भारत में बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है । इस त्यौहार को उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब एवं हरियाणा में मनाया जाता है। बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है। माना जाता है की इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। बैसाखी किसानो का प्रमुख त्योहार होता है ।
बैसाखी त्योहार का इतिहास
१. किसानों के लिए विशेष महत्व
किसान अच्छी फसल होने की खुशी में भगवान को धन्यवाद देते हैं और भगवान से कामना करते हैं की इसी तरह हर साल अच्छी फसल की कामना करते हैं । दीपावली की तरह ही किसान बैशाखी त्योहार मानने के लिए हफ्तों पहले से घर की सफाई करते है । गावों में हर जगह खुशी का माहौल बना होता है । पंजाब बैसाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। ढोल-नगाडो की थाप पर युवक-युवतियां प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयां देकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं । इस दिन गेहूं, तिलहन और गन्ने की फसल काटने की शुरूआत होती है।
२. खालसा पंथ की स्थापना
सिखों के लिए इस त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है। इस दिन सिखों के दशम् पिता गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी ने १६९९ में श्री आनंदपुर साहिब में में खालसा पंथ की स्थापना की थी । ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है। इसका अर्थ है– शुद्ध, पावन या पवित्र । इसके पीछे गुरु गोबिन्द सिंह जी का मुख्य उदेश्य लोगों को मुगल शासकों के अत्याचारों और जुल्मों से मुक्त दिलाना था। खालसा पंथ की स्थापना द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लोगों को जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव छोडकर धर्म और नेकी पर चलने की प्ररेणा दी।
३. स्वधीनता और बैसाखी
बैसाखी के त्यौहार को स्वतंत्रता संग्राम से भी जोडा जाता है। इसी दिन वर्ष १९१९ को हजारों लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे। यहां जनरल डायर ने हजारों निहत्थे लोगों पर फायरिंग करने के आदेश दिए थे। इस घटना ने देश की आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की।