ऐसे मिला पहला वीडियो कैमरा !
प.पू. डॉक्टरजी स्वयं विभिन्न स्थानों पर अभ्यासवर्ग लेकर अध्यात्मशास्त्र सिखाते थे । वर्ष १९९७ में प.पू. डॉक्टरजी के अभ्यासवर्ग में ठाणे निवासी श्री. श्रीकांत पाटील आते थे । उनका स्वयं का ध्वनिचित्रक (वीडियो कैमरा) था । उन्होंने प.पू. डॉक्टरजी के अभ्यासवर्ग का चित्रीकरण किया था। तदुपरांत संस्था का कार्य देखकर उन्होंने अपना वीडियो कैमरा संस्था का कार्य अर्पित किया उस समय उस वीडियो कैमरे का मूल्य लगभग ७० – ८० सहस्र (हजार) रुपए था । यह ध्वनिचित्रीकरण सेवा हेतु अर्पण मिला हुआ पहला वीडियो कैमरा था ।
१. ध्वनिमुद्रण और ध्वनिचित्रीकरण करने
हेतु आवश्यक सामग्री अन्यों से मांग कर लाना अथवा किराए से लाना
मैं प.पू. डॉक्टरजी के मार्गदर्शनानुसार ध्वनिचित्रीकरण की सेवा करने लगा । सनातन की निर्मिति ही शून्य से होने के कारण वर्ष १९९० से १९९७ की कालावधि में ध्वनिमुद्रण और ध्वनिचित्रीकरण के लिए आवश्यक सामग्री ध्वनिक्षेपक (माईक), ध्वनिमुद्रक(टेपरिकॉर्डर),ध्वनिचित्रक(वीडियो कैमरा), छायाचित्रक (फोटो कैमरा), संकलन हेतु आवश्यक वी.सी.आर.आदि नहीं थे।ये सर्व सामग्री प.पू. डॉक्टरजी अन्यों से मांग कर लाते थे अथवा संभव हो, तो किराए से लेकर कार्यक्रम का ध्वनिमुद्रण अथवा ध्वनिचित्रीकरण किया जाता था; परंतु ऐसा करना सदैव संभव नहीं होता था ।
२. अत्यधिक परिश्रम कर प.पू. डॉक्टरजी
का ऑडियो व वीडियो कैसेट्स का संकलन विविध बारीकियों सहित सिखाना
ध्वनिचित्रीकरण की सेवा प्रारंभ करने पर ध्वनिमुद्रण और ध्वनिचित्रीकरण कैसे करना चाहिए ? उसके लिए प्रकाश व्यवस्था कैसी होनी चाहिए ? संकलन कैसे करना चाहिए ? इत्यादि सभी बातें स्वयं प.पू. डॉक्टरजी ने ही मुझे सिखाईं।प.पू. बाबा के(प.पू. डॉक्टरजी के गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी को सब बाबा कहते थे ।) समय-समय पर गाए हुए भजन, विविध कार्यक्रमों की ऑडियो कैसेट्स का संकलन (ऑडियो एडीटिंग) करना सिखाया । कार्यक्रम का शीर्षक कैसा होना चाहिए ? स्थल, दिनांक और पता कहां लिखना है ? संत और भक्तों के नामों की तलपट्टी कैसे चलानी चाहिए ? इन सबके रंगों का मेल सात्त्विक कैसे होना चाहिए ? किस दृश्य से कार्यक्रम प्रारंभ करना है ? दृश्यों की निरंतरता बनाए रखने के लिए कौन-कौन से दृश्यों का चयन करना है चयनित दृश्यों का समयांक (काउंटर्स) कैसे लिखना चाहिए निवेदन कैसे लिखना चाहिए ? वी.सी.आर. टेप का हैड कब और कैसे स्वच्छ करना चाहिए ? इस प्रकार संकलन और तकनीकी बातें प.पू. डॉक्टरजी ने स्वयं सिखाईं ।
३. प.पू. भक्तराज महाराजजी के गाए हुए भजनों की ऑडियो कैसेट्स तैयार करना
प.पू. डॉक्टरजी ने निश्चय किया कि प.पू. बाबा के गाए हुए भजनों की ऑडियो कैसेट्स तैयार करेंगे । विषयानुरूप इन भजनों का वर्गीकरण कर उनके १२ भाग बनाने थे । इसके लिए प.पू. डॉक्टरजी ने स्वयं प.पू. बाबा के भक्तों से संग्रहित की गई २०० से २५० ऑडियो कैसेट्स सुनीं।उनमें से भजनों का चयन किया।इसके लिए वाद्यों को महत्त्व न देते हुए वे प.पू. बाबा के शब्द ठीक से सुनाई दे रहे हैं ना यह जांचते, कुछ पंक्तियां दोहराई हों तो भजनों का संकलन करते समय एक ही पंक्ति लेने के लिए कहते । संगणक पर संकलन करने के लिए संगणक नहीं थे । वे भजन टेपरिकॉर्डर पर संकलित किए जाते थे । वह पंक्ति एक बार लेकर शेष पंक्तियां हटाने में अनेक घंटे लगते थे । इस पद्धति से संकलित किए गए भजन प.पू. डॉक्टरजी स्वयं सुनकर अंतिम करते थे।भजन सुनते समय कौन सी अनुभूति हो रही है ?, ऐसे आध्यात्मिक स्तर पर कसौटियों का चयन किया।ऐसे भजनों का चयन करने के पीछे प.पू. डॉक्टरजी का एक ही विचार था, वह था समष्टि को आध्यात्मिक स्तर पर लाभ हो !
