१. स्वभावदोषोंका चयन
१ अ. ‘स्वभावदोष सारणी’से तीव्र स्वभावदोष पहचानें
प्रत्येक में अनेक स्वभावदोष होते हैं। जो स्वभावदोष तीव्र हैं, उन्हें पहले दूर करना महत्त्वपूर्ण है। तीव्र स्वभावदोष ‘स्वभावदोष सारणी’से पहचानें। मान लो, किसीकी सारणी में ‘आलस्य’ इस दोषसे सम्बन्धित अनेक प्रसंग हों, तो समझ लो कि उसमें ‘आलस्य’ यह दोष तीव्र है । यदि वह बालक विविध प्रसंगों में बार-बार चिढ रहा हो, तो समझ लेंकि उसमें ‘चिडचिडापन’ यह दोष भी तीव्र है।
१ आ. स्वभावदोष दूर करनेकी प्रधानता कैसे निश्चित करें ?
१. प्रथम प्रधानता : तीव्र स्वभावदोषोंमें से जिन दोषोेंके कारण अन्योंको अधिक कष्ट हो सकता है, ऐसे दोष दूर करनेको प्रथम प्रधानता
दें। मान लो, किसी बच्चेमें ‘अव्यवस्थितता’ एवं ‘उद्दण्डतासे बोलना’ ये दो दोष तीव्र हैं, तो ‘अव्यवस्थितता’ इस दोषके कारण उस बच्चेको अन्योंकी तुलनामें स्वयंको ही अधिक कष्ट होगा; परन्तु ‘उद्दण्डतासे बोलना’ इस दोषके कारण दूसरोंके मनको चोट पहुंचनेसे दूसरोंको कष्ट होगा, साथ ही उनमें दूरी भी निर्माण होगी । इसलिए उस बालकको ‘उद्दण्डतासे बोलना’ यह दोष दूर करनेके लिए प्रथम प्रधानता देनी चाहिए ।
२. दूसरी प्रधानता : तीव्र स्वभावदोषोंमेंसे जिन दोषोंके कारण अपने मनकी अधिक शक्ति व्यय (खर्च) होती है, ऐसे दोष दूर करनेको दूसरी प्रधानता दें। मान लो, किसीमें मूलत: ‘अव्यवस्थितता’ एवं ‘निरर्थक विचार करते रहना’ ये दो दोष तीव्र हैं। ‘अव्यवस्थितता’ इस दोषके कारण कोई वस्तु स्थानपर नहीं मिलेगी, तो कुछ समयके लिए ही झुंझुलाहट होगी एवं मनकी शक्ति व्यय (खर्च) होगी; परन्तु ‘निरर्थक विचार करते रहना’ इस दोषके कारण मनकी शक्ति निरन्तर अकारण व्यय (खर्च) होती रहेगी । इसके लिए वह बालक ‘निरर्थक विचार करते रहना’ यह दोष दूर करनेको प्रधानता दे।
२. स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी का स्वरूप एवं लिखने की पद्धति
दिनांक | अयोग्य कृति अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया
स्वयं को ज्ञात /अन्यों से ज्ञात |
अयोग्य कृति की अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया की कालावधि | स्वभावदोष | योग्य कृति अथवा योग्य प्रतिक्रियासंबंधी सूचना | दिनभर में किए गए अभ्याससत्रों की संख्या | प्रगति |
---|---|---|---|---|---|---|
इस स्तंभ में दिनांक लिखना, प्रक्रिया की कालावधि जांचने में एवं प्रगति की समीक्षा करने में सहायक होता है । | दिनभर में स्वयं से हुई प्रत्येक अयोग्य कृति, अयोग्य प्रतिक्रिया, अयोग्य विचार एवं भावनाओं को यहां लिखें । जिस व्यक्तिने चूक दिखलाई है, उसके नाम का भी उल्लेख करें । | इसमें अयोग्य कृति एवं अयोग्य प्रतिक्रिया की कालावधि लिखें । | प्रत्येक अयोग्य कृति एवं प्रतिक्रिया का अभ्यास करते समय, अपने मन से स्वयं ही प्रश्न पूछकर प्राप्त उत्तरों के निष्कर्ष से स्वभावदोष ढूंढकर, इस स्तंभ में लिखें । | अयोग्य कृति एवं प्रतिक्रिया के लिए उत्तरदायी स्वभावदोष को दूर करने के लिए योग्य अथवा आदर्श कृति एवं प्रतिक्रिया का विचार कर स्वयंसूचना बनाएं । | दिनभर में कितनी बार अभ्याससत्र किए उसकी संख्या लिखें । | इस स्तंभ में किसी एक स्वभावदोष में हुई प्रगति का उल्लेख दिनांक एवं स्वभावदोष के अनुसार करें । |
२४.८.२०१६ | विद्यालय से आने के उपरांत मैंने अपने जूते उचित स्थान पर नहीं रखे । | १ घंटा | आलस्य | जब भी विद्यालय से आने के उपरांत जूते द्वार के निकट ही खोल रहा होऊंगा, तब तुरंत उसे स्टैंड पर रखने का भान होगा । | ५ | जब मैं जूते दरवाजे के पास खोलकर जाने लगा तो अपनी चूक का स्वयं भान हुआ । |
अयोग्य कृतियों के उदाहरण
१. सुबह चाय पीने के पश्चात मैंने प्याला धोकर नहीं रखा ।
२. स्नानगृह से बाहर आने के पश्चात मैं बत्ती बुझाना भूल गया ।
३. कार्यालय में एक वरिष्ठ अधिकारी के लिए प्राप्त महत्त्वपूर्ण संदेश मैं उन्हें देना भूल गया ।
