था की पहचान से जाते हैं । लोग हमें ‘सनातनवाले’ इस नाम से पहचानते हैं, अतः हमें बाहर जाते समय व्यवस्थित ही जाना चाहिए ।’’ इसलिए उस साधक को सदरे की इस्त्री करने के कारण बाहर आने के लिए देर हुई थी ।
– कु. नलिनी राऊत, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल ।