प्रस्तुत लेख में हम पूजा के पूर्व, पूजास्थल और उपकरणों की शुद्धि कैसे करें; देवी-देवता के तत्त्व से संबंधित रंगोली बनाना, पूजा हेतु बैठने के लिए आसनों के विविध प्रकार, भगवान पर चढाए गए पुष्प (निर्माल्य) उतारने की और देवी-देवताओं के चित्र और मूर्ति पोछने की योग्य पद्धति संबंधी जानकारी देखेंगे ।
१. स्तोत्रपाठ अथवा नामजप करना
पूजा की तैयारी करते समय स्तोत्रपाठ अथवा नामजप कभी भी कर सकते हैं । नामजप की तुलना में स्तोत्र में सगुण तत्त्व अधिक होता है; इसलिए स्तोत्र का उच्चारण ऊंचे स्वर में करें तथा नामजप मन में करें । नामजप मन ही मन में न हो, तो ऊंचे स्वर में करने में कोई आपत्ति नहीं ।
२. पूजास्थल की शुद्धि व उपकरणों की जागृति करना
अ. पूजास्थल की शुद्धि
१. पूजाघर में झाडू लगाएं । यथासंभव पूजा करनेवाला ही झाडू लगाए ।
२. झाडू लगाने के उपरांत कमरे को गोबर से लीपें । कमरे की भूमि मिट्टी की हो, तो उसे गोबर से लीपना संभव है । भूमि मिट्टी की न हो, तो उसे स्वच्छ जल से पोछें ।
३. कमरे में आम के या तुलसी के पत्तेसे गोमूत्र छिडकें । गोमूत्र उपलब्ध न हो, तो विभूति के जल का प्रयोग करें । तत्पश्चात् कमरे में धूप दिखाएं ।
आ. उपकरणों की जागृति
देवतापूजन के उपकरणों को भली-भांति स्वच्छ कर लें । उन पर तुलसीदल अथवा दूर्वा से जल का प्रोक्षण करें ।
३. रंगोली बनाना
अ. संभव हो, तो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां रंगोली बनाएं ।
आ. रंगोली ऐसी हो, जो मुख्य देवता का तत्त्व आकर्षित करे । उसी प्रकार किसी विशेष देवता की पूजा करते समय उस तत्त्व से संबंधित रंगोली बनाएं ।
इ. रंगोली बनाते समय वह देवता के नाम या रूप की न बनाकर स्वस्तिक अथवा बिंदुयुक्त बनाएं ।
ई. रंगोली बनाने के उपरांत उस पर हलदी-कुमकुम डालें ।
उ. रंगोली में देवता के तत्त्व हेतु पूरक रंगोें का प्रयोग करें, उदा. श्री गणपति की रंगोलीमें लाल रंग व हनुमान की रंगोलीमें सिंदूरी रंग का प्रयोग करें । (इसके लिए शीघ्र ही सात्त्विक रंगोली लेखमाला प्रस्तुत करेंगे !)
