सारणी
- १. संधिकाल और संधिकालमें आचारपालनका महत्त्व
- २. सायंकाल के समय घरमें धूप दिखाएं
- ३. सायंकाल देवताके समक्ष दीप जलाकर उसे नमस्कार करें
- ४. देवताके पास दीप जलानेके उपरांत श्लोक बोलें
- ५. श्लोकपाठके उपरांत देवताकी आरती और प्रार्थना करें
- ६. संध्यासमय छोटे बच्चोंका लगी कुदृष्टिका प्रभाव उतारना (नजर उतारना)
- ७. सायंकालके संधिकालमें बताई गई निषिद्ध बातें
- ८. रात्रिकालमें पालन करनेयोग्य आचार
१. संधिकाल और संधिकाल में आचारपालन का महत्त्व
संधिकालकी परिभाषा : ‘प्रातः सूर्योदयके पूर्व और सायंकाल सूर्यास्तके उपरांत ४८ मिनटोंके (दो घटिकाओंके) कालको ‘संधिकाल’ कहते हैं ।
संधिकालका पर्यायवाची शब्द : ‘पर्वकाल’
संधिकालमें आचारपालनका महत्त्व : संधिकाल अनिष्ट शक्तियोंके आगमनका काल है । उनसे रक्षण होनेके लिए धर्मने इस कालमें आचारपालनको महत्त्व दिया है । पर्वकालमें कोई भी हिंसात्मक कृत्य नहीं करते ।
२. सायंकाल घरमें धूप दिखाएं
‘इस आचारद्वारा वास्तुके साथ ही कपडोंकी भी शुद्धि होनेमें सहायता होती है ।’ – सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१०.२००७, दिन ९.४६)
३. सायंकाल देवताके समक्ष दीप जलाकर उसे नमस्कार करें
सायंकाल संध्या करें और देवताके समक्ष दीप जलाएं । इसी समय आंगनमें तुलसीके पास भी दीप जलाएं ।
देवताके सामने २४ घंटे दीप जलाए रखना चाहिए । सायंकाल दीपककी बातीपर आई कालिख निकालें । आजकल अधिकांश लोगोंके घरमें २४ घंटे दीप नहीं जलता है । इसलिए वे सायंकाल होनेपर देवताके समक्ष दीप जलाएं ।
‘संध्यासमय, अर्थात् दीप जलानेके समय देवता और तुलसीके समीप दीप जलानेसे घरके चारों ओर देवताओंकी सात्त्विक तरंगोंका सुरक्षाकवच निर्माण होता है । वातावरणमें अनिष्ट शक्तियोंके संचारसे प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगोंसे घरकी तथा व्यक्तियोंकी इस कवचसे रक्षा होती है । इसलिए यथासंभव दीप जलानेके समयसे पूर्व घर लौटें अथवा दीप जलानेके उपरांत घरसे बाहर न निकलें । अधिकांश लोगोंको संध्यासमय अनिष्ट शक्तियोंकी बाधा सर्वाधिक होती है । अघोरी विद्याके उपासक संध्यासमय वातावरणकी परिधिमें प्रविष्ट अनिष्ट शक्तियोंको अपने वशमें कर उनसे अनिष्ट कृत्य करवाते हैं ।
इसलिए संध्यासमय अधिक मात्रामें दुर्घटनाएं और हत्याएं होती हैं या बलात्कारके कृत्य होते हैं । इस कालको ‘साई सांझ’ अर्थात् ‘कष्टदायक या विनाशका समय’ कहते हैं ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २१.२.२००५, दोपहर १.२८)
४. देवताके पास दीप जलानेके उपरांत श्लोक बोलें ।
४ अ. श्लोकपाठके लाभ
‘शुभं करोति कल्याणं …’ जैसे श्लोक बोलनेसे दीपकी स्तुतिद्वारा अनिष्ट शक्तियोंको निरस्त करनेका मारक कार्य साध्य किया जाता है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २९.१०.२००७, दिन ९.४६)
‘स्तोत्रपाठद्वारा निर्मित सात्त्विक स्पंदनोंसे घरकी शुद्धि होती है । इसलिए अनिष्ट शक्तियोंकी पीडा भी कम होती है ।
दीप जलानेके उपरांत स्तोत्रपाठ करनेसे बच्चोंकी स्मरणशक्ति बढती है, वाणी शुद्ध होती है एवं उच्चारण भी स्पष्ट होनेमें सहायता मिलती है ।’
४ आ. श्लोक
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ : हे दीपज्योति, तुम शुभ और कल्याणकारी हो, स्वास्थ्य एवं धनसंपदा प्रदान करती हो और शत्रुबुद्धिका नाश करती हो; अतः मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं ।
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ : दीपका प्रकाश परब्रह्मस्वरूप है । दीपकी ज्योति जगत्का दुख दूर करनेवाला परमेश्वर है । दीप मेरे पाप दूर करे । हे दीपज्योति, आपको नमस्कार करता हूं।
५. श्लोकपाठके उपरांत देवताकी आरती और प्रार्थना करें ।
दीप जलानेके समय घरके सभी सदस्य उपस्थित रहें । सभी उपस्थित रहनेके लाभ :
अ. ‘दीप जलानेके समय घरके सभी सदस्य उपस्थित रहनेसे छोटे बच्चोंपर अच्छे संस्कार होते हैं ।
आजकी स्थिति
आजकल दूरचित्रवाहिनीके शोर-गुलमें स्तोत्रपाठ की ध्वनि कहीं खो गई है । आज विभक्त परिवारपद्धतिके कारण हो रही हानि हम देख ही रहे हैं । इसके लिए कौन उत्तरदायी है ? दूरदर्शन, माता-पिता, अध्यात्मविहीन शिक्षाप्रणाली, समाज या प्रत्येक व्यक्ति ?’
६. संध्यासमय छोटे बच्चोंका लगी कुदृष्टिका प्रभाव उतारना (नजर उतारना)
छोटे बच्चोंपर कुदृष्टिका प्रभाव शीघ्र पडता है । कुदृष्टि-निवारणका अर्थ है – कुदृष्टिके कारण देहमें निर्माण हुए कष्टदायक स्पंदनोंको विशिष्ट पदार्थोंमें खींचकर, उनके माध्यमसे व्यक्तिका कष्ट दूर करना । जिसे अनिष्ट शक्तिका कष्ट है, उसकी भी कुदृष्टि इसी पद्धतिसे उतार सकते हैं ।
७. सायंकालके संधिकालमें बताई गई निषिद्ध बातें
संधिकालमें अनिष्ट शक्तियां प्रबल होनेके कारण इस कालमें निम्नलिखित बातें निषिद्ध बताई हैं ।
अ. सोना, खाना-पीना और भोजन करना
आरोहणं गवां पृष्ठे प्रेतधूमं सरित्तटम् ।
बालतपं दिवास्वापं त्यजेद्दीर्घं जिजीविषुः ।
– स्कंदपुराण, ब्रह्म. धर्मा. ६. ६६-६७
अर्थ : जो दीर्घकाल जीवित रहना चाहता है, वह गाय-बैलकी पीठपर न बैठे, चिताका धुंआ अपने शरीरको न लगने दे, (गंगाके अतिरिक्त दूसरी) नदीके तटपर न बैठे, उदयकालीन सूर्यकी किरणोंका स्पर्श न होने दे तथा दिनके समय सोना छोड दे ।
यथासंभव संध्यासमय गंगाके अतिरिक्त अन्य नदियोंके किनारे न बैठनेका आधारभूत शास्त्र
‘गंगा नदीको ‘गंगोत्री’ (सात्त्विक तरंगोंका शिवरूपी स्रोत प्रदान करनेवाली)’ भी कहते हैं । गंगाके जलसे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगोंके कारण गंगातटका वायुमंडल शुद्ध और चैतन्यमय बना रहता है । इसलिए इस वातावरणमें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा पीडा होनेकी आशंका अत्यल्प होती है । इसके विपरीत, अन्य नदियोंके तटपर सात्त्विकता अपेक्षाकृत कम होती है । इसलिए नदीके किनारे बैठे जीवको अनिष्ट शक्तियोंके संचारके कारण कष्ट होनेकी आशंका अधिक होती है । नदीके किनारे विचरनेवाली कनिष्ठ स्तरकी अनिष्ट शक्तियोंमें पृथ्वी और आपतत्त्व प्रबल होनेसे, ये शक्तियां पृथ्वी और आपतत्त्वोंसे बनी मानवीय देहके साथ अल्पावधिमें एकरूप हो सकती हैं । इसलिए यथासंभव संध्या समय नदीके तटपर न बैठें एवं नदीके तटपर घूमनेसे बचें ।’
८. रात्रिकालमें पालन करनेयोग्य आचार
८ अ. रात्रिकालमें दर्पण न देखें !
दर्पणके प्रतिबिंबपर वातावरणमें प्रबल अनिष्ट शक्तियां तुरंत ही आक्रमण कर सकती हैं; इसलिए रातमें दर्पण देखना निषिद्ध
‘रातका समय रज-तमात्मक वायुसंचार हेतु पूरक होता है । अतः वह सूक्ष्म रज-तमात्मक गतिविधियों और अनिष्ट शक्तियोंकी सजगतासे संबंधित होता है । दर्पणमें दिखाई देनेवाले देहका प्रतिबिंब देहसे प्रक्षेपित जीवकी सूक्ष्म-तरंगोंसे अधिक संबंधित होता है, इसलिए इस प्रतिबिंबपर वातावरणमें स्थित प्राबल्यदर्शक अनिष्ट शक्तियां तुरंत ही आक्रमण कर सकती हैं ।
इसके विपरीत सवेरे वायुमंडल सात्त्विक तरंगोंसे युक्त होता है । अतः दर्पणमें दिखाई देनेवाले सूक्ष्म-प्रतिबिंबपर, वायुमंडलमें स्थित सात्त्विक तरंगोंकी सहायतासे आध्यात्मिक उपाय होते हैं और स्थूलदेह अपनेआप ही हलका हो जाता है । इसलिए प्रातः दर्पणमें प्रतिबिंब देखना लाभदायक है, तथापि वही प्रतिबिंब रज-तमात्मक गतिविधियोंके लिए पूरक रात्रिकालमें देखना हानिकारक हो सकता है ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २५.१२.२००७, रात्रि ७.५०)
दर्पणमें प्रतिबिंबपर वातावरणकी प्राबल्यदर्शक अनिष्ट शक्तियोंद्वारा आक्रमणका व्यक्तिपर क्या परिणाम होता है ?
