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वर्तमान के भागदौड के जीवन में किसी को भी और कभी भी संसर्गजन्य बीमारियों का अथवा अन्य किसी भी विकार का सामना करना पड सकता है । ऐसे समय पर शीघ्र ही किसी विशेषज्ञ वैद्यकीय परामर्श उपलब्ध हो ही सके, ऐसा कह नहीं सकते । सर्दी, खांसी, बुखार, उलटी, जुलाब, बद्धकोष्ठता, आम्लपित्त जैसे विविध रोगों पर घर के घर ही में उपचार कर पाएं, इस दृष्टि से होमियोपैथी चिकित्सापद्धति सर्वसामान्यजनों के लिए अत्यंत उपयोगी है । यह उपचारपद्धति घर के घर ही में कैसे करें ? होमियोपैथी की औषधि किसप्रकार तैयार करें ? उनका संग्रह कैसे करें ? ऐसी अनेक बातों की जानकारी इस लेखमाला द्वारा दे रहे हैं ।
पाठकों से अनुरोध है कि किसी बीमारी पर स्वउपचार आरंभ करने से पूर्व ‘होमियोपैथी स्वउपचार संबंधी मार्गदर्शक सूत्र और प्रत्यक्ष औषधि का चयन कैसे करें ?’, यह जानकारी पाठक पहले पढकर भली-भांति समझ लें और उस अनुसार औषधि चुनें !
संकलक : डॉ. प्रवीण मेहता, डॉ. अजीत भरमगुडे एवं डॉ. (श्रीमती) संगीता अ. भरमगुडे
अतिसार अर्थात दिन में ५ बार से भी अधिक बार जुलाब, अर्थात पतली शौच होना । इसके अतिरिक्त पेट में वेदना होना, पेट फूलना, बारंबार प्यास लगना, वजन घटना, मितली आना, उलटियां होना, निर्जलीकरण (dehydration), ये इस रोग के अन्य लक्षण हैं । गहरे रंग की पेशाब होना, दिनभर में पेशाब होने की मात्रा ३-४ बार से भी कम होना, त्वचा, होंठ, आंखें सूख जाना, सिर में वेदना, थकान, एकाग्रता न होना, चक्कर आना, यह निर्जलीकरण होने के लक्षण हैं ।
अतिसार, यह दूषित एवं अस्वच्छ अन्न और पानी ग्रहण करने से होनेवाला रोग है । तीव्र अतिसार सामान्यरूप से विषाणु (virus), जिवाणु (bacteria) और परजीवी (parasites) के कारण होता है । अतिसार के कारण दूषित हुए पानी के संपर्क में आने से फैलता है ।
जुलाब होने के अन्य कारण भी हो सकते हैं ।, उदा. ग्रहणी (Irritable bowel syndrome), कंठस्थ ग्रंथी का कार्य मंद होना (hypothyroidism) इत्यादि ।
१. अतिसार न हो अथवा फैले नहीं, इसके लिए क्या करें ?
१ अ. शौच के उपरांत साबुन से हाथ स्वच्छ धाेना
१ आ. अतिसार हुए बच्चे के डायपर (diaper)) बदलने के उपरांत साबुन से हाथ स्वच्छ धोना
१ इ. रसोई बनाने से पहले और बाद में हाथ धोना
१ ई. उबला हुआ अथवा ‘फिल्टर’ किया पानी पीना
१ उ. गरम पेय पीना
१ ऊ. नवजात शिशु और बच्चे को उनके आयु के अनुरूप आहार देना
१ ए. छ: माह तक बच्चे को केवल स्तनपान कराना
१ ऐ. खाद्य पदार्थों का योग्य संग्रह और प्रबंध
१ ओ. बासी खाद्यपदार्थ खाना टालना
१ औ. तेलीय और मसालेदार पदार्थ टालना
१ अं. निर्जंतुकीकरण (पाश्चराइज) न किया दूध पीना टालना
१ क. रास्ते पर मिलनेवाले अन्न पदार्थ (street food) टालना
२. निर्जलीकरण (dehydration) रोकने के लिए क्या करें ?
किसी भी कारण से अतिसार हो गया हो, तो निर्जलीकरण रोकने के लिए ‘जलसंजीवनी’ (ओरल रिहायड्रेशन सोल्यूशन ओ.आर्.एस्.) उत्तम उपचार है । जलसंजीवनी, पानी और ‘इलेक्ट्रोलाइट’ का मिश्रण है । बाजार में ‘ओ.आर्.एस्.’ के तैयार पैकट मिलते हैं; परंतु वे यदि उपलब्ध न हों, तो उबालकर ठंडे किए हुए १ लीटर पानी में ६ चम्मच शक्कर और आधा चम्मच नमक मिलाकर हम जलसंजीवनी तैयार कर सकते हैं ।
२ अ. २ वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रत्येक जुलाब के उपरांत कम से कम पाव से आधा कप ‘जलसंजीवनी’ पीने के लिए कहें ।
२ आ. २ वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को प्रत्येक शौच के उपरांत ‘जलसंजीवनी’ का आधा से पूरा गिलास दें ।
२ इ. प्रौढ प्रत्येक शौच के उपरांत १ गिलास ‘जलसंजीवनी’ पीएं ।
३. अतिसार होने पर विशेषज्ञों से कब परामर्श करें ?
