अनुक्रमणिका
- १. परीक्षण का उद्देश्य
- २. परीक्षण का स्वरूप
- ३. वैज्ञानिक परीक्षण में घटक की जानकारी
- ४. पिप प्रणाली का परिचय !
- ५. परीक्षण में बरती गई सावधानी
- ६. पिप परीक्षण के छायाचित्र तथा
निरीक्षण समझने की दृष्टि से उपयुक्त सूत्र
- ६ अ. मूलभूत प्रविष्टि (वातावरण का मूलभूत प्रभामंडल)
- ६ आ. मूलभूत प्रविष्टि की तुलना में वस्तु का प्रभामंडल दर्शानेवाले पिप छायाचित्र के रंगों की मात्रा बढने अथवा घटने का आधारभूत सिद्धांत
- ६ इ. प्रभामडंल में दिखनेवाले रंगों की जानकारी
- ६ ई. सकारात्मक स्पंदन
- ६ उ. नकारात्मक (कष्टदायक) स्पंदन
- ६ ऊ. पिप छायाचित्र में सामान्य की अपेक्षा उच्च सकारात्मक स्पंदनों के रंग दिखना श्रेष्ठ
- ६ ए. पिप छायाचित्र के रंगों की विशेषताआें का उस रंग की प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विशेषता से संबंध न होना
- ६ ऐ. पिप छायाचित्रों की तुलना करते समय परीक्षण में सहभागी साधिका, तथा पटल के रंग का विचार न किया जाना
- ७. निरीक्षण
- ८. निरीक्षणों का विवरण एवं निष्कर्ष
१. परीक्षण का उद्देश्य
विकार-निर्मूलन हेतु विविध उपचार-पद्धतियां प्रचलित हैं । इनमें मंत्रोपचार से विकार ठीक करने की पद्धति भी भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है । इस पद्धति का महत्त्व दर्शानेवाला वैज्ञानिक परीक्षण महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने २५.५.२०१६ को गोवा के सनातन आश्रम में किया । इसमें सामान्य जल और अभिमंत्रित किए गए जल (दाहिने हाथ की पांचों उंगलियां डुबोकर मंत्रोच्चारण किया गया जल) से वातावरण पर पडनेवाले प्रभाव का वैज्ञानिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन किया गया । यह परीक्षण वस्तु एवं व्यक्ति के ऊर्जाक्षेत्रका (ऑराका) अध्ययन करनेके लिए उपयुक्त पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी) प्रणाली की सहायता से किया गया ।
२. परीक्षण का स्वरूप
इस परीक्षण में एक पटल पर कांच का रिक्त पात्र (ग्लास) रखकर पिप प्रणाली द्वारा वातावरण के छायाचित्र लिए । यह मूलभूत प्रविष्टि है । तत्पश्चात सामान्य जल और अभिमंत्रित जलवाले कांच के पात्र एक-एक कर पटल पर रखकर पिप छायाचित्र लिए गए । इन छायाचित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चला कि दोनों जल से प्रक्षेपित स्पंदनों का वातावरण पर क्या प्रभाव पडता है ?
३. वैज्ञानिक परीक्षण में घटक की जानकारी
३ अ. सामान्य जल
सनातन के रामनाथी आश्रम का जल, अर्थात सामान्य जल ।
३ आ. अभिमंत्रित जल
मंत्रों द्वारा विकारों पर उपाय करनेवाले पुणे के डॉ. मोहन फडके ने प.पू. डॉक्टरजी को हो रहे विविध शारीरिक पीडाओं पर उपचार के रूप में कांच, तांबा अथवा चांदी के पात्र में जल लेकर उसमें दाहिने हाथ की पांचों उंगलियां डुबोकर कुछ मंत्रों का उच्चारण करनेके लिए कहा था । इस प्रत्येक मंत्र का २१ बार उपास्यदेवता से प्रार्थना कर उच्चारण करना था । इस प्रकार प.पू. डॉक्टरजी द्वारा मंत्र का उच्चारण कर अभिमंत्रित किए जल का उपयोग परीक्षण के लिए किया गया ।
४. पिप प्रणाली का परिचय !
