श्री विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी, गोवा : परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की चैतन्यमय भेंट का वर्णन विश्व श्री क्षेत्र महासंस्थान के श्री उमेश शर्मा ने उत्कट भावरूप में किया है । यह वर्णन सुनकर सब धर्माभिमानी चैतन्यतुषार से भीग गए । इसके पश्चात, वे बेंगलूरु जाने के लिए सभागार से निकले । तभी उन्हें पुनः सभागार में बुलाया गया । वहां अगले वक्ता का जारी मार्गदर्शन रोककर, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पूज्य डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा, श्री शर्मा जब अपना मनोगत व्यक्त कर रहे थे, तब उसे सुनकर सबको शांति और आनंद की अनुभूति हुई । क्योंकि, उनका आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत हो गया है । उनमें गुरुदेव के प्रति जो भाव है, उसके कारण वे संतपद पर शीघ्र विराजमान होंगे । इसके पश्चात, श्री शर्मा का सत्कार श्रीकृष्ण का चित्र देकर किया गया । उस चित्र को उन्होंने भावसहित सिर पर रखा । इसके पश्चात, पूज्य डॉ. पिंगळेजी ने उन्हें दीर्घ आलिंगन दिया । उस समय का दृश्य ऐसा लग रहा था, मानो दोनों में स्थित उत्कट भावस्वरूप ईश्वरीय तत्त्व ही आपस में मिल रहे हों ।
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में भोलेनाथ,
राम और कृष्ण का अभूतपूर्व संगम ! – उमेश शर्मा
१६ जून को अखिल भारतीय अधिवेशन के सायंकालीन सत्र में श्री उमेश शर्मा ने अपना मनोगत व्यक्त किया । उन्होंने कहा, परात्पर गुरु डॉक्टरजी की भेंट होने से पहले मुझे भीतर से लग रहा था कि वे एक महान शांतिस्वरूप, चैतन्यस्वरूप, शक्तिस्वरूप, ईश्वरस्वरूप हैं । मैं उनसे मिलने के लिए आतुर था । तभी, १५ जून को मैंने उन्हें पहली बार देखा । उस समय अनुभूति हुई कि वे राम और कृष्ण के समान लोककल्याणकारी अवतारी महापुरुष हैं । उनकी आंखों में अहिंसास्वरूप, प्रेमस्वरूप, धर्मस्वरूप, सत्यस्वरूप का अनुभव हुआ । उनमें भोलेनाथ, राम और कृष्ण का अपूर्व संगम हुआ है और वे परमेश्वरस्वरूप हैं । इसीलिए, परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ब्राह्मयज्ञ और क्षात्रयज्ञ आरंभ किया है । उनकी अद्भुत ज्ञानशक्ति से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अवश्य होगी । तबतक हमें धैर्यपूर्वक हिन्दू राष्ट्र के लिए प्रयत्नरत रहना चाहिए । स्मरण रखिए, जहां धैर्य है, वहीं अमृत-तत्व है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति श्रद्धा और भाव रखें । उनकी आज्ञा का पालन करें । साधना करते रहें । प्रतिपल हृदय में गुरु-तत्त्व भरकर, राष्ट्रकार्य के लिए समर्पित रहें ! हम सबको प्रेम, शांति और स्वर्गानुभूति देनेवाला हिन्दू राष्ट्र मिले, इसके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी के रूप में भगवान ही कार्य कर रहे हैं । इस मार्गदर्शन के समय सभागार सत्त्वकणों से भर गया था । सब लोग शांतिपूर्वक श्री शर्मा की वाणी से निकलनेवाला प्रत्येक शब्द सुन रहे थे और उसे अपने-अपने हृदय में संजो रहे थे । वहां, अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों का भाव जागृत हो रहा था । सबको ऐसा लग रहा था कि उनका यह मनोगत-कथन कभी समाप्त न हो । उस समय सभागार के बाहर वरुणदेव की जलवर्षा हो रही थी, तो सभागार के भीतर हिन्दुत्वनिष्ठ भगवान श्रीकृष्ण की कृपावर्षा का अनुभव कर रहे थे ।