प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद
से सनातन की स्थापना का उद्देश्य सफल होगा !
वर्ष १९९१ में प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से प्रारंभ हुआ सनातन का बीजरूपी कार्य आज वटवृक्ष बन गया है । सनातन की स्थापना का उद्देश्य अध्यात्म का प्रसार करना था । आज धर्मशिक्षा देनेवाले सत्संग, ध्वनिचित्र-चक्रिकाएं (ऑडियो सीडी), फलक प्रदर्शनियां और जालस्थल (वेबसाईट) द्वारा होनेवाला अध्यात्मप्रसार, अध्यात्म विषयक २९० ग्रंथों की निर्मिति और उनका १५ भाषाआें में प्रकाशन, साधक-पुरोहित पाठशाला द्वारा हो रही सात्त्विक पुरोहितों की निर्मिति तथा देश-विदेश में १५ सहस्र से अधिक साधकों द्वारा अध्यात्म के सिद्धांत सीखकर साधना करना, इस कार्य का दृश्य स्वरूप है ।
ये सर्व कार्य आज तक संतों के आशीर्वाद के कारण ही हो सके हैं । बाह्य रूप से दिखनेवाला कार्य और सूक्ष्म से होनेवाला कार्य भिन्न-भिन्न होता है । सनातन का कायर्र् मूलतः ज्ञानशक्ति का है तथा उसका अधिक महत्त्व है । आगामीे २५ वर्षों में पूरे संसार में सनातन (हिन्दू) धर्म की प्रस्थापना होगी, उसमें सनातन की ज्ञानशक्ति के कार्य का बहुमूल्य योगदान होगा ।
सनातन के कार्य का केंद्रबिंदु साधकों की व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति है । सनातन के कार्य का २५ वर्षों का मूल्यांकन करते समय सनातन का कार्य कितना बढा है, इसकी अपेक्षा कितने साधकों की आध्यात्मिक उन्नति हुई है, यह सनातन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । आज २५ वर्षों में सनातन के ६८ साधक संत बन गए हैं और ९२७ साधक संतत्व की दिशा में मार्गक्रमण कर रहे हैं, यह सनातन की गुरुकृपायोगानुसार साधना की सीख की सार्थकता है ।
सनातन के आस्थाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से आगामी कुछ वर्षों में ही सनातन की स्थापना का उद्देश्य पूर्णतः सफल होगा, इसमें कोई संदेह नहीं । सनातन के कार्य के रजत महोत्सव निमित्त मेरे गुरु प.पू. महाराजजी के चरणों में मैं प्रार्थना करता हूं कि सनातन में आए प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति हो तथा अध्यात्म की सीख अखिल मानवजाति तक पहुंचे ।
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले, सनातन संस्था