४ अ. परीक्षण के घटकों की आध्यात्मिक विशेषताओं
का, वैज्ञानिक उपकरण अथवा प्रणाली द्वारा अध्ययन का उद्देश्य
किसी घटक में (वस्तु, वास्तु, प्राणी और व्यक्ति में) कितने प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन हैं, वह घटक सात्त्विक है कि नहीं, साथ ही वह आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक है अथवा नहीं, यह बताने हेतु सूक्ष्म ज्ञान आवश्यक होता है । संत सूक्ष्म ज्ञान समझ सकते हैं । इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदन का अचूक निदान कर सकते हैं । श्रद्धालु और साधक संतों के बताए शब्द को प्रमाण मानकर उसपर श्रद्धा रखते हैं; परंतु बुद्धिजीवियों को शब्द प्रमाण नहीं, अपितु प्रत्यक्ष प्रमाण की आवश्यकता होती है । प्रत्येक विषय वैज्ञानिक जांच द्वारा, अर्थात यंत्र द्वारा सिद्ध कर दिखाने पर ही उन्हें वह मान्य होती है ।
४ आ. पिप प्रणाली की सहायता से घटकों के सकारात्मक
एवं नकारात्मक स्पंदन रंगों के माध्यम से दिखाई देने की सुविधा होना
इस प्रणाली से हम किसी घटक (वस्तु, वास्तु, प्राणी और व्यक्ति) का सामान्यतया आंखों से दिखाई न देनेवाला रंगीन प्रभामंडल (ऑरा) देख सकते हैं । पिप संगणकीय प्रणाली को वीडियो कैमरे से जोडकर उसके द्वारा वस्तु, वास्तु अथवा व्यक्ति का ऊर्जाक्षेत्र विविध रंगों में देखा जा सकता है । इसमें सकारात्मक और नकारात्मक स्पंदन रंगों के माध्यम से देखे जा सकते हैं ।
५. परीक्षण में बरती गई सावधानी
अ. इस परीक्षण हेतु पिप छायाचित्र लेने के लिए विशिष्ट कक्ष (कमरे) का उपयोग किया गया । इस कक्ष की भीत, छत आदि के रंगों का जल के प्रभामंडल पर प्रभाव न पडे; इसलिए भीत, छत आदि को श्वेत रंग दिया था ।
आ. संपूर्ण जांच के समय कक्ष की प्रकाशव्यवस्था एक समान रखी गई थी, तथा कक्ष के बाहर की हवा, प्रकाश, उष्मा का कक्ष की जांच पर प्रभाव न पडे, इसलिए जांच के समय कक्ष बंद रखा गया था ।
६. पिप परीक्षण के छायाचित्र तथा
निरीक्षण समझने की दृष्टि से उपयुक्त सूत्र
६ अ. मूलभूत प्रविष्टि (वातावरण का मूलभूत प्रभामंडल)
परीक्षण में किसी घटक के कारण (उदा. इस परीक्षण में अभिमंत्रित जल के कारण) वातावरण में हुए परिवर्तन का अध्ययन करने हेतु उस घटक के पिप छायाचित्र लिए जाते हैं; पर वातावरणमें निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं । इसलिए किसी घटक का परीक्षण करने के पूर्व जहां घटक रखा जाएगा, उस वातावरण का (उदा. इस परीक्षण में कांच का एक रिक्त पात्र (ग्लास) पटल पर रखकर उस वातावरण का) पिप छायाचित्र लेना पडता है । इसे मूलभूत प्रविष्टि कहते हैं । तदुपरांत घटक के पिप छायाचित्र की मूलभूत प्रविष्टि से (वातावरण का मूलभूत प्रभामंडल दर्शानेवाले पिप छायाचित्र से) तुलना करने पर उस घटक के कारण वातावरण में हुआ परिवर्तन समझ में आता है ।
६ आ. मूलभूत प्रविष्टि की तुलना में वस्तु का प्रभामंडल दर्शानेवाले
पिप छायाचित्र के रंगों की मात्रा बढने अथवा घटने का आधारभूत सिद्धांत
परीक्षण हेतु घटक (उदा. इस परीक्षण में अभिमंत्रित जल) रखने से पूर्व (मूलभूत प्रविष्टि की) तुलना में घटक रखने के उपरांत प्रभामंडल मे रंग बढते अथवा घटते हैं । यह बढना-घटना उस घटक से प्रक्षेपित होनेवाले उस रंग से संबंधित स्पंदनों के अनुसार होता है, उदा. परीक्षण के लिए घटक रखने पर यदि उससे बडी मात्रा में चैतन्य के स्पंदन प्रक्षेपित हो, तो प्रभामंडल में पीला रंग बढता है । यदि चैतन्य के स्पंदनों का प्रक्षेपण न हो अथवा अन्य स्पंदनों की तुलना में अल्प हो, तो प्रभामंडल में पीला रंग घटता है । (यह ध्यान में रख सूत्र ७ अ. निरीक्षण १ और ७ आ. निरीक्षण २ में दी गई सारणियां पढें ।)
