कवळे विद्यालय संकुल का वार्षिक स्नेहसंमेलन एवं बक्षीस वितरण समारोह
फोंडा (गोवा) : वर्तमान में; आज की पीढी पाश्चात्त्य संस्कृति के प्रभाव में है, परंतु इसी संस्कृति के कारण भविष्य में अपनी पीढियों की हानि होगी। भारतीय संस्कृति विश्व में ‘सर्वश्रेष्ठ’ है !
सनातन संस्था की साधिका श्रीमती ज्योती सुदिन ढवळीकर ने कवळे विद्यालय संकुल की ओर से आयोजित २८ वें वार्षिक स्नेहसंमेलन एवं बक्षीस वितरण समारोह में ऐसा प्रतिपादित किया। ढवळी, फोंडा में श्री भगवतीदेवी के प्रांगण में आयोजित समारोह में श्रीमती ढवळीकर प्रमुख अतिथि थीं।
इस समय व्यासपीठ पर विशेष अतिथि मराठी राजभाषा युवा समिति के श्री. मच्छींद्र च्यारी, कवळे की उपसरपंच श्रीमती सुनीता नाईक, मुख्याध्यापक श्री. श्रीकृष्ण देसाई, श्री. सुदेश पारोडकर, श्रीमती संपदा (शेवंती) नाईक एवं विद्यालय संकुल की गुटप्रमुख श्रीमती कांचन नाईक उपस्थित थीं।
स्वागतगीत से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। संकुल की गुटप्रमुख श्रीमती कांचन नाईक ने प्रास्ताविक किया। श्रीमती गंधाली नागेशकर ने मान्यवरों का परिचय कराया। श्रीमती रेखा नाईक ने वार्षिक अहवाल प्रस्तुत किया। श्रीमती सिद्धी निगळ्ये, श्रीमती माधवी कपिलेश्वरकर एवं श्रीमती मनुजा नाईक ने विजयी छात्रों की सूची घोषित की। श्रीमती श्रीलेखा लिमये ने आभारप्रदर्शन किया। तत्पश्चात बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न हुआ।
इस अवसर पर श्रीमती ढवळीकर ने आगे कहा कि, अपनी भारतीय संस्कृति में दीप बुझा कर नहीं, अपितु दीप प्रज्वलित कर एवं औक्षण कर जन्मदिन मनाया जाता है। वर्तमान में हिन्दू युवकों में ‘व्हॅलेंटाईन डे’ का फॅड आया है। हमें इन सभी अनिष्ट पाश्चात्य प्रथाओं का संघटित रूप से विरोध करना चाहिए। बच्चें अनुकरण एवं निरीक्षण से सिखते हैं। इसलिए उनके सामने अच्छी बातों को रखना महत्त्वपूर्ण है ! अपने बच्चों का बचपन कहीं बिखर न जाए इसलिए अभिभावकों ने अपने बच्चों से सुसंवाद रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया है !
अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करनेवाले
बच्चें, अधिक सफल सिद्ध होते हैं ! – श्री. मच्छींद्र च्यारी
इस अवसर पर श्री. मच्छिंद्र च्यारी ने प्रतिपादित किया कि, अपनी मराठी भाषा समृद्ध है तथा इस भाषा से प्राप्त शिक्षा छात्रों का व्यक्तिमत्व समृद्धि की ओर अग्रसर होते हुए अधिक खुलता है तथा प्राथमिक स्तर पर मराठी माध्यम से सिखे बच्चें अंग्रेजी माध्यम से सिखे बच्चों की अपेक्षा अधिक सफल सिद्ध होते हैं !
श्री. मच्छिंद्र च्यारी ने आगे कहा कि, ‘छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ साथ अपनी संस्कृति एवं परंपराओं के संदर्भ में भी सम्मान उत्पन्न करनेवाली शिक्षा प्रदान करनी चाहिए !’