‘श्रीराम तथा श्रीकृष्ण ने अवतारी कार्य किया । वही कार्य इस कलियुग में स्वयं प.पू. डॉक्टरजी अलिप्त रहकर लीला कर रहे हैं । हिन्दू राष्ट्र की (सनातन धर्म राज्य की) स्थापना करने हेतु कुछ चुने हुए जीवों को प.पू. डॉक्टरजी अपने साथ लेकर आए हैं । उन्होंने अनेक सार्वजनिक सभाओं में हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के विचार अनेक जीवों के अंतःकरण में बोए हैं ।
प.पू. डॉक्टरजी ने सभी साधनामार्ग के जीवों का उद्धार करने के लिए उनका सभी स्तरों पर विभिन्न माध्यमों से मार्गदर्शन किया है । – श्री. परशुराम गोरल
१. कर्मयोग
प्रत्येक कृत्य ‘योगः कर्मसु कौशलम् ।’ इस उक्ति के अनुसार किस प्रकार करनी चाहिए, यह प.पू. डॉक्टरजी अपने प्रत्येक कृत्य द्वारा सिखा रहे हैं । कर्म करते समय उसे भगवान के नाम तथा भक्ति का साथ देकर उसका श्रेय (कर्तापन) भगवान के चरणों में अर्पित करने से जीव की शीघ्र गति से आध्यात्मिक उन्नति होती है तथा साधना में वह विशिष्ट स्तर पर न रुकते हुए आगे-आगे जा सकता है, यह प.पू. डॉक्टरजी ने अपनी ही कृति द्वारा दिखाया है । इससे अनेक कर्ममार्गी जीवों की भी प्रगति हो रही है ।
२. भक्तियोग
‘भक्तिमार्गी जीव के लिए भक्ति ही ईश्वरप्राप्ति की शक्ति है’, यह प.पू. गुरुदेवजी ने पहचानकर ऐसे जीवों को ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखाया । इसके लिए प.पू. गुरुदेवजी ने अनेक उदाहरण सीखने हेतु सामने रखे । उसमें प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर पर भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रेम (भक्ति) कर रहा है । कोई गोपी बनकर, तो कोई भगवान को सखा मानकर भावानुरूप भगवान का अनुभव कर रहा है । यह सभी ज्ञात होने के लिए प.पू. गुरुदेवजी ने गोपियों के संदर्भ में ग्रंथ, तथा भाव एवं भाव के प्रकार, इन विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित किए हैं ।
३. ध्यानयोग
प.पू. डॉक्टरजी ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने हेतु साधकों को समष्टि साधना हेतु निरंतर सेवा उपलब्ध करवाई है । इसलिए प्रत्येक जीव का ध्येय निश्चित होने के लिए सहायता प्राप्त हुई है । उन्होंने यह ध्येय साध्य करने के लिए अखंड साधना बताई । इसलिए इस कार्य में सम्मिलित जीव एक प्रकार से निरंतर ध्यानावस्था में ही रहता है ।
४. ज्ञानयोग
प.पू. डॉक्टरजी ने ज्ञानयोगमार्ग से साधना करनेवाले जीवों का उद्धार करने के लिए उन्हें उसी के अनुसार मार्गदर्शन किया । अपने ज्ञान का उपयोग धर्मकार्य हेतु उचित ढंग से किस प्रकार करना चाहिए, इसका मार्गदर्शन कर वे उन जीवों का उद्धार भी कर रहे हैं ।
५. गुरुकृपायोग
इन सभी योगों का (ज्ञानयोग, ध्यानयोग, कर्मयोग तथा भक्तियोग का) एकत्रीकरण (combinations) हो सकता है । गुरुकृपा के कारण जीव की शीघ्र प्रगति होने के कारण प.पू. गुरुदेवजी ने ‘गुरुकृपायोग’ की निर्मिति की । परिणामस्वरूप आज सनातन संस्था में ही नहीं, तो समाज में भी अनेक जीव जीवन्मुक्त हो रहे हैं तथा संत बन रहे हैं । यह केवल प.पू. गुरुदेवजी की अपार कृपा के कारण ही संभव हुआ है ।’
— श्री. परशुराम गोरल