१. गुरुदेव का साधक के जीवन में प्रवेश होते ही
आरंभ हो जाती है ‘आनंददायी दिवाली’ !
‘अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जानेवाला त्यौहार है दिवाली ! ‘दिवाली अर्थात उत्साह । दिवाली अर्थात आनंद’, ऐसा विचार करनेपर साधकों के जीवन में केवल गुरु भगवान की कृपा के कारण इतना आनंद होता है कि हम प्रत्येक क्षण दिवाली अनुभव करते हैं । रात्रि में यात्रा करते समय रास्ते के दोनों ओर रेडियम पर प्रकाश पडने से वे हमें दीपों की माला समान लगती हैं । वे हमें मार्ग दिखाती हैं । मार्ग के ‘रोड बैरियर’ व मोड ध्यान में लाकर देती हैं । इसलिए हम सकुशल यात्रा कर; अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच पाते हैं । इसके साथ ही गुरुदेव ने हमारी आध्यात्मिक यात्रा सरल-सुलभ बनाई है । हमें ‘कहां जाना है ?’, यह ध्येय भी सामने रखा है । इस साधनापथ के दोनों ओर व्यष्टि और समष्टि साधना की दीपमाला लगी हैं । उस दीपमाला के प्रकाश में गुरुदेव हमारी यात्रा करवा लेते हैं । वे ही मोड और ‘रोड बैरियर’ इत्यादि दिखा रहे हैं । गुरुदेव के प्रति कितनी कृतज्ञता व्यक्त करें ? इस दिवाली में हम अंतर्मन में गुरु के प्रति कृतज्ञता के दीप लगाएंगे । जिस क्षण गुरुदेव ने हमारे जीवन में प्रवेश किया, उस क्षण से साधक के जीवन में ‘आनंद की दिवाली’ आरंभ हो गई । दिवाली के प्रत्येक दिन की विशेषताएं श्रीगुरुचरणों से जोडकर आनंद लेंगे ।
२. धनतेरस
गुरुदेव ने हम पर जो अपरंपार कृपा की है, उसे अनुभव करेंगे !
धनत्रयोदशी अर्थात धन्वंतरी जयंती ! साधक के जीवन का खरा आरोग्य अर्थात श्रीगुरु की अपार कृपा, प्रीति और वात्सल्य ! धनत्रयोदशी के दिन ‘गुरुदेव ने हम पर आरोग्य के संदर्भ में कैसी अपार कृपा की है’, यह दिनभर कृतज्ञतापूर्वक स्मरण कर ‘आध्यात्मिक धनतेरस’ मनाएंगे ।
३. नरकचतुर्दशी
गुरुदेव द्वारा सिखाई गई स्वभावदोष और अहं-निमूर्र्लन की प्रक्रिया गंभीरता से कर, दोषमुक्त और अहंमुक्त होने का आनंद लेंगे !
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर का वध कर प्रजा को भयमुक्त कर आनंद दिया था । हममें स्वभावदोष और अहं, इस नरकासुररूपी वृत्ति का निर्मूलन करने के लिए गुरुदेव ने स्वभावदोष और अहं-निमूर्र्लन की प्रक्रिया सिखाई । स्वभावदोष और अहंं के बंधन से वे ही हमें मुक्त कर रहे हैं । आईए, यह प्रक्रिया गंभीरता से कर उनसे मुक्त होने का आनंद अनुभव करेें ।
४. लक्ष्मीपूजन
गुरुदेव द्वारा दिए गए गुणों के धन का कृतज्ञतापूर्वक
भान रखकर उनके चरणों में लीन होने का आनंद लेंगे !
इस दिन श्रीविष्णु ने देवताआें को बलिराजा के कारागृह से मुक्त किया था । जहां लक्ष्मी वहां भगवान श्रीविष्णु का अस्तित्व होता ही है । गुणों की दीपमाला से स्वभावदोष-अहंरूपी अंधःकार नष्ट होता है । इस दिन ‘गुरुदेव भगवान ने ही ये गुणरूपी धन दिया है’, कृतज्ञतापूर्वक इस बात का ध्यान रख कर उनके चरणों में लीन होने का आनंद लेंगे ।
५. बलि प्रतिपदा
‘मन के अहंरूपी राजा बलि के सिर पर श्रीगुरु के चरण हैं’,
ऐसा भाव रखकर उनके चरणों में शरणागत होंगे !
