आयुर्वेदानुसार आचरण करें !
अक्टूबर २०१३ में सर्दी होनेपर कुछ दिन पश्चात मेरे कान से पानी-जैसा द्रव निकलने लगा । तब, नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ चिकित्सक से मिला । उन्होंने कुछ गोलियां और कान में डालने के लिए द्रव औषधि दी । इससे ८ दिन में कान का बहना रुक गया; परंतु कान सुन्न हो गया । कान में जब रुई लगी सींक (इयर-बड) डाली जाती, तब गाढा चिकना पीब निकलता । चिकित्सक ने बताया कि कान में कीटाणु हो गए हैं । इसके लिए मैं कान में प्रतिदिन ३ बार औषधि डालता था; परंतु पीब निकलना नहीं रुक रहा था । कान का पटल (परदा) भीतर चिपक गया था, जिससे उसका आकार अंग्रेजी अक्षर, सी जैसा हो गया था । ३ महीने उपचार के पश्चात भी, वह ठीक नहीं हुआ । तब उस विशेषज्ञ चिकित्सक ने कहा कि कान के पटल की शल्यक्रिया करनी पडेगी । इसके पश्चात, पुणे के आयुर्वेदज्ञ वैद्य नरेंद्र पेंडसे से मिलकर मैंने उन्हें इस विषय में बताया । उन्होंने कहा कि शल्यक्रिया कराने की आवश्यकता नहीं है । २-२ सारिवादी वटी दिन में दो बार एक महीने तक लेना है । मैं यह औषधि लेने लगा । आठ दिन पश्चात जब कान की जांच करवाने गया, तब उन्होंने जांच कर बताया कि कान में अब कोई दोष नहीं है । कान का पटल अब पहले जैसा हो गया है और वहां के कीटाणु भी पूर्णतः समाप्त हो गए हैं । इससे आयुर्वेदीय उपचार का महत्त्व समझ में आता है ।
– (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
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