अनुक्रमणिका
वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी
वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । यह गोमाताका सवत्स अर्थात् उसके बछडेके साथ पूजन करनेका दिन है । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशीके नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है ।
गोवत्सद्वादशीका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
गोवत्सद्वादशीके दिन श्री विष्णुकी आपतत्त्वात्मक तरगें सक्रिय होकर ब्रह्मांडमें आती हैं । इन तरंगोंका विष्णुलोकसे ब्रह्मांडतक का वहन विष्णुलोककी एक कामधेनु अविरत करती हैं । उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए कामधेनुके प्रतीकात्मक रूपमें इस दिन गौका पूजन किया जाता है ।
गोवत्सद्वादशीको गौपूजन प्रातः अथवा सायंकालमें करनेका शास्त्रीय आधार प्रातः अथवा सायंकालमें श्री विष्णुके प्रकट रूपकी तरंगें गायमें अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें श्री विष्णुके अप्रकट रूपकी तरंगोंको १० प्रतिशत अधिक मात्रामें गतिमान करती हैं । इसलिए गोवत्सद्वादशीको गौपूजन सामान्यतः प्रातः अथवा सायंकालमें करनेके लिए कहा गया है ।
गोवत्सद्वादशीसे मिलनेवाले लाभ
गोवत्सद्वादशीको गौपूजन कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचरमें ईश्वरीय तत्त्वका दर्शन करनेकी सीख देता है ।
धनत्रयोदशी
शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण त्रयोदशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात ‘धनत्रयोदशी’ । इसीको साधारण बोलचालकी भाषामें ‘धनतेरस’ कहते हैं । धनत्रयोदशी देवताओंके वैद्य धन्वंतरिकी जयंतीका दिन है । आयुर्वेदके विद्वान एवं वैद्य (चिकित्सक) मंडली इस दिन भगवान धन्वंतरिका पूजन करते हैं और लोगोंके दीर्घ जीवन तथा आरोग्यलाभके लिए मंगलकामना करते हैं ।
धनत्रयोदशीके दिन स्वर्ण अथवा चांदीके नए पात्र क्रय करनेका अर्थात् खरीदनेका शास्त्रीय कारण धनत्रयोदशीके दिन लक्ष्मीतत्त्व कार्यरत रहता है । इस दिन स्वर्ण अथवा चांदीके नए पात्र क्रय करनेके कृत्यद्वारा श्री लक्ष्मीके धनरूपी स्वरूपका आवाहन किया जाता है और कार्यरत लक्ष्मीतत्त्वको गति प्रदान की जाती है । इससे द्रव्यकोषमें धनसंचय होनेमें सहायता मिलती है । यहां ध्यान रखनेयोग्य बात यह है कि, धनत्रयोदशीके दिन अपनी संपत्तिका लेखा-जोखा कर, शेष संपत्ति ईश्वरीय अर्थात् सत्कार्यके लिए अर्पित करनेसे धनलक्ष्मी अंततक रहती है ।
शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशीके नामसे पहचानी जाती है । इस तिथिपर भगवान श्रीकृष्णने नरकासुरका वध किया । तबसे यह दिन नरक चतुर्दशीके नामसे मनाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुरको उसके अंत समय दिए वरके अनुसार इस दिन सूर्योदयसे पूर्व जो अभ्यंगस्नान करता है, उसे नरकयातना नहीं भुगतनी पडती । अभ्यंगस्नान अर्थात सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर किया गया स्नान ।
अभ्यंगस्नानका महत्त्व
दीपावलीके दिनोंमें अभ्यंगस्नान करनेसे व्यक्तिको अन्य दिनोंकी तुलनामें ६ प्रतिशत सात्त्विकता अधिक प्राप्त होती है । सुगंधित तेल एवं उबटन लगाकर शरीरका मर्दन कर अभ्यंगस्नान करनेके कारण व्यक्तिमें सात्त्विकता एवं तेज बढता है । नरकचतुर्दशीके दिन अभ्यंगस्नान करनेसे शक्तिका २ प्रतिशत, चैतन्यका ३ प्रतिशत, आनंदका १ दशमलव पच्चीस प्रतिशत एवं ईश्वरीय तत्त्वका १ प्रतिशत मात्रामें लाभ मिलता है ।
दीपावलीकी कालावधिमें उबटन लगानेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
दीपावलीकी कालावधि उबटनके उपयोग हेतु अधिक पोषक है । उबटनका उपयोग करनेसे पूर्व उसमें सुगंधित तेल मिलाया जाता है । दीपावलीकी कालावधिमें ब्रह्मांडसे आप, तेज एवं वायु युक्त चैतन्यप्रवाहोंका पृथ्वीपर आगमन अधिक मात्रामें होता है । इसलिए वातावरणमें देवताओंके तत्त्वकी मात्रा भी अधिक होती है । इस कालावधिमें देहपर उबटन लगाकर उसके घटकोंद्वारा देहकी चैतन्य ग्रहण करनेकी संवेदनशीलता बढाई जाती है । इसलिए देवताओंके तत्त्वके चैतन्यप्रवाह व्यक्तिकी देहमें संक्रमित होते हैं, जिससे व्यक्तिको अधिकाधिक मात्रामें चैतन्यकी प्राप्ति होती है ।
यमतर्पण
श्री यमराज धर्मके श्रेष्ठ ज्ञाता एवं मृत्युके देवता हैं । प्रत्येक व्यक्तिकी मृत्यु अटल है । प्रत्येक व्यक्ति इस सत्यका स्वीकार करता है; परंतु असामयिक अर्थात् अकाल मृत्यु किसीको भी स्वीकृत नहीं होती । असामयिक मृत्युके निवारण हेतु यमतर्पणकी विधि बताई गई है । दीपावलीके कालमें यमलोकसे सूक्ष्म यमतरंगें भूलोककी ओर अधिक मात्रामें आकृष्ट होती हैं । इसलिए इस कालमें यह विधि विशेषरूपसे करनेका विधान है ।
नरक चतुर्दशीके दिन विविध स्थानोंपर दीप जलानेका कारण
नरक चतुर्दशीकी पूर्वरात्रिसेही वातावरण दूषित तरंगोंसे युक्त बनने लगता है । पातालकी अनिष्ट शक्तियां इसका लाभ उठाती हैं । वे पातालसे कष्टदायक नादयुक्त तरंगें प्रक्षेपित करती हैं । दीपोंसे प्रक्षेपित तेजतत्त्वात्मक तरंगें वायुमंडलके कष्टदायक रज-तम कणोंका विघटन करती हैं । इस प्रक्रियाके कारण अनिष्ट शक्तियोंका सुरक्षाकवच नष्ट होनेमें सहायता मिलती है ।
दीपावलीमें आनेवाली अमावस्याका महत्त्व
सामान्यतः अमावस्याको अशुभ मानते हैं; परंतु दीपावली कालकी अमावस्या शरदपूर्णिमा अर्थात् कोजागिरी पूर्णिमाके समान ही कल्याणकारा एवं समृद्धिदर्शक है ।
श्री लक्ष्मीपूजन
दीपावलीके इस दिन धन -संपत्तिकी अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मीजीका पूजन करनेका विधान है । दीपावलीकी अमावस्याको सद्गृहस्थोंके घर अर्धरात्रिके समय श्रीलक्ष्मी जी का आगमन होता है । घरको पूर्णतः स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दीपावली मनानेसे देवी श्री लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं और वहां स्थायी रूपसे निवास करती हैं । इसीलिए इस दिन श्री लक्ष्मीजीका पूजन करते हैं और दीप जलाते हैं । यथासंभव श्री लक्ष्मीपूजनकी विधि सपत्निक करते हैं ।
लक्ष्मी पूजनके लाभ
१. भक्तिभाव बढना : श्री लक्ष्मी पूजनके दिन ब्रह्मांडमें श्री लक्ष्मीदेवी एवं कुबेर देवताका तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक मात्रामें प्रक्षेपित होता है । इस दिन इन देवताओंका पूजन करनेसे व्यक्तिका भक्तिभाव बढता है और ३ घंटोंतक बना रहता है ।
२. अनिष्ट शक्तियोंका नाश होना : श्री लक्ष्मीपूजनके दिन अमावस्याका काल होनेसे श्री लक्ष्मीजीका मारकतत्त्व कार्यरत रहता है । पूजकके भावके कारण पूजन करते समय श्री लक्ष्मीजीकी मारक तत्त्वकी तरंगें कार्यरत होती हैं । इन तरंगोंके कारण वायुमंडलमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका नाश होता है । इसके अतिरिक्त दीपावलीके दिन श्री लक्ष्मी पूजन करनेसे पूजकको शक्तिका २ %, चैतन्यका २ %, आनंदका १.२५ % एवं ईश्वरीय तत्त्वका १ % लाभ मिलता है । इन लाभोंसे श्री लक्ष्मीपूजन करनेका महत्त्व समझमें आता है ।
अलक्ष्मी निःसारण
अलक्ष्मी अर्थात् दरिद्रता, दैन्य और आपदा । निःसारण करनेका अर्थ है बाहर निकालना । लक्ष्मीपूजनके दिन नई झाडू खरीदी जाती है । उसे ‘लक्ष्मी’ मानकर मध्यरात्रिमें उसका पूजन करते हैं । उसकी सहायतासे घरका कूडा निकालते हैं । कूडा सूपमें भरते हैं, कूडा अलक्ष्मीका प्रतीक है । उसे बाहर फेंका जाता हैं । अन्य किसी भी दिन मध्यरात्रिमें कूडा नहीं निकालते । कूडा बाहर फेंकनेके उपरांत घरके कोने–कोनेमें जाकर सूप अर्थात् छाज बजाते हैं ।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलिप्रतिपदाके रूपमें मनाई जाती है । जब भगवान श्री विष्णुने वामनदेवका अवतार लेकर बलिको पातालमें भेजते समय वर मांगनेके लिए कहा । उस समय बलिने वर्षमें तीन दिन पृथ्वीपर बलिराज्य होनेका वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावलीकी अमावस्या और बलिप्रतिपदा ।
बलिप्रतिपदा मनाने की पद्धति
बलिप्रतिपदाके दिन प्रातः अभ्यंगस्नानके उपरांत सुहागिनें अपने पतिकी आरती उतारती हैं । दोपहरको भोजनमें विविध पकवान बनाए जाते हैं । कुछ लोग इस दिन बलिराजाकी पत्नी विंध्यावलि सहित प्रतिमा बनाकर उनका पूजन करते हैं । इसके लिए गद्दीपर चावलसे बलिकी प्रतिमा बनाते हैं । इस पूजाका उद्देश्य है कि बलिराजा वर्षभर अपनी शक्तिसे पृथ्वीके जीवोंको कष्ट न पहुंचाएं तथा अन्य अनिष्ट शक्तियोंको शांत रखें । इस दिन रात्रिमें खेल, गायन इत्यादि कार्यक्रम कर जागरण करते हैं ।
असामायिक अर्थात् अकाल मृत्यु न आए, इसलिए यमदेवताका पूजन करनेके तीन दिनोंमेंसे कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्वका समापन दिन है । ‘यमद्वितीया’ एवं ‘भाईदूज’के नामसे भी यह पर्व परिचित है ।
यमद्वितीयाकी तिथिपर करने योग्य धार्मिक विधियां
१. भाई-बहनद्वारा यमादि देवताओंका पूजन किया जाता है ।
२. बहनद्वारा भाईका औक्षण अर्थात् आरती एवं सम्मान किया जाता है ।
३. भाईद्वारा बहनको उपहार दिया जाता है ।
भाईदूज मनानेसे भाई और बहनको प्राप्त लाभ
यमद्वितियाके अर्थात् भाईदूजके दिन ब्रह्मांडसे आनंदकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । इन तरंगोंका सभी जीवोंको अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक लाभ होता है । इसलिए सर्वत्र आनंदका वातावरण रहता है ।
इस दिन भाई-बहनको प्राप्त लाभ
१. इस दिन बहन अपने भाईके कल्याणके लिए प्रार्थना करती है । जिस प्रकार बहनका भाव होता है । उसके अनुसार बहनका भाईके साथ लेन-देन अंशतः घट जाता है ।
२. भाईदूजके दिन भाईमें शिवतत्त्व जागृत होता है । इससे बहनका प्रारब्ध एकसहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है ।
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’)
दीपावलीके समय तेलके दीप क्यों जलाए जाते हैं ?
