प्राचीन हिन्दू आरोग्यशास्त्र आयुर्वेदका प्रसार और उसके माध्यमसे हिन्दू संस्कृतिका संवर्धन करना !

स्वतन्त्रताके उपरान्त सर्वदलीय राजनेताआेंने आयुर्वेदकी उपेक्षा की, जिससे एक परिपूर्ण शास्त्र होकर भी आज भारतमें आयुर्वेदके लिए पर्यायी उपचार-पद्धतिका स्थान है । भावी हिन्दू राष्ट्रमें (सनातन धर्म राज्यमें) आयुर्वेद वैकल्पिक नहीं, अपितु मुख्य उपचार-पद्धति होगी । आयुर्वेदको पुनर्वैभव प्राप्त करानेके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी कार्यरत हैं । उनकी प्रेरणासे सनातनने आयुर्वेदसम्बन्धी ग्रन्थमाला प्रकाशित की है । सनातन प्रभात नियतकालिकोंमें एवं sanatan.org जालस्थलसे (वेबसाइटसे) आयुर्वेदके विषयमें जनजागृति करनेवाले लेख नियमितरूपसे प्रकाशित किए जाते हैं । सनातनके रामनाथी, गोवा स्थित आश्रममें आयुर्वेद सम्बन्धी शिविर आयोजित किए जाते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजीद्वारा स्थापित महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालयके भावी वास्तुमें आयुर्वेद सम्बन्धी शोध विभाग, तथा वन्य-औषधियोंका रोपण एवं गोशालाका भी समावेश होगा ।

आयुर्वेद हिन्दू संस्कृतिका अविभाज्य घटक है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी आयुर्वेदका प्रसार कर उसके माध्यमसे चैतन्यमय हिन्दू संस्कृतिके संवर्धनका मौलिक कार्य भी कर रहे हैं ।

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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