६ इ. प्रभामडंल में दिखनेवाले रंगों की जानकारी
परीक्षण की वस्तु (अथवा व्यक्ति के) पिप छायाचित्रों में दिखनेवाले प्रभामंडल के रंग उस वस्तु के ऊर्जाक्षेत्र के विशिष्ट स्पंदन दर्शाते हैं । प्रभामंडल के प्रत्येक रंग के विषय में पिप संगणकीय प्रणाली के निर्माताआें द्वारा प्रकाशित कार्यपुस्तिका में दी (मैन्युअलमें दी) जानकारी तथा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए सैकडों परीक्षणों के अनुभव के आधार पर प्रत्येक रंग कौनसे स्पंदन दर्शाता है ?, यह निश्चित किया है । वह सूत्र ७ अ. निरीक्षण १ में दी सारणी के दूसरे स्तंभ में दिया है ।
६ ई. सकारात्मक स्पंदन
पिप छायाचित्र के हलके गुलाबी, तोतापंखी, नीला-सा श्वेत, पीला, गहरा हरा, हरा, नीला और जामुनी रंग क्रमशः आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक लाभदायक से अल्प लाभदायक स्पंदन (रंग) दर्शाते हैं । इन सभी आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक स्पंदनों को (रंगों को) यहां एकत्रित रूप से सकारात्मक स्पंदन संबोधित किया है ।
६ उ. नकारात्मक (कष्टदायक) स्पंदन
पिप छायाचित्र में राख समान रंग, गुलाबी, नारंगी और भगवा रंग क्रमशः आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक कष्टदायक से अल्प कष्टदायक स्पंदन दर्शाते हैं । इन सभी आध्यात्मिक दृष्टि से कष्टदायक स्पंदनों को (रंगों को) एकत्रित रूप से नकारात्मक स्पंदन संबोधित किया है ।
६ ऊ. पिप छायाचित्र में सामान्य की
अपेक्षा उच्च सकारात्मक स्पंदनों के रंग दिखना श्रेष्ठ
पिप छायाचित्र में उच्च सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक तोतापंखी अथवा नीला-सा श्वेत रंग दिखाई देने लगें, तो कभी-कभी पीले, गहरा हरे अथवा हरे, इन सामान्य (साधारण) सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंगों की मात्रा घट जाती है अथवा कभी-कभी पूर्णतः दिखाई नहीं देती है । इसे अच्छा माना जाता है; क्योंकि सामान्य सकारात्मक स्पंदनों का स्थान उससे भी उच्च स्तर के सकारात्मक स्पंदन ले लेते हैं ।
६ ए. पिप छायाचित्र के रंगों की विशेषताआें का
उस रंग की प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विशेषता से संबंध न होना
पिप संगणकीय प्रणाली के निर्माताआें ने पिप छायाचित्र में नकारात्मक स्पंदनों के लिए भगवा और नारंगी रंग निर्धारित किए हैं । इसका और उन रंगों की प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विशेषता का (उदा. भगवा रंग त्याग एवं वैराग्य का प्रतीक है) कोई संबंध नहीं है ।
६ ऐ. पिप छायाचित्रों की तुलना करते समय परीक्षण में
सहभागी साधिका, तथा पटल के रंग का विचार न किया जाना
यह वातावरण के प्रभामंडल का परीक्षण होने के कारण पिप छायाचित्र क्र. २ और ३ की तुलना मूलभूत प्रभामंडल से (अर्थात छायाचित्र क्र. १ से) करते समय परीक्षण में रखे कांच के ग्लास तथा पटल के रंग का विचार नहीं किया गया है ।