४. शंखनाद करना
अ. खडे होकर, गर्दन ऊर्ध्व दिशा की ओर (ऊपर) कर, एकाग्रता साध्य करने का प्रयत्न करें ।
आ. श्वास को छातीमें पूर्णतः भर लें ।
इ. तदुपरांत शंंखध्वनि आरंभ कर ध्वनि की तीव्रता बढाते जाएं व अंतमें तीव्र नाद करें । जहांतक संभव हो, शंख एक श्वासमें बजाएं ।
ई. शंखिणी का नाद न करें ।
५. देवतापूजन के लिए आसन का
प्रयोग करना स्तर के अनुसार प्रयुक्त आसन
१. कम स्तर के (२० से ३० प्रतिशत स्तरके) पूजक, अर्थात् साधारण पूजक आसन के लिए पीढा लें । पीढा दो पट्टियों को जोडकर न बनाया गया हो, अर्थात् वह अखंड हो । पीढेमें लोहे की कीलें न हों । यथासंभव पीढे पर रंग न चढाया गया हो ।
२. मध्यम स्तर के (३० से ५० प्रतिशत स्तरके) पूजक रेशमी या तत्सम आसन का प्रयोग करें ।
३. उच्च स्तर के (५० प्रतिशत से अधिक स्तरके) पूजक कोई भी आसन का प्रयोग करें ।
आसन के नीचे रंगोली बनाएं । आसन के लिए कंबल, रेशमी वस्त्र इत्यादि लिया हो, तो उसके चारों ओर रंगोली बनाएं । तदुपरांत उस पर बैठने से पूर्व खडे होकर भूमि व देवतासे प्रार्थना करें, ‘आसन के स्थान पर आप का ही चैतन्यमय निवास रहे ।’
६. आचमन करना
अ. जल से भरा कलश, जलपात्र, आचमनी व जल छोडने के लिए ताम्रपात्र लें । कलश का थोडासा जल पात्र में डालें । तत्पश्चात् पात्र का जल आचमनी द्वारा बाएं हाथ से दाहिनी हथेली पर लेकर, ‘ॐ श्री केशवाय नमः ।’ कहकर उसे प्राशन करें । पुन: जल लेकर ‘ॐ नारायणाय नमः ।’ कहकर उसे प्राशन करें । तदुपरांत पुन: एक बार जल लेकर ‘ॐ माधवाय नमः ।’ कहकर प्राशन करें । अंत में हथेली पर जल लेकर ‘ॐ गोिंवदाय नमः ।’ कहकर उसे ताम्रपात्र में छोडें ।
आ. आचमन करते समय जल पीने की ध्वनि न करें ।
७. निर्माल्यविसर्जन
अ. देवताओं पर चढाए गए निर्माल्य को अंगूठे व अनामिका से उठाएं ।
आ. निर्माल्य हटाने के उपरांत उसे सूंघकर अपनी बार्इं ओर रखें ।
८. प्राणायाम, देशकाल उच्चारण, संकल्प व न्यास करें ।
९. कलश, शंख, घंटी व दीप की पूजा
शास्त्र में बताए अनुसार साधारणत: उपकरणों की पूजा करते समय उपकरणों पर गंध, अक्षत व फूल एकत्रित अर्पण करें । कुछ स्थानों पर उक्त घटकों के साथ ही तुलसीपत्र अर्पण करने की पद्धति है ।
अ. शंख की पूजा करते समय उसमें जल भरें । शंख को अक्षत अर्पण न करें ।
आ. घंटी को तुलसीपत्र अर्पण न करें ।
इ. कुछ स्थानों पर दीप को गंध, अक्षत व फूल अर्पण करने के उपरांत हलदी-कुमकुम अर्पण करने की भी पद्धति है ।
१०. पूजासामग्री व पूजास्थल की तथा अपनी शुद्धि
आचमनीमेें कलश व शंख का जल एकत्रित करें । तुलसीपत्रसे ‘पुंडरीकाक्षाय नमः ।’ का मंत्रोच्चारण कर वह जल पूजासामग्रीपर, आसपास तथा अपने शरीर पर छिडकें । अंत में वह तुलसीपत्र ताम्रपात्र में छोडें ।
देवताओं की मूर्तियों व चित्रों को स्वच्छ करना : यदि देवताओं की मूर्तियां धातु की हों, तो उन्हें नींबू, इमली और पानी से धोने के उपरांत वस्त्र से स्वच्छ पोेंछ लें । मिट्टी की मूर्ति हो, तो सूखे वस्त्र से धीरे-धीरे पोंछें । देवताओं के चित्र हों, तो उन्हें गीले वस्त्र से पोंछने के उपरांत सूखे वस्त्र से पोंछें । मूर्तियों व चित्रों को पोंछते समय देवता के (छाती के स्थान पर स्थित) अनाहतचक्र के बिंदु से आरंभ कर परिक्रमा-समान गोलाकार दिशा में बाहर की ओर पोंछते जाएं ।