सम्मोहन-उपचार क्षेत्रमें शोधकार्य
तथा अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिके सम्मोहन-उपचार विशेषज्ञ
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने ब्रिटेनमें सम्मोहन-उपचार पद्धतिपर सफल शोध किया । पश्चात वे सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञके रूपमें अन्तरराष्ट्रीय स्तरपर प्रसिद्ध हुए । वर्ष १९७८ में भारत लौटनेपर उन्होंने मुंबईमें मनोरोगोंके सम्मोहन-उपचार विशेषज्ञके रूपमें निजी व्यवसाय आरम्भ किया । पश्चात सम्मोहनशास्त्र और उसपर आधारित उपचारके सैद्धान्तिक और प्रायोगिक अंगके विषयमें उन्होंने अनेक चिकित्सकोंका अनमोल मार्गदर्शन किया ।
अ. सम्मोहन-उपचार शास्त्रकी अभिनव स्वसूचना-पद्धतियां ढूंढना
ब्रिटेनमें मनोरोगियोंके लिए उपचार करते समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके ध्यानमें आया कि मनोविकार मूलतः स्वभावदोष एवं अहं के कारण उत्पन्न होते हैं । स्वभावदोषके लिए कोई औषधि उपलब्ध न होनेके कारण उन्होंने स्वभावदोष एवं अहंके निर्मूलन हेतु उपचार-पद्धतियां ढूंढ निकालीं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘अयोग्य कृत्य का भान और उस पर नियंत्रण’, ‘अयोग्य प्रतिक्रियाआें के स्थान पर योग्य प्रतिक्रिया निर्माण करना’, ‘प्रसंग का मन में अभ्यास करना’ आदि सम्मोहन-उपचारों की नवीनतापूर्ण पद्धतियां विकसित कीं । उनके यह भी ध्यानमें आया कि रोगियोंको उपचार करनेवालोंके पास बार-बार जाना पडता है । परिणामस्वरूप रोगियोंके समय और धनका अपव्यय होता है तथा उपचार भी प्रतिदिन नहीं हो सकते । इसलिए उन्होंने स्वसूचना उपचार-पद्धति ढूंढ निकाली । इस पद्धतिका उपयोग कर रोगी स्वयंपर दिनभरमें १० – १५ बार भी उपचार कर पाता था, जिससे वह शीघ्र ठीक हो जाता ।
आ. मानसिक तनाव भी
इयोसिनोफिलियाका कारक है, इस बातका शोध करना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने रक्तकी कोशिकाआेंसे सम्बन्धित एक रोग इयोसिनोफिलिया, मानसिक तनावके कारण भी होता है, इसकी खोज की ।
इ. भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन एवं
संशोधन संस्थाकी स्थापना और उसके द्वारा किया कार्य
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने १.१.१९८२ को भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन एवं संशोधन (अर्थात शोध) संस्था (दी इंडियन सोसाइटी फॉर क्लिनिकल हिप्नोसिस एण्ड रिसर्च)की स्थापना की । अन्तरराष्ट्रीय सम्मोहन संस्थासे जुडी इस संस्थाके उद्देश्य थे, चिकित्सकीय दृष्टिकोणसे सम्मोहनशास्त्रके विषयमें शोध और भारतमें सम्मोहन उपचार-पद्धतिका प्रसार करना । इस संस्थामें ८ से १० चिकित्सक शोधकार्यमें रत थे इस संस्थाद्वारा डॉक्टर, दन्तचिकित्सक, मनोरोग विशेषज्ञ (साइकोलॉजिस्ट) और मानसोपचार विशेषज्ञोंके लिए १९८२ से १९८६ की कालावधिमें मुंबई, बडोदा, कोलकाता आदि स्थानोंपर सम्मोहन उपचारशास्त्रके अभ्यासवर्ग आयोजित कर लगभग ४०० विशेषज्ञोंको प्रशिक्षित किया गया ।
ई. सम्मोहनशास्त्र और सम्मोहन-उपचार पर ग्रन्थसम्पदा !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी लिखी पुस्तकें, दी इण्डियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल हिप्नोसिस एण्ड रिसर्चके १ से ५ खण्ड (वर्ष १९८३ – वर्ष १९८७), हिप्नोथेरपी अकॉर्डिंग टू दी पर्सनालिटी डिफेक्ट मौडेल ऑफ साइकोथेरपी, सम्मोहनशास्त्र, सुखी जीवन हेतु सम्मोहन उपचार, शारीरिक विकारोंके लिए स्वसम्मोहन उपचार, यौन समस्याआेंके लिए स्वसम्मोहन उपचार, मनोविकारोंके लिए स्वसम्मोहन उपचार (२ भाग), स्वभावदोष निर्मूलन एवं गुणसंवर्धन प्रक्रिया (३ भाग), अनेक लोकप्रिय नियतकालिकोंमें प्रकाशित उनके १२३ लेख और विदेशमें सराहे गए उनके शोध-निबन्ध; उनके चिकित्सा-क्षेत्रमें सफल योगदानकी, सम्मोहन-उपचारोंके विषयमें गहन अध्ययनकी तथा अद्वितीय शोधकी फलोत्पत्ति है ।