अयोग्य विचारों के उदाहरण
१. ‘चि. समीर को ‘भूगोल’ विषय में सदा कम अंक मिलते हैं । उसकी पढाई ठीक से होगी न ? शालांत परीक्षा में उसे इस विषय में कम अंक मिले, तो…’, इस चिंता के कारण रात २ बजेतक मुझे नींद नहीं आई ।
२. कार्यालय की महत्त्वपूर्ण बैठक में जाने पर ‘मैंने जो अच्छा काम किया, उससे मेरे वरिष्ठ अधिकारी मुझ पर प्रसन्न होंगे । मुझे नौकरी में पदोन्नति मिलेगी । मेरा वेतन बढेगा । फिर मैं गाडी क्रय कर सकूंगा…’, ऐसे विचार करते हुए मैं मनोराज्य में रम गया ।
अयोग्य प्रतिक्रियाओं के उदाहरण
१. कार्यालय में वरिष्ठ अधिकारीने जब मेरे सहकर्मी की प्रशंसा की तो मुझे गुस्सा आया । मेरे मन में प्रतिक्रिया उभरी कि ‘हम कितना भी परिश्रम क्यों न करें, फिर भी साहब उसी की प्रशंसा अधिक करेंगे ।’
२. घर आए अतिथियों के सामने पिताजीने ऊंचे स्वर में डांटकर पढाई करने के लिए कहा, तो मुझे गुस्सा आया । तत्पश्चात अपने अध्ययन-कक्ष में जाकर, मैंने गुस्से में पुस्तकें मेज पर पटक दीं ।
३. अपने स्वभावदोषों का भान न हो, तो आवश्यक उपाययोजना
३ अ. स्वभावदोषों की सूची का अभ्यास करना
कुछ विशिष्ट स्वभावदोषों की सूची का अभ्यास करें । इससे विविध प्रकार के स्वभावदोषों की जानकारी प्राप्त होगी एवं उनमें से किसी एक स्वभावदोष से संबंधित अयोग्य कृति होने पर अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया मन में उभरने पर सारणी में वैसा अंकित कर सकेंगे ।
३ आ. अपने स्वभावदोषों का भान हो, इसके लिए स्वयंसूचना देना
स्वयं से होनेवाली प्रत्येक अयोग्य कृति एवं मन में आनेवाले प्रत्येक अयोग्य विचार अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया का भान होकर अपने स्वभावदोषों का बोध होने हेतु निम्नलिखित स्वयंसूचना दें –
‘दिनभर में अपने स्वभावदोषों के कारण जब मुझसे अयोग्य कृति हो रही हो अथवा मेरे मन में अयोग्य विचार अथवा अयोग्य प्रतिक्रिया आए, तब मुझे तुरंत उसका भान होगा और मैं उसे तत्परता से स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी में लिख लूंगा ।’
३ इ. परिचितों से अपने स्वभावदोष दिखलाने का निवेदन करना
प्रतिदिन हमारे संपर्क में आनेवाले व्यक्ति, उदाहरणार्थ परिवार के सदस्य, मित्र, कार्यालयीन सहकर्मी एवं सहसाधकों की सहायता लेकर, उन्हें हमसे होनेवाली चूक दिखलाने के लिए एवं हमारे स्वभावदोषों का समय-समय पर भान कराने के लिए कहें ।
४. सारणी लिखने के संदर्भ में ऐसी चूक से बचें
• सारणी लिखने में टालमटोल करना
• चूक होेने पर, सारणी में वह तुरंत न लिखना
• सारणी के सर्व स्तंभ न लिखना
• सारणी में चूक का स्पष्ट उल्लेख न कर केवल स्वभावदोष लिखना
• अन्योंद्वारा बताई गई चूक मनःपूर्वक स्वीकार न किए जाने के कारण सारणी में न लिखना
• चूक लिखते समय अयोग्य प्रतिक्रिया से ‘अयोग्य कृति’ तथा अयोग्य विचार से ‘अयोग्य प्रतिक्रिया’ लिखना
- अयोग्य कृति का उदाहरण
राजूने विद्यालयसे घर आने पर अपना झोला पलंग पर फेंक दिया
स्वभावदोष : वस्तु ठीकसे न रखना
- अयोग्य प्रतिक्रियाका उदाहरण
पिताजीने जब कहा कि ‘राजू, परीक्षा समीप आई है । खेलना छोडो, पढाई करने बैठो’, तब राजूने क्रोधसे अपना झोला पलंग पर फेंक दिया ।
स्वभावदोष : क्रोध
५. नियमितरूप से सारणी लिखने के लाभ
• अपने स्वभावदोषों की तीव्रता का भान होकर उनके निर्मूलन हेतु गंभीरता निर्माण होना
• अंतर्मुखता निर्माण होना
• कोई भी कृति करने से पूर्व योग्य कृति का विचार करने का संस्कार चित्त पर निर्माण होना
• योग्य कृति करने का संस्कार दृढ होकर अयोग्य कृति कम होना
• योग्य विचार करने एवं योग्य प्रतिक्रिया व्यक्त करने का स्वभाव, विचारधारा को सकारात्मक बनाने में सहायक होना
• स्वयंसूचना बनाने में निपुण होना
• आत्मविश्वास निर्माण होना
• ‘नियमितता’ एवं ‘निरंतरता’ इन गुणों का स्वयमेव (अपने-आप) संवर्धन होना