भगवान श्रीविष्णु ने वामन अवतार लेकर इसी दिन बलिराजा के सिर पर अपने चरणकमल रखकर उसे मुक्त किया था । ‘अपने मन के अहंरूपी राजा बलि के सिर पर श्रीगुरु के चरण हैं’, यह भाव रखकर उनके चरणों में शरणागत होंगे । आज हम अनुभव करेंगे कि दिनभर में ‘मन में आनेवाले प्रत्येक अहं के विचार पर श्रीगुरु अपने चरणकमल रखकर उसे नष्ट कर रहे हैं ।’
६. भैयादूज
अखंड शरणागत और कृतज्ञता भाव में रहकर,
अखंड गुरुस्मरणरूपी पुष्प श्रीगुरुचरणों में समर्पित करेंगे !
यह दिन दिवाली से लग कर आता है; इसलिए इसका समावेश दिवाली में किया जाता है । यह दिन कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है । साधक गुरुचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । गुरु ही साधक के जीवन में प्रत्येक नाता निभाते हैं । वास्तव में वे ही हमारे माता-पिता हैं । माता-पिता बनकर वे हमें संस्कारित करते हैं । वे ही हमारे बंधु और सखा भी हैं । हम छोटे बनकर उनसे हठ भी करते हैं । हम उनके सामने ही खुले मन से बात कर सकते हैं और वे ही हमें भली-भांति समझ सकते हैं । यह सत्य है कि उनके समान प्रेम हम पर अन्य कोई नहीं कर सकता है । ऐसे श्रीगुरु के चरणों में हम उन्हें भैयादूज पर क्या दे सकेंगे ?
भगवान सबके स्वामी हैं । वे संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं । उनके पास तो सभी कुछ है । परंतु सुदामा के पोहे आनंद से मांगकर खानेवाले कृष्ण समान हमारे प्राणप्रिय गुरुदेव हैं । इसलिए इस दिन स्वभावदोष और अहं निमूर्र्लन प्रक्रिया में निरंतरता और अखंड शरणागत एवं कृतज्ञता भाव में रहकर अखंड गुरुस्मरण करना, यही उपहार उनके चरणों में अर्पित करेंगे ।
७. आइए, गुरुदेव द्वारा मन में प्रज्वलित
राष्ट्र्र-धर्म के कार्य की ज्योति से अज्ञान के
अंधकार में डूबे समाज को दिशा देने का कार्य करें !
इस दिवाली पर श्रीगुरु को अपेक्षित ऐसे करने के लिए संकल्प कर, निरंतर प्रयत्न करेंगे । ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ गुरुदेव का समष्टि ध्येय है । आज राष्ट्र्र और धर्म की स्थिति बिकट है । राष्ट्र को ग्रहण लगा है । इस स्थिति को बदलना होगा । दिवाली के पूर्व हम घर की स्वच्छता करते हैं, बंदनवार लगाते हैं, रंगोलियां बनाते हैं और दीपमाला से सजावट करते हैं । यह सब किसलिए केवल दिवाली के लिए ! इसीप्रकार राष्ट्र-धर्म पर लगे ग्रहण को हटाने के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ आने का आनंद लेना है । भगवान ने आपके मन में राष्ट्र्र-धर्म के कार्य की ज्योति प्रज्वलित की है । उस दीपमाला में अज्ञान के अंधकार में समाज को दिशा देने का कार्य वे ही करवाएंगे । भगवान ने अपने कार्य के लिए हमें माध्यम बनाया है । इसके लिए उनके श्रीचरणों में कृतज्ञताभाव में रहकर पूरे उत्साह से सेवा और साधना करेंगे; इससे पता ही नहीं चलेगा कि ‘हिन्दू राष्ट्र का सवेरा कब हो गया ।’
– कु. स्वाती गायकवाड, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.