वरुणदेवता की कृपा हम पर एवं हमारे परिजनों पर सदैव बनी रहे, इसलिए समुद्र के किनारे रहनेवाले और समुद्र के माध्यम से अपना चरितार्थ चलानेवाले लोग श्रावण पूर्णिमा के दिन वरुणदेवता की पूजा कर समुद्र को नारियल अर्पण करते हैं । यह पूजा करने के पीछे का शास्त्र इस लेख के माध्यम से स्पष्ट किया गया है ।
समुद्र का पूजन
नागपंचमी के उपरांत श्रावण मास में आनेवाला यह दूसरा महत्त्वपूर्ण त्यौहार है । श्रावणी पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं ।
महत्त्व
‘इस दिन ब्रह्मांड में कार्य करनेवाली आपतत्त्व की तरंगें वायुमंडल (वातावरण) में अधिकाधिक मात्रा में भ्रमण करती रहती हैं । वरुणदेवता की पूजा से इन आपतत्त्वात्मक तरंगों का लाभ हमें मिलता है तथा ब्रह्मांड का चैतन्य अल्प कालावधि में इस आपतत्त्व के प्रवाह के साथ हमारे भीतर (देह में संक्रमित करना) आना संभव होता है । इस दिन आपतत्त्वरूपी वायुमंडल की मात्रा सागर के किनारे तथा नदी के किनारों पर अधिक होता है । इसलिए वह प्रदेश पूजाविधि के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है । इस दिन वरुणदेवता का आशीर्वाद प्राप्त कर अधिकतम मात्रा में ब्रह्मांड की आपतत्त्वस्वरूप तरंगें ग्रहण करने का प्रयास किया जाता है ।’ – सूक्ष्म-जगत के ‘एक विद्वान’ (श्रीमती अंजली गाडगीळजी के माध्यम से)
समुद्रपूजन
श्रावण पूर्णिमा पर समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग वरुणदेव हेतु समुद्र की पूजा कर, उसे नारियल अर्पण करते हैं । इस दिन अर्पित नारियल का फल शुभसूचक होता है एवं सृजनशक्ति का भी प्रतीक माना जाता है । नदी से संगम एवं संगम की तुलना में सागर अधिक पवित्र है । ‘सागरे सर्व तीर्थानि’ ऐसा कथन है, अर्थात सागर में सर्व तीर्थ हैं । सागर की पूजा अर्थात वरुणदेव की पूजा । जहाज द्वारा माल परिवहन करते समय वरुणदेव को प्रसन्न करने पर वे ही सहायता करते हैं ।
नारियल (श्रावण) पूर्णिमा के दिन की जानेवाली प्रार्थना
‘नारियल (श्रावण) पूर्णिमा से पूर्व समुद्र में ज्वार आने तथा लहरों की मात्रा अधिक होने के कारण समुद्र उफनता है । नारियल (श्रावण) पूर्णिमा के दिन समुद्रदेवता को नारियल अर्पण करते हैं तथा ‘आपके रौद्ररूप से हमारी रक्षा होने दें और आपका आशीर्वाद प्राप्त होने दें’, ऐसी प्रार्थना भी करते हैं । इससे समुद्र में आनेवाली ज्वार की मात्रा अल्प होता है ।’
– कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था, गोवा.
समुद्र को नारियल कैसे अर्पण करना चाहिए ?
नारियल पूर्णिमा के दिन समुद्र में नारियल अर्पण करते समय उसे पानी में फेंकने से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता । इसलिए नारियल धीरे से तथा भावपूर्वक जल में छोडना चाहिए तथा उक्त प्रार्थना करनी चाहिए !
नारियल पूर्णिमा पर नारियल का पूजन कर समुद्रदेवता को
अर्पण करने की प्रक्रिया का किया गया सूक्ष्म-परीक्षण
१. ‘समुद्रदेवता को भावपूर्ण वंदन करने से व्यक्ति में भाव के वलय निर्माण होना
२. (श्रीफल समुद्र को अर्पण करने से पूर्व उसका पूजन किया जाता है ।) श्रीफल का पूजन करने से उसमें परमेश्वरीय तत्त्व के वलय कार्यरत होना
३. नारियल में चैतन्य के वलय कार्यरत होना
३ अ. शरणागत भाव से समुद्रदेवता को नारियल अर्पण करने से चैतन्य का प्रवाह समुद्र की ओर प्रक्षेपित होना
४. समुद्रदेवता का भावपूर्ण पूजन करने से परमेश्वरीय तत्त्व का प्रवाह समुद्र में आकर्षित होना
४ अ. अप्रकट स्वरूप का परमेश्वरी तत्त्व वलय के स्वरूप में प्रकट होकर कार्यरत होना
५. वरुणतत्त्व वलय के स्वरूप में कार्यरत रहना
समुद्रदेवता का, अर्थात वरुणदेवता का पूजन किया जाता है । इसलिए वरुणतत्त्व वलय के स्वरूप में कार्यरत होता है ।
निर्गुण तत्त्व
६. निर्गुण तत्त्व अधिक मात्रा में समुद्र में वलय के स्वरूप में कार्यरत होना
६ अ. निर्गुण तत्त्वात्मक कण वातावरण में फैलना
७. ईश्वर की ओर से आनंद का प्रवाह आकर्षित होना
७ अ. आनंद के वलय समुद्र में निर्मित होना
७ आ. आनंद का प्रवाह व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होना
७ इ. आनंद के वलय व्यक्ति में निर्मित होना
८. शक्ति के कण कार्यरत होना तथा काली शक्ति का आवरण दूर होना
– कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था, गोवा.
आज संसार को सनातन संस्कृति और धर्म (कर्तव्य) का बोध कराने वाले गुरु-शिष्य परम्परा की नितान्त आवश्यकता है।