षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के द्वितीय
दिवस के प्रथम सत्र में हिन्दुत्वनिष्ठों को श्रीकृष्ण की आनंदभेंट !
श्री विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी, गोवा : चंडीगढ के नेशनल सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च एंड कम्पैरिटिव स्टडी के अध्यक्ष एवं ब्रेनवॉश्ड रिपब्लिक पुस्तक के लेखक श्री. नीरज अत्रीजी ने निरपेक्ष भाव से, तथा राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेमवश अत्यंत लगन से एन.सी.ई.आर.टी. के इतिहासद्रोह के विषय में संघर्ष किया । इसलिए उन्होंने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है, ऐसी घोषणा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने की । १५ जून को सवेरे के सत्र में श्री. अत्रीजी के मार्गदर्शन उपरांत पू. डॉ. पिंगळेजी द्वारा यह घोषणा करने पर अधिवेशनस्थल पर उपस्थित सभी को आनंद हुआ । अनेक हिन्दुत्वनिष्ठों की भावजागृति हुई । पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि स्वयं भौतिकशास्त्र के विद्यार्थी होते हुए भी अपना घर-बार संभालकर राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेमवश श्री. अत्रीजी ने दृढता से किए फॉलोअप और उसके विषय में कर्तापन न होना, यह अनुकरणीय है । तदुपरांत श्री. अत्रीजी का पुष्पहार पहनाकर और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा भेंट देकर सत्कार किया गया ।
तदुपरांत श्री. अत्रीजी ने अत्यंत नम्रता से कहा कि मैंने कोई बडा कार्य नहीं किया है । मैंने अपना कर्तव्य निभाया । मुझे लगता था कि भावी पीढी को वास्तविक इतिहास ज्ञात हो और वर्तमान में हो रहा दिशाभ्रम रोका जाए ।
श्री. अत्रीजी के सहकारी एवं ब्रेनवॉश्ड रिपब्लिक पुस्तक के सहलेखक श्री. मुनीश्वर सागरजी ने कहा, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन के कारण हम हर्षोल्लासित हो गए हैं और श्री. अत्रीजी के आज के इस सत्कार समाचार के कारण यह आनंद द्विगुणित हो गया है । श्री. अत्रीजी को मैं निकट से जानता हूं और वे वास्तव में आध्यात्मिक दृष्टि से अगले चरण पर हैं ।
सनातन के ‘बोधकथा’ नामक तमिल ग्रंथ का प्रकाशन
सनातन एवं हिन्दू जनजागृति समिति समर्थित ‘बोधकथा’ नामक तमिल भाषा के ग्रंथ का विमोचन १५ जून को अधिवेशन में किया गया । इस ग्रंथ का विमोचन ‘स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन’ के अंतरराष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. सिरियाक वाले, श्रीलंका के हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. मरवनपुलावू सच्चिदानंदन, बांग्लादेश के ‘माइनॉरिटी वॉच’ के अधिवक्ता श्री. रवींद्र घोष एवं ओडिशा के भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक श्री. मुरली मनोहर शर्माजी के हस्तों किया गया ।