असहनीय ग्रीष्मकाल को सहनीय बनाने के लिए आयुर्वेदानुसार ऋतुचर्या करें !
१. त्वचा
‘ग्रीष्मकाल में पसीना बहुत होता है । इससे, त्वचा पर स्थित पसीने की ग्रंथियों के साथ तेल की ग्रंथियां अधिक काम करने लगती हैं, जिससे त्वचा चिपचिपी होती है । तेल का अंश त्वचा पर होने से, पसीने का वाष्पीकरण शीघ्र नहीं होता और शरीर कुछ अधिक समय तक शीतल रहता है । यह क्रिया प्राकृतिक रूप से होती रहती है । पसीना सूखने पर, उसमें विद्यमान क्षार सूखकर स्फटिक के कणों का रूप ले लेता है । इसके कारण शरीर में खुजली होती है तथा घमोरियां भी होती हैं । इस समस्याको दूर करनेके लिए प्रतिदिन स्नान के आधा घंटा पहले या रात को सोते समय पूरे शरीर में नारियल तेल लगाएं । इससे ये कष्ट नहीं होंगे और त्वचा भी स्वस्थ रहेगी ।
२. आंख
धूप से आंखों में जलन होती है । उसे कम करने के लिए सोने से पहले दोनों आंखों में १ बूंद देशी गाय का शुद्ध घी डालें ।
३. नाक
ग्रीष्मकाल में नाक से रक्त बहता हो, तो नाक के दोनों छिद्रों में २ – २ बूंद दूर्वारस अथवा धनिया पत्ते का रस डालें । सवेरे उठने पर दांत स्वच्छ करने के पश्चात नाक के दोनों छिद्रों में २ – २ बूंद देशी गाय का शुद्ध घी अथवा नारियल का तेल डालें ।
४. पाचनशक्ति
शीतपेय तथा आइसक्रीम का सेवन न करें । इनसे पाचनशक्ति बिगडती है । पाचनशक्ति अच्छी रहने के लिए भोजन के समय भात अथवा रोटी पर १ चम्मच देसी गाय का शुद्ध घी डालें ।
५. मल
ग्रीष्मकाल में बद्धकोष्ठता होती है । इसलिए प्रतिदिन दोपहर और रात में भोजन से पहले १ चम्मच (३ – ४ ग्राम) आंवला अथवा मुलहठी का चूर्ण आधा प्याला पानी के साथ लें अथवा प्रतिदिन सवेरे आधा चम्मच (१.५ – २ ग्राम) हर्रे का चूर्ण उतने ही गुड में मिलाकर, पानी से लें । आम, करौंदा, जामुन आदि फल खाएं ।
६. मूत्र
मूत्र में जलन हो तो उसे दूर करने के लिए खस घास की जडें पानी में रखें तथा वह पानी पीएं अथवा तुलसी के बीज, दौना के बीज तथा धनिया, इनमें से कोई एक पदार्थ १ चम्मच लेकर एक लीटर पानी में भिगोकर रखें और वह पानी पीएं ।
७. नींद
सोने से पहले सिर और पैरों में तेल लगाएं तथा कान में २ – २ बूंद नारियल का तेल डालें । परंतु कान में छिद्र हो, कान बह रहा हो अथवा उसमें खुजली हो रही हो, तब तेल न डालें ।
– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
स्त्रोत : सनातन प्रभात हिन्दी