उ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके
शोधकार्यके विषयमें देश-विदेश के कुछ विशेषज्ञोंके विचार
भारतीय सम्मोहन चिकित्सा एवम् संशोधन (अर्थात शोध) संस्थाकी ओरसे प्रकाशित पत्रिकाका पहला अंक संस्थाने अमेरिका, कैनेडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख सम्मोहन उपचार विशेषज्ञोंको भेंट किया था । इस अंककी विश्वके अनेक मनोरोग विशेषज्ञों और सम्मोहन उपचार विशेषज्ञों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की । इनमेंसे कुछ अभिमत आगे दे रहे हैं ।
१. आपकी पत्रिका अत्यन्त उत्कृष्ट है । आपके अंकमें विपुल शोधपरक जानकारी है । – डॉ. जे. आर्थर जैक्सन, कार्यकारी सम्पादक, ऑस्ट्रेलियन उपचार और प्रायोगिक सम्मोहनशास्त्र संबंधी पत्रिका (मैनेजिंग एडिटर, ऑस्ट्रेलियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल एण्ड एक्स्पेरिमेंटल हिप्नोसिस) (२४.५.१९८५)
२. आपके अंकमें अनेक नए वैज्ञानिक शब्द दिखाई दिए । आपके द्वारा खोजी गई उपचार-पद्धति, अनुचित कृत्यका बोध और उसपर नियन्त्रण विशेषरूपसे अच्छी लगी । आपके लेखनसे आपके अनुभवोंपर आधारित नई विचारधारा दिखाई देती है । एक सुन्दर शोधपरक अंक देखनेका अवसर प्रदान करनेके लिए शतशः आभारी हैं । – डॉ. स्त्रुअन जे.टी. रॉबर्टसन, प्रथम अध्यक्ष, स्कॉटलैंड शाखा, ब्रिटिश प्रायोगिक और उपचार सम्बन्धी सम्मोहन संस्था. (द इनॉगरल चेयरमन, स्कौटिश ब्रांच, ब्रिटिश सोसाइटी ऑफ एक्स्पेरिमेंटल एण्ड क्लिनिकल हिप्नोसिस) (९.६.१९८४)
३. एक सुन्दर अंक प्रकाशित करनेके लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन ! आपको इस विषयका प्रगाढ ज्ञान है । आपके लेख बहुत अच्छे लगे । इनसे बहुत कुछ सीखनेको मिला । अपने विद्यार्थियोंको आपका यह अंक पढनेके लिए दूंगा । – प्रा. चेस्टर एम. पीयर्स, शिक्षा और मनोचिकित्सा शास्त्र के प्राध्यापक (प्रोफेसर एमेरीटस ऑफ एज्यूकेशन एण्ड साइकिएट्री, फैकल्टी ऑफ मेडिसिन, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल), अमेरिका. (५.३.१९८४)
४. यह पुस्तक विषयकी सम्यक जानकारी देती है । इसे आचरणमें लाना सरल है । इस विषयसे संबंधित प्रश्नों और कार्यप्रणाली का लेखकने भलीभांति विचार किया है । – प्रा. कैथरीन वेल्ड्स, अनुज्ञापित (व्यावसायिक अनुज्ञप्तिप्राप्त), बोर्ड-प्रमाणित (शासनमान्य संस्थासे प्रमाणित) मनोवैज्ञानिक, कैलिफोर्निया.
५. आपका प्रकाशन मुझे बहुत अच्छा लगा । इयोसिनोफिलिया का रोगी स्वस्थ होनेके विषयमें आपको मिली सफलतासे मैं गदगद हूं । अपने आगामी प्रकाशनोंकी प्रतियां हमें अवश्य भेजिए । अपने शोधकार्यके विषयमें हमें अवगत कराते रहें, यह विनती ! – डॉ. जेफ्री के. जेग, संस्थापक-संचालक, द मिल्टन एच. एरिक्सन फाउण्डेशन, इनकॉर्पोरेटेड, अमेरिका. (११.५.१९८४)
६. सम्मोहनशास्त्रके अनेक अनुभव इस पुस्तकमें विस्तारसे बताए गए हैं । इसलिए इनसे सम्मोहनशास्त्रका प्रत्यक्ष उपयोग करनेवालोंको बहुत सहायता होगी । – प्रो. अर्नेस्ट हिलगार्ड, मनोचिकित्सा शास्त्रके प्राध्यापक एमेरीटस, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका तथा अन्तरराष्ट्रीय सम्मोहनशास्त्र संस्थाके संस्थापक अध्यक्ष.
७. यह पुस्तक इस विषयकी मूल्यवान जानकारी देती है । मुझे विश्वास है कि पाठकोंको इस जानकारीसे बहुत लाभ होगा । – डॉ. एल.पी. शाह, मनोचिकित्सा शास्त्रके मानद प्राध्यापक, के.ई.एम. चिकित्सालय एवं जी.एस. चिकित्सा महाविद्यालय, मुंबई और इण्डियन साइकियाट्रिक सोसाइटीके मानद महासचिव.