३ अ. अतिसार २ दिनों से अधिक दिन शुरू रहना
३ आ. निर्जलीकरण के लक्षण होना
३ इ. पेट में अथवा गुदाशय में तीव्र वेदना होना
३ ई. शौच काले अथवा कडक होना
३ उ. १०२ डिग्री फैरन्हाइट से अधिक बुखार होना
४. होमियोपैथी की औषधि
आरंभ में दिए लक्षणों के अतिरिक्त कौनसे विशेष लक्षण होने पर, वे औषधियां लें, उनके नाम आगे दिए हैं ।
४ अ. पोडोफायलम् (Podophyllum)
४ अ १. मटमैले पानी समान फेसदार और ऊपर पानी और नीचे लुगदी समान थर जम जाना (Chalk and cheese like stools) समान जुलाब होना
४ अ २. शौच अत्यंत दुर्गंधयुक्त होना
४ अ ३. आहार से भी अधिक मात्रा में शौच होना
४ अ ४. शौच के समय पेट में वेदना न होना
४ आ. क्रोटोन टिग्लियम (Croton Tiglium)
४ आ १. पीले, पानी समान जुलाब होना
४ आ २. पेट में गुडगुड की आवाज, बंदूक की गोली समान विस्फोटक और जोर से आवाज करते हुए शौच होना
४ आ ३. थोडा भी अन्न अथवा पानी ग्रहण करने पर भी तुरंत ही शौच के लिए जाना
४ इ. चायना ऑफिसिनैलिस (China Officinalis)
४ इ १. फल खाने के उपरांत जुलाब होना
४ इ २. दुर्गंधयुक्त, न पचे हुए अन्नयुक्त जुलाब होना
४ इ ३. शौच करते समय पेट में वेदना न होना
४ इ ४. शौच करते समय काफी मात्रा में वायु बाहर आना
४ ई. एलो सोकोट्रीना (Aloe Socotrina)
४ ई १. सवेरे शीघ्र शौच की संवेदना आना और उसपर नियंत्रण न होने से बिस्तर से शौचालय की ओर भागते हुए जाना
४ ई २. शौच को जाने से पूर्व और शौच करते समय पेट में काटे जाने समान अथवा मरोड समान तीव्र वेदना होना, वेदना शौच करने के उपरांत थम जाना
४ ई ३. शौच के उपरांत बहुत पसीना आकर थक जाना
४ उ. डल्कामारा (Dulcamara)
४ उ १. ठंड, उमसभरे वातावरण के कारण अथवा हवामान में परिवर्तन होने से जुलाब होना
४ उ २. तलघर में (cellar में) काम करनेवाले व्यक्तियों को जुलाब होना
४ उ ३. नाभि के आसपास वेदना होकर फसफसी, पानी समान जुलाब होना; विशेषरूप से रात में जुलाब होना
४ उ ४. अत्यंत थकान होना
४ ऊ. पल्सेटिला निग्रिकन्स (Pulsatilla Nigricans)
४ ऊ १. स्निग्ध पदार्थ, आईस्क्रीम खाना, ठंडी अथवा डर के कारण जुलाब होना
४ ऊ २. केवल रात में, पेट में तीव्र वेदना होकर जुलाब होना
४ ऊ ३. शौच का रंग, इसके साथ ही स्वरूप में बारंबार परिवर्तन होना
४ ए. आर्सेनिकम् आल्बम् (Arsenicum Album)
४ ए १. चावल धोए पानी समान पतले दस्त होना
४ ए २. शौच को अत्यधिक दुर्गंध आना
४ ए ३. गुदद्वार में आग-सी होना
४ ए ४. अस्वस्थता और मृत्यु का भय लगना
४ ए ५. बहुत प्यास लगना और थोडे-थोडे समय पश्चात बहुत बार पानी पीना
५. बाराक्षार औषधियां
५ अ. फेरम् फॉस्फोरिकम् (Ferrum Phosphoricum)
५ अ १. सतत पानी समान पतले, हरे-से जुलाब होना
५ अ २. न पचे हुए अन्न का जुलाब होना
५ अ ३. वेदना रहित जुलाब होना
५ आ मैग्नेशियम फॉस्फोरिकम् (Magnesium Phosphoricum)
५ आ १. शौच पतले और वेग से बाहर गिरना
५ आ २. पेट में वेदना के साथ जुलाब होना
५ आ ३. वायु के कारण पेट में वेदना होना, पैरों को पेट के पास सिकोडने से अथवा गरम पानी से सेंक करने पर अच्छा लगना