चैतन्यमयी गोदुग्ध, घी, गोमय एवं गोमूत्र का उपयोग कर विदेश में जानेवाला धन बचाएं !

१. गाय का दूध और घी ही नहीं, अपितु

गोमूत्र भी आरोग्यदायी एवं रोगनाशक होना

        गोसेवा से संतान प्राप्त होती है । गोबर का उपयोग खाद के रूप में करने से अन्नरूपी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । केवल दूध-घी ही नहीं; अपितु गोमूत्र भी आरोग्यदायी और रोगनाशक है । बिना गोवंश (बैल) के खेती का कामकाज कठिन है । गाय की मृत्यु के पश्‍चात उसके खुर और चमडी आदि का उपयोग किया जाता है । भारतवर्ष का उज्ज्वल भविष्य, गोवंश की रक्षा पर निर्भर है ।

२. गोमय ‘मल’ नहीं, ‘मलशोधक’ है

        गोमय में लक्ष्मी का वास होता है, यह शास्त्रवचन है । गोमय मल नहीं; अपितु मलशोधक है । प्रदूषण एवं अणुकिरणों से बचाव हेतु गोमय रक्षा-कवच जैसा है । गोमय उत्तम संपूर्ण खाद है । गोमय की राख से मलदुर्गंध नष्ट होती है । इसी राख से बर्तन स्वच्छ होते हैं, जिससे करोडों रुपयों की बचत होती है ।

३. गोमय एक शाश्‍वत ऊर्जा होना

        ‘गोमय एक शाश्‍वत ऊर्जा है । गोमय से त्वचारक्षक साबुन, धूपबत्ती एवं ठंडी-उष्णता का अवरोधक प्लास्टर का उत्पाद होता है । यह प्रमाणित हुआ है कि गोमय के कारण ही खेत की बंजर भूमि पुनः खेती योग्य बनती है ।’ – (विश्‍व हिन्दू परिषद की दिनदर्शिका – २०१० )

गाय का दूध कभी भी जूठा नहीं होता !

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        ‘बछडे के दुग्धपान करने पर गाय का दूध जूठा नहीं होता । जिस प्रकार चंद्र पहले अमृत का संग्रह करता है तत्पश्‍चात उसकी वर्षा करता है, उसी प्रकार ये रोहिणी गायें अमृत से उत्पन्न दूध देती हैं । वायु, अग्नि, स्वर्ण एवं देवताओं द्वारा प्राशन किया अमृत, कभी जूठी नहीं होतीं, उसी प्रकार गायों का बछडों के प्रति स्नेह होने के कारण बछडों के दुग्धपान करने के उपरांत उनका दूध दूषित अथवा जूठा नहीं होता । (तात्पर्य, दुग्धपान करते समय बछडों के मुख से गिरनेवाला फेन भी अशुद्ध नहीं माना जाता ।) – (संदर्भ : महाभारत, अनुशासनपर्व ७७. २४-२६)’ – (हिन्दवी, १४ से २१ मार्च २०१०)

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