‘प्रतिबिंबमें जीवसे संबंधित तरंगें उसके सूक्ष्मदेहसे अधिक संलग्न होती हैं । इस कारण अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणका अधिक परिणाम, जीवको आध्यात्मिक स्तरपर अनिष्ट शक्तिकी पीडा होनेमें होता है । इस आक्रमणका परिणाम जीवके शरीर और मनपर होता है । प्राणशक्ति कम होना, थकान होना, अस्वस्थ लगना, मनमें आत्महत्याके विचार आना, अनिष्ट शक्तिका देहमें प्रवेश होना, अनिष्ट शक्तिके प्रभावके कारण अपना अस्तित्व कम होना इत्यादि आध्यात्मिक कष्टोंका जीवको सामना करना पडता है ।’
प्रत्यक्ष व्यक्तिपर आक्रमण करनेकी अपेक्षा व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे व्यक्तिपर आक्रमण करना अनिष्ट शक्तियोंके लिए अधिक लाभदायक क्यों होता है ?
‘व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे अनिष्ट शक्तियोंको जीवका एक सूक्ष्म-रूप ही प्रत्यक्ष दर्शरूपमें मिल सकता है । जीवके सूक्ष्म-रूपपर आक्रमण करनेसे उसका परिणाम दीर्घकालतक बना रहता है । परिणामस्वरूप देहपर गहरा प्रभाव पडनेसे उसका अनुचित लाभ उठाकर अनिष्ट शक्तियोंके लिए जीवके देहके सूक्ष्म-कोषोंमें काली शक्तिका स्थान बनाना सरल होता है । इसके लिए स्थूलदेहपर आक्रमण करनेकी अपेक्षा व्यक्तिके प्रतिबिंबके सूक्ष्म-रूपका उपयोग कर जीवको दीर्घकालतक कष्ट देना और उसके देहमें प्रत्यक्ष प्रवेश करना अनिष्ट शक्तियोंके लिए सरल होता है ।’
अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दर्पणमें उभरे व्यक्तिके प्रतिबिंबके माध्यमसे व्यक्तिपर आक्रमण करना और प्रत्यक्ष व्यक्तिपर आक्रमण करना
८ आ. होहल्ला न मचाएं अथवा सीटी न बजाएं !
अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट न हो; इसलिए रातके समय होहल्ला मचाना अथवा सीटी बजाना निषिद्ध : ‘होहल्ला मचाने’ को मांत्रिककी भाषामें ‘चित्कार’ कहते हैं । इस प्रकारकी ध्वनि उत्पन्न कर मांत्रिक कनिष्ठ स्तरकी दास्य अनिष्ट शक्तियोंको बुलाते हैं । अघोरी विधिद्वारा सीटी समान ध्वनि उत्पन्न कर कनिष्ठ स्तरकी अनिष्ट शक्तियोंकी शक्ति जगाते हैं और उन्हें अनिष्ट कर्म करनेके लिए प्रेरित करते हैं । इसलिए ‘होहल्ला मचाना’ तामसिकताका अर्थात् अनिष्ट शक्तियोंका आवाहन करनेका, जबकि ‘सीटी बजाना’ रजोगुणका, अर्थात् अनिष्ट शक्तियोंमें विद्यमान कार्यशक्तिको जगानेका लक्षण है । अतः रज-तमोगुणके लिए पोषक रात्रिकालमें सीटी न बजाएं अथवा होहल्ला न मचाएं ।’
– सूक्ष्म-जगतके एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, १९.२.२००५, दोपहर ३.२१)
८ इ. मद्यपान कर नाच-गानेसे बचें !
रात्रिके समय मदिरा पीकर नाचना, गाने गाना इत्यादिके कारण व्यक्तिको अनिष्टशक्तियोंका तीव्र कष्ट होकर उसके आस-पास और घरका वातावरण दूषित होना : ‘रातके समय मनोरंजन, रुचि अथवा समय बितानेके लिए मद्यपान कर डान्सबारमें (मद्य पीकर संगीतकी तालपर नृत्य करनेका स्थान) नाचने और गाना गानेसे अल्पावधिमें तमोगुण अत्यधिक बढता है । इससे व्यक्तिको अनिष्ट शक्तियोंका तीव्र कष्ट होनेकी आशंका रहती है तथा व्यक्तिमें बढे हुए तमोगुणका परिणाम उसके आस-पासके और घरके वातावरणपर होता है । परिणामस्वरूप वातावरण भी दूषित हो जाता है ।’
– ईश्वर (कु. मधुरा भोसलेके माध्यमसे, २८.११.२००७, रात्रि १०.५०)
अच्छी तरह समझाया गया है।