विविध संतों से मार्गदर्शन प्राप्त कर, अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन और वैसा आचरण करनेवाले परम पूज्य डॉक्टरजी !

१. संत प.पू. अण्णा करंदीकरजी के विषय में जानकारी मिलना
और उनसे मिलने पर, ‘वे मार्गदर्शन करेंगे’, यह परम पूज्य डॉक्टरजी को लगना

‘डहाणू के एक संत परम पूज्य (प.पू.) अण्णा करंदीकर आयुर्वेदीय चिकित्सालय में रोगियों को देखने प्रत्येक महीने ३ दिन दादर (मुंबई) आते थे । उस समय प.पू. (डॉ.) आठवलेजी अध्यात्म का प्रायोगिक दृष्टि से अध्ययन कर रहे थे । प.पू. अण्णा करंदीकर से परिचय होने के कुछ दिन पहले अमेरिका के एक विश्‍वविद्यालय की ओर से प.पू. डॉक्टरजी को व्याख्यान के लिए निमंत्रण मिला; परंतु तब भी प.पू. अण्णा के पास जाना जारी था । उन्हें विश्‍वास हो गया था कि ‘अमेरिका में नाम, प्रसिद्धि, और पैसा मिलेगा; पर मेरे लिए प्रिय अध्यात्म संबंधी ज्ञान इस भारत में ही मिलेगा । इसलिए उन्होंने वहां जाने का विचार त्याग दिया और अमरीकी विश्‍वविद्यालय को सूचित कर दिया कि उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय लिया है ।

 

२. अमेरिका जाने का विचार त्याग देने के पश्‍चात प.पू. करंदीकर से नियमित मिलना

प.पू. डॉक्टरजी पहले अपने प्रश्‍नों की सूची बना लेते थे । फिर प.पू. अण्णा से मिलने तीन दिन दादर जाते थे । तीनों दिन दोपहर और सायंकाल रोगियों की जांच हो जाने पर प.पू. डॉक्टरजी, प.पू. अण्णा करंदीकर से मिलकर अपने प्रश्‍न पूछते थे ।

 

३. प.पू. अण्णा करंदीकर के वाक्य ‘आपके पास आने
में विलंब हुआ’ का अर्थ कुछ समय पश्‍चात समझ में आना

कुछ दिन पश्‍चात प.पू. अण्णा प.पू. डॉक्टरजी से बोले, ‘‘आपको मेरे पास आने में बहुत देर हो गई ।’’ उस समय प.पू. डॉक्टरजी को लगा कि मेरी आयु ४५ वर्ष की है; इसलिए उन्होंने मुझे ऐसा कहा । कुछ दिन पश्‍चात पूज्य अण्णा करंदीकर को बडी आंत का कर्करोग हो गया । उसकी शल्यचिकित्सा कर रोगग्रस्त अंतडी को काटकर निकाल देना पडा । तब मुझे पू. करंदीकर के शब्द ‘देर हो गई’ का वास्तविक अर्थ समझ में आया ।

 

४. अध्यात्म का आगे का अध्ययन करने के लिए
अच्छा चलनेवाला चिकित्सालय एक समय बंद रखना

प.पू. अण्णा करंदीकर के मार्गदर्शन अनुसार प.पू. डॉक्टरजी को अध्यात्म का आगे का अध्ययन करना था । इसके लिए उन्होंने अपना अच्छा चलनेवाला चिकित्सालय एक समय बंद रखने का निर्णय लिया । उनके साथ उनकी पत्नी डॉ. (श्रीमती) कुंदा और बडे भाई (प्रसिद्ध बालरोग विशेषज्ञ कै. (पू.) डॉ. वसंत आठवले) भी पूज्य अण्णा के यहां जाते थे ।

 

५. प.पू. अण्णा करंदीकर का प.पू. डॉक्टरजी को सूक्ष्म का अध्ययन करना सिखाना

प.पू. डॉक्टरजी कुछ दिन पश्‍चात स्वयं ही सूक्ष्मज्ञान के विषय में प्रयोग करने लगे । प.पू. अण्णा ने उन्हें सिखाया कि ‘सूक्ष्म से कैसे निरीक्षण करना चाहिए, ईश्‍वर से कैसे प्रश्‍न कर उत्तर प्राप्त करना चाहिए, सूक्ष्मदेह से यात्रा कैसे करनी चाहिए, आवश्यक स्थान पर कैसे प्रकट होना चाहिए और सूक्ष्मरूप से किसी को अनुभूति कैसे देनी चाहिए ?

 

६. जिज्ञासावश अन्य संतों से भी मार्गदर्शन लेना

प.पू. डॉक्टरजी जिज्ञासावश मलंगशाह बाबा, पूज्य काणे महाराज, हरि ॐ बागवे और प.पू. थोरले जोशीबाबा जैसे संतों से भी मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए मिलते थे ।

 

७. प.पू. अण्णा करंदीकरजी का प.पू. डॉक्टरजी से
प.पू. भक्तराज महाराज को अपना गुरु मानने के लिए कहना

प.पू. अण्णा करंदीकरजी के प.पू. भक्तराजजी से पुराने स्नेहसंबंध थे । प.पू. अण्णा उनके पास आनेवाले अधिकतर साधकों को प.पू. भक्तराज महाराजजी के पास लेकर जाते थे । उन्होंने ही प.पू. डॉक्टरजी से कहा कि ‘‘आप प.पू. भक्तराज महाराजजी को गुरु मानें ।’’ इतना ही नहीं, उन्होंने प.पू. भक्तराज महाराजजी से भी कहा कि आप प.पू. डॉक्टरजी का शिष्यरूप में स्वीकार करें ।

 

८. विविध संतों द्वारा प.पू. डॉक्टरजी का समय-समय पर ध्यान रखा जाना

एक अघोरी उपासना करनेवाले संत प.पू. डॉक्टरजी के संपर्क में थे । इसलिए पू. अण्णा ने प.पू. काणे महाराज से कहा कि वे शीव आश्रम में प.पू. डॉक्टरजी के घर, ३५ दिन रहें । इसके पश्‍चात, एक बार जब वे अघोरी उपासना करनेवाले संत शीव (मुंबई) में प.पू. डॉक्टरजी के घर पर थे, तब प.पू. अण्णा और प.पू. भक्तराज महाराज स्वयं शीव (सायन) पहुंचे और वे अघोरी उपासना करनेवाले संत प.पू. डॉक्टरजी के घर से निकल गए और पुनः कभी नहीं आए । इस प्रकार अनेक संत समय-समय पर प.पू. डॉक्टरजी की सहायता करते थे और आज भी करते हैं ।’

– (पूज्य) वैद्य विनय भावे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

स्रोत : पाक्षिक सनातन प्रभात

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