योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी द्वारा बताया गया दत्तमाला मंत्रजप करने पर रामनाथी, गोवा स्थित सनातन आश्रम परिसर में ऊगे हुए गूलर के पौधों और अन्य स्थानों पर उगे गूलर के पौधों का अध्ययन करने के लिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा लोलक-चिकित्सा से किए गए परीक्षण !
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का विशेष शोध !
श्रीमती मधुरा कर्वे : ईश्वर ने ही इस चराचर सृष्टि का निर्माण किया है । मनुष्य, प्राणी, पक्षी, पेड-पौधों का परस्पर निकट संबंध है । प्राचीन काल में ऋषिमुनि वन में रहते थे । वन की वनस्पतियों, फूलों और पेडों का महत्त्व उन्होंने जाना । मनुष्य का स्वास्थ्य सुधारने और रोग दूर करने के लिए उन्होंने अनेक प्रकार की वनौषधियों का निर्माण किया ।
भारतीय संस्कृति में इन वृक्षों में से कुछ वृक्षों को देववृक्ष के नाम से संबोधित किया जाता है । उनमें से एकहै गूलर ! अनेक प्राचीन ग्रंथों में बताया है कि इस वृक्ष में त्रिमूर्ति का वास्तव्य है । इस वृक्ष की जडों में ब्रह्मा, मध्यभाग में विष्णु और अग्रभाग में शिव का अस्तित्व होता है । इसलिए इस वृक्ष की पूजा करने हेतु कहा गया है ।
ये वृक्ष हवा में अधिक मात्रा में प्राणवायु (ऑक्सिजन) छोडते हैं । इसलिए पर्यावरण का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद में औषधियों की दृष्टि से भी यह अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण वृक्ष है । सनातन संस्था पर आए संकट दूर होने के लिए योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी की आज्ञा के अनुसार रामनाथी स्थित सनातन आश्रम के ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ प्रारंभ हुआ । उस दिन से साधकों को आश्रम में दिन प्रतिदिन दत्ततत्त्व बढने की प्रतीति हो रही है तथा आश्रम परिसर में एक विशिष्ट प्राकृतिक परिवर्तन हुआ है । पाठ प्रारंभ होने के पश्चात ध्यानमंदिर के निकट के यज्ञकुंड के परिसर में गूलर के ५६ पौधे अपनेआप ऊग आए हैं । इससे सिद्ध होता है कि मंत्रपाठ के कारण वातावरण सात्त्विक बना है तथा मंत्र के तत्त्वानुसार प्रकृति में भी सकारात्मक परिवर्तन होता है । ऐसे इस देववृक्ष के संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने एक विशिष्ट शोध किया है, वह आगे दे रहे हैं ।
तीन स्थान के गूलर के वृक्षों का लोलक-चिकित्सा द्वारा किया गया परीक्षण
२२ और २३.१२.२०१५ को गूलर वृक्षों के लोलक-चिकित्सा द्वारा किए गए परीक्षण का निष्कर्ष निम्नांकित है ।
टिप्पणी १ – ऐसा माना जाता है कि जहां गूलर का वृक्ष होता है, वहां साधारणतः भूमि के नीचे जल का संग्रह मिलता है । परीक्षण में ज्ञात हुआ है कि इस वृक्ष के २४ फुट नीचे जल मिलेगा ।
टिप्पणी २ – गूलर के वृक्ष साधारणतः भूमि के नीचे जलसंग्र्रह होने, आसपास का परिसर (अथवा वास्तु) सात्त्विक होने अथवा प्राकृतिक रूप से उगते हैं; परंतु लोलक चिकित्सा के निष्कर्ष के अनुसार आश्रम के बाहर वृक्ष उगने का कारण अन्य है । परीक्षण के पश्चात मन में विचार आया कि अन्य कारण क्या हो सकता है ?, तब अंतर्मन से विचार आया कि यह वृक्षयोनी का साधक जीव है तथा यहां रहकर साधना कर रहा है ।
सनातन आश्रम के साधक योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी के मार्गदर्शनानुसार दत्तमाला जप कर रहे हैं । उनके आशीर्वाद से गूलर के पौधे उगे हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से परीक्षण करने की सेवा मिली और उन्होंने ही करवा ली, इसलिए उनके चरणों में भावपूर्ण कृतज्ञता !
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, फोंडा, गोवा.