हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के संदर्भ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का विचारधन !

भारत में वर्ष २०२३ में ईश्‍वरीय राज्य अर्थात हिन्दू राष्ट्र स्थापित होगा । यह आज तक अनेक संतों ने समय-समय पर बताया है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना से संबधित कोई भी आशादायी घटना स्थूल रूप में होती दिखाई नहीं दे रही । ऐसे में हिन्दू राष्ट्र के विषय में बोलना, किसी-किसी को अतिशयोक्ति लग सकती है; परंतु काल की पदचाप (आहट) पहले ही सुन लेनेवाले संतों ने, हिन्दू राष्ट्र रूपी उज्ज्वल भविष्य देख लिया है । अब उस दिशा में प्रयत्न करना, हमारी साधना है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विषय में अनेक लोगों के मन में उत्सुकता है । इस विषय में विस्तृत जानकारी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा लेखमाला में आप पढ सकते हैं । ईश्‍वर से प्रार्थना है कि इसे पढने से भविष्य में भारतभूमि में रामराज्य का अनुभव करानेवाले हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हिन्दू समाज को अथक प्रयास करने की प्रेरणा मिले !

 

हिन्दू राष्ट्र : मूलभूत विचार

१. व्याख्या तथा समानार्थी शब्द

१ अ. हिन्दू राष्ट्र का अर्थ है, विश्‍वकल्याण हेतु कार्यरत सात्त्विक लोगों का राष्ट्र !

मेरुतंत्र नामक धर्मग्रंथ में लिखा है हीनं दूषयति इति हिन्दुः । अर्थात जो हीन अथवा कनिष्ठ रज और तम गुणों का दूषयति अर्थात नाश करता है, वह हिन्दू है । दूसरे शब्दों में जो रज-तमात्मक हीन गुणोंका तथा उनसे होनेवाले कायिक, वाचिक और मानसिक स्तर के नीच कर्मों का परित्याग करता है; अर्थात सात्त्विक आचरण करता है, वह हिन्दू है । ऐसा सत्त्वगुणी व्यक्ति मैं और मेरा, इस संकीर्ण विचार को त्यागकर, विश्‍वकल्याण का व्यापक विचार करता है । इतिहास में इसके अनेक उदाहरण हैं ।

१. हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने उद्घोष किया था, कृण्वन्तो विश्‍वम् आर्यम् । (ऋग्वेद, मंडल ९, सूक्त ६३, ऋचा ५) अर्थात, संपूर्ण विश्‍व को आर्य (सुसंस्कृत) बनाएंगे !

२. उपनिषदों की शिक्षा के अनुसार अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१) अर्थात यह मेरा है और यह मेरा नहीं है ऐसा विचार क्षुद्र बुद्धि के लोग ही करते हैं । उदार चरित्र के (मन के) लोगों के लिए तो संपूर्ण पृथ्वी ही अपने परिवार समान है । अतः विश्‍वकल्याण हेतु कार्यरत सत्त्वगुणी लोगों (शासकों का तथा जनता का) राष्ट्र, यह हिन्दू राष्ट्र शब्द की सबसे उचित व्याख्या है ।

सनातन धर्म ही नीतिशास्त्र और सत्त्वगुणका मूलाधार है । इसलिए राष्ट्र के जीवन में सत्त्वगुण और नैतिकता (सत्य, सदाचार, परोपकार, इंद्रियनिग्रह इत्यादि) का संवर्धन करने के लिए संविधान में सनातन (हिन्दू) धर्माधिष्ठित राज्यप्रणाली लिखना तथा उसके अनुसार राष्ट्र की रचना होना अपेक्षित है । 

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा’

Leave a Comment