टिप्पणी : छायाचित्रों में दिखनेवाले विविध रंगों की मात्रा निर्धारित करने के लिए पिप छायाचित्र पर संगणकीय प्रणाली द्वारा आलेख कागद के समान अनेक चौखटें बनाईं । तत्पश्चात छायाचित्र की कुल चौखटें और उनकी तुलना में प्रभामंडल की प्रत्येक रंग से व्याप्त चौखटों की संख्या गिनी । इस संख्या को प्रतिशत में रूपांतरित कर प्रभामंडल के प्रत्येक रंग की औसत मात्रा निश्चित की गई है ।
अभिमंत्रित जल के सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा बहुत अधिक, अर्थात ७७ प्रतिशत है, तथा सामान्य जलमें वह लगभग मूलभूत प्रविष्टि जितनी, अर्थात ६३ प्रतिशत है, यह उपरोक्त आलेखों से स्पष्ट होता है ।
७. निरीक्षण
७ अ. निरीक्षण १
पिप छायाचित्रों में दिखाई देनेवाले प्रभामंडलों का रंग, वे किसके दर्शक हैं और उनका बढना अथवा घटना : निम्नलिखित सारिणी यह ध्यान में रखकर पढें कि सामान्य जल और अभिमंत्रित जल के प्रभामंडलों की तुलना मूलभूत प्रविष्टि से की है ।
टिप्पणी १ : घटक के अंतर्बाह्य स्तरों के नकारात्मक स्पंदन नष्ट करने की व सकारात्मक स्पंदन बढाने की क्षमता
टिप्पणी २ : घटक के केवल बाह्य स्तर के नकारात्मक स्पंदन नष्ट करने की व सकारात्मक स्पंदन बढाने की क्षमता
७ आ. निरीक्षण २
पिप छायाचित्रों में दिखनेवाले प्रत्येक स्पंदनों (रंगों) की मात्रा (प्रतिशत)
८. निरीक्षणों का विवरण एवं निष्कर्ष
८ अ. मूलभूत प्रविष्टि
सनातन आश्रम के सात्त्विक वातावरण के कारण मूल प्रविष्टि के समय सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा अधिक दिखाई देना : कलियुग में सामान्य वास्तु से सकारात्मक स्पंदनों की अपेक्षा नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने की मात्रा अधिक है । यह जांच अत्यंत सात्त्विक सनातन आश्रम में की गई है और मूल प्रविष्टि के समय भी (जांच के लिए रिक्त पात्र रखते समय भी) प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा नकारात्मक स्पंदनों की अपेक्षा अधिक है ।
८ आ. सामान्य जल से वातावरण के स्पंदनों की मात्रा मूल स्पंदनों की तुलना में लगभग उतनी ही रही ।
८ इ. अभिमंत्रित जल के कारण वातावरण
की पवित्रता के स्पंदनों की मात्रा अत्यधिक बढना
अभिमंत्रित जल के कारण वातावरण की पवित्रता के स्पंदनों की मात्रा अत्यधिक बढी और नकारात्मक एवं भावनात्मक तनाव के स्पंदन घट गए । इसका कारण है विविध पीडाआें के निवारण हेतु बताए गए मंत्रों का सामर्थ्य । जल में उंगली डुबोकर उस मंत्र का २१ बार उच्चारण करने से संबंधित मंत्र का सामर्थ्य उस जल में उत्पन्न हुआ । इससे वातावरणमें पवित्रता के अत्यधिक स्पंदन उत्पन्न हुए । इससे यह स्पष्ट होता है कि मंत्रों में दैवी सामर्थ्य होता है । नकारात्मकता और भावनात्मक तनाव के कष्टदायक स्पंदन घट गए हैं, अर्थात यह जल पीने पर कष्ट घटेंगे तथा इससे निश्चित ही लाभ होगा । इसी से हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से बताए गए मंत्रों की महिमा ध्यान में आती है । ऋषि-मुनियों ने विविध मंत्रों का ज्ञान ईश्वर से प्राप्त कर वह अखिल मानवजाति के लिए उपलब्ध कराकर अनंत उपकार किए हैं । मंत्रों का सामर्थ्य ध्यान में आए, इसलिए यह जांच की गई । यह परीक्षण निश्चित ही मंत्रों को ढोंग माननेवालों की आंखों में अंजन डालेगा !
– डॉ. (कु.) आरती तिवारी, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. इ-मेल : [email protected]