अ. दैवी परिवर्तन
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी देह, नख और केश में दैवी परिवर्तन हो रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके समान ही शरीरमें दैवी परिवर्तनकी अनुभूति सनातनके कुछ सन्तों और साधकों को भी हुई है ।
आ. दैवी नाद
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कक्षमें पहले दैवी नाद सुनाई दिए । अब सनातनके आश्रम और साधकोंके घरमें भी दैवी नाद सुनाई देते हैं ।
इ. दैवी कण
पृथ्वीपर सर्वत्र निर्मित रज-तमकी बडी मात्रा अल्प करनेके लिए पृथ्वीपर सात्त्विक वस्तुआेंकी आवश्यकता थी । विविध रंगोंके दैवी कणोंके कारण यह आवश्यकता पूर्ण हो गई है । सनातनके सन्तों और साधकों के शरीरपर दैवी कणोंकी वर्षा होती है । साथ ही ये कण सनातनके आश्रम, साधकोंके कक्ष, साधकोंके कपडे, वस्तुएं आदि अनेक स्थानोंपर निरन्तर दिखाई देते हैं । विभिन्न प्रयोगशालाआेंसे प्राप्त दैवी कणोंसे सम्बन्धित ब्यौरे बताते हैं कि इनमें कोई भी ज्ञात घटक नहीं हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि ये कण दैवी हैं ।
सनातनका कार्य योग्य दिशामें चल रहा है, इसका प्रमाणपत्र ही मानो ईश्वरने दैवी परिवर्तन, दैवी नाद और दैवी कणोंके माध्यमसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको दिया है ।