दीपावलीमें प्रतिदिन सायंकालमें देवता और तुलसीके समक्ष, साथ ही द्वारपर एवं आंगनमें विविध स्थानोंपर तेलके दीप जलाए जाते हैं । यह भी देवी-देवताओं तथा अतिथियोंका स्वागत करनेका प्रतीक है । आजकल तेलके दीपके स्थानपर मोमके अथवा कुछ स्थानोंपर बिजलीके दीप जलाए जाते हैं; परंतु शास्त्रके अनुसार तेलके दीप जलाना ही उचित एवं लाभदायक है । तेलका दीप एक मीटर तक की सात्त्विक तरंगें खींच सकता है । इसके विपरीत मोमका दीप केवल रज-तमकणोंका प्रक्षेपण करता है । बिजलीका दीप वृत्तिको बहिर्मुख बनाता है । इसलिए दीपोंकी संख्या चाहे अल्प हो; तेलके दीपोंकी ही पंक्ति लगाएं ।
दिवाली के दिन पूर्ण घर में दीप जलाएं अथवा पूर्ण घर के सर्व ओर दीप जलाएं ?
दिवाली के दिन संपूर्ण घर में अथवा घर के चारों ओर दीप जलाने की आवश्यकता नहीं होती । प्रवेशद्वार के पास और पीछे का दरवाजा यदि हो, तो दोनों ओर दो दीप जलाएं । साथ ही पूजाघर में एक दीप जलाएं । प्रवेशद्वार के पास, कभी-कभी पिछले द्वार से वास्तु में लोगों के आने-जाने से उनके साथ में घर में आनेवाले कष्टदायक स्पंदनों का दीपों की ज्योति से प्रक्षेपित होनेवाले तेजतत्त्वात्मक तरंगों का उच्चाटन होता है, इसके साथ ही बाह्य वायुमंडल एवं वास्तु की भी शुद्धि होने में सहायता होती है । तेज का प्रसारण सूक्ष्म स्तर पर मर्यादित क्षेत्र में वेग से होने से संपूर्ण घर में और घर के आसपास दीप लगाने की आवश्यकता नहीं है ।
– श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
वर्तमानमें दीपावलीके अवसरपर पटाखे जलाकर अमावस्याकी रात्रिको प्रकाशमान करनेकी प्रथा प्रचलित हो गई है । आनंदके क्षणोंमें पटाखे जलानेकी प्रथा विदेशी है तथा इस प्रथाको हिंदु धर्मशास्त्रमें कोई आधार नहीं है । पटाखे जलानेके कारण धर्महानि साथ- साथ समाज, राष्ट्र एवं पर्यावरणकी भी व्यापक हानि होती है । पटाखोंका निर्माण करनेवाले उत्पादक एवं पटाखे जलानेवालोंका इस विषयमें प्रबोधन हेतु यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं ।
पटाखोंद्वारा देवताके चित्रोंका होनेवाला अनादर रोकिए !
आजकल हिंदु देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके चित्र अथवा नामवाले पटाखोंका उत्पादन बडी मात्रामें किया जाता है । दीपावली तथा अन्य उत्सवोंके अवसरपर पटाखे जलानेसे देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके चित्रोंका अनादर होता है । जहां देवताका नाम अथवा रूप होता है वहां उस देवताका तत्त्व अर्थात् सूक्ष्मसे देवताका आगमन होता है ! लक्ष्मीपूजनमें श्री लक्ष्मीपूजाके पश्चात् हम श्री लक्ष्मी, श्रीकृष्ण आदि देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके चित्रोंवाले पटाखे भी जलाते हैं । इस कारण उन चित्रोंकी चिंदयां उडती हैं तथा वे पैरोंतले आती हैं । इस प्रकारके अनादरसे देवताका अपमान होता है तथा इससे पाप लगता है । आस्था वेंâद्रका इस प्रकार अनादर करनेसे उनकी हमपर कृपा नहीं, अपितु अवकृपा ही होती है । पटाखे जलानेसे राष्ट्रपुरुषोंके चित्रोंका अनादर होता । यह उनके कार्यके प्रति कृतघ्नता ही है । इसलिए देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके नाम अथवा चित्रोंवाले पटाखे न जलाएं !