भजन संकलित करते समय भजन बार-बार सुनते रहने की इच्छा होना, ध्यान लगना आदि विविध प्रकार की अनुभूतियां होती थीं, तो उन अनुभूतियों में मेरा समय व्यर्थ जाता था । उस समय समष्टि का विचार और उसके लिए समय-पालन के महत्त्व का भान प.पू. डॉक्टरजी करवाते थे । मेरी समष्टि साधना हो, ऐसी उनकी लगन थी ।
३ अ. प.पू. भक्तराज महाराज के गाए हुए भजनों की ऑडियो कैसेट्स संस्था का पहला प्रकाशन !
भजनों की ऑडियो कैसेट्स के १२ भाग बने।प.पू. बाबा के भक्तों और सनातन संस्था के साधकों के लिए यह न लाभ न हानि इस प्रकार यह सनातन का पहला प्रकाशन था । इन ऑडियो कैसेट्स का लोकार्पण १९९२ की मुंबई में संपन्न गुरुपूर्णिमा महोत्सव पर प्रत्यक्ष प.पू.बाबा के करकमलों से किया गया । वित्तीय सीमाआें को ध्यान में रखकर पहले अल्प संख्या में ऑडियो कैसेट्स बनाई गईं और विक्रय हेतु रखी गईं। कैसेट्स का विक्रय होता था, उतनी कैसेट्स पुनः खरीदकर मूल कैसेट्स की प्रतियां बनाई जाती थीं ।
४. प.पू. डॉक्टरजी के प्रवचन और मार्गदर्शन की कैसेट्स तैयार करना
वर्ष १९९० से १९९७ की कालावधि में अध्यात्मप्रसार के एक भाग के रूप में अनेक स्थानों पर प.पू. डॉक्टरजी के प्रवचन और साधकों के लिए मार्गदर्शन आयोजित किए गए थे।कुछ स्थानों पर साधकों के पास उपलब्ध घरेलु ध्वनिमुद्रक (टेपरिकॉर्डर)पर हम प्रवचन व मार्गदर्शन का ध्वनिमुद्रण कर सके। इसलिए उसकी गुणवत्ता तकनीकी दृष्टि से अच्छी नहीं मिली; परंतु प.पू. डॉक्टरजी की विषय सहजता से प्रस्तुत करने की शैली और उनकी चैतन्यमय वाणी में प्रवचन की कैसेट, साधना करनेवाले जीवों को आकर्षित करती है । प.पू. डॉक्टरजी के कार्य का एकमात्र उद्देश्य अध्यात्मप्रसार होने के कारण इन प्रवचनों व मार्गदर्शनों की कैसेट्स का वितरण भी होने लगा।आज भी साधकों को इन्हें सुनते समय मन निर्विचार होना, ध्यान लगना तथा प.पू. डॉक्टरजी के अस्तित्व का अनुभव होना आदि अनुभूतियां होती हैं ।
– श्री. दिनेश शिंदे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
सनातन की ध्वनिचित्रीकरण सेवा का विस्तारित स्वरूप और उसके अंतर्गत विविध विषय
पहले किराए पर सामग्री लाकर बनाई जानेवाली कैसेट्स के निर्माण कार्य में अब भारी वृद्धि हुई है ।
सर्व सुविधाआें से युक्त और अत्याधुनिक तकनीक से युक्त भव्य कलामंदिर इसका सूचक है । इसमें प्रगत प्रकाशयोजना और व्यावसायिक स्तर पर निर्मित २ स्टुडियो, २ उत्पाद नियंत्रण कक्ष, श्रव्य रिकॉर्डिंग के लिए पृथक कक्ष और दृश्यश्रव्य-चक्रिकाआें का संकलन और उस संदर्भ में अन्य सेवाआें के लिए ८ कक्ष समाविष्ट हैं । इस स्टुडियो का निर्माण करते समय देश-विदेश के विशेषज्ञों का परामर्श लिया गया था ।
अब तक मराठी भाषा में ३६, हिन्दी भाषा में ३८० से अधिक, तथा तेलुगु और कन्नड भाषा में हिन्दुआें के त्यौहारों की जानकारी देनेवाली विविध धर्मसत्संगों की दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं बनाई हैं । मराठी, हिन्दी, तेलुगु और कन्नड भाषा के इन धर्मसत्संगों का विविध १४ चैनलों पर नियमित प्रसारण भी किया जा रहा है ।
देवताओं का नामजप उचित ढंग से कैसे करें, आरतीसंग्रह और साधना संबंधी मार्गदर्शन आदि के संदर्भ में मार्गदर्शन करनेवाली चक्रिकाएं (सीडी) भी उपलब्ध हैं ।
साथ ही धर्म,अध्यात्म,मंदिर,संतसम्मान, साधना संबंधी मार्गदर्शन, आध्यात्मिक उपचार, धार्मिक विधि आदि जैसे विषयों पर विपुल चक्रिकाएं आज सनातन के पास उपलब्ध हैं ।
ध्वनिचित्रीकरण सेवा का अर्थ है संहितालेखन के प्राथमिक स्तर से लेकर प्रत्यक्ष चित्रीकरण, प्रस्तुतीकरण, संकलन… सबकुछ केवल धर्मसेवा के लिए !
अत्यल्प साधनसामग्री से आरंभ हुई ध्वनिचित्रीकरण सेवा आज अत्याधुनिक स्टुडियो तक पहुंच चुकी है । इसकी प्रेरणा निःसंदेह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन एवं हिन्दू धर्म संबंधी ज्ञान का शीघ्रातिशीघ्र जिज्ञासुआें तक पहुंचाने की उनकी लगन है !
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात