कीटक अथवा प्राणी के दंश करने (काटने) पर होमियोपैथी औषधियों की जानकारी

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वर्तमान के भागदौड के जीवन में किसी को भी और कभी भी संसर्गजन्य बीमारियों का अथवा अन्य किसी भी विकार का सामना करना पड सकता है । ऐसे समय पर शीघ्र ही किसी विशेषज्ञ वैद्यकीय परामर्श उपलब्ध हो ही सके, ऐसा कह नहीं सकते । सर्दी, खांसी, बुखार, उलटी, जुलाब, बद्धकोष्ठता, आम्लपित्त जैसे विविध रोगों पर घर के घर ही में उपचार कर पाएं, इस दृष्टि से होमियोपैथी चिकित्सापद्धति सर्वसामान्यजनों के लिए अत्यंत उपयोगी है । यह उपचारपद्धति घर के घर ही में कैसे करें ? होमियोपैथी की औषधि किसप्रकार तैयार करें ? उनका संग्रह कैसे करें ? ऐसी अनेक बातों की जानकारी इस लेखमाला द्वारा दे रहे हैं ।

पाठकों से अनुरोध है कि किसी बीमारी पर स्वउपचार आरंभ करने से पूर्व ‘होमियोपैथी स्वउपचार संबंधी मार्गदर्शक सूत्र और प्रत्यक्ष औषधि का चयन कैसे करें ?’, यह जानकारी पाठक पहले पढकर भली-भांति समझ लें और उस अनुसार औषधि चुनें !

संकलक : डॉ. प्रवीण मेहता, डॉ. अजीत भरमगुडे एवं डॉ. (श्रीमती) संगीता अ. भरमगुडे

पोषण मिलने के उद्देश्य से कोई कीटक अथवा प्राणी अपने मुंह से व्यक्ति की त्वचा पर काट ले तो इसे ‘काटना’, कहते हैं । विष का रोपण करने के उद्देश्य से कोई कीटक अथवा प्राणी अपने मुंह के अतिरिक्त अपने शरीर के अन्य भाग का उपयोग कर की गई कृति को ‘दंश’, कहते हैं । कीटक अथवा प्राणी के काटने पर अथवा दंश करने पर ‘संबंधित भाग पर सूजन आना, वहां की त्वचा लाल होना अथवा वहां फुंसी उठना, वेदना होना, खुजली होना, उस भाग में उष्णता प्रतीत होना, सुन्न होना अथवा चींटियांसी आईं समान लगना, ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं ।

होमियोपैथी वैद्य (डॉ.) प्रवीण मेहता

कीटक के काटने अथवा दंश करने पर रोगी को कीटक से सुरक्षित स्थान पर ले जाएं । व्यक्ति की त्वचा में डंक पाई जाए, तो उसे निकालें । वहां की त्वचा को धीरे से साबुन और पानी से धो लें । वहां की त्वचा पर १०-१२ मिनट बर्फ अथवा ठंडा पानी लगाएं ।

सर्पदंश अथवा बिच्छू के काटने पर व्यक्ति को बिठाएं अथवा लिटा दें । उसे धीरज बंधाएं । जहां दंश है, उस भाग को पेन से चिन्हित करें और दंश का समय लिखकर रखें । दंश करनेवाला सर्प अथवा बिच्छू का छायाचित्र सुरक्षित अंतर पर से लें । इससे उसकी जाति की पहचान होगी और उस अनुसार योग्य वैद्यकीय उपाय करना संभव होता है । दंश हुए भाग पर जखम कर वहां का रक्त बहने देना, उस भाग के इस ओर कसकर बांधना, दंश हुए भाग पर बर्फ लगाना । सर्प की जाति यदि समझ में न आई हो, तो यह मानकर कि प्रत्येक सर्पदंश विषैला ही है, उस अनुसार वैद्यकीय सहायता लें ।

स्वउपचार करना पडे तो कौनसे विशेष लक्षण हों, तब कौनसी औषधि लें, उनके नाम आगे दिए हैं ।

१. मच्छर का काटना

डॉ. अजीत भरमगुडे

१ अ. स्टाफीसाग्रिया (Staphysagria)

 

२. खटमल का काटना

२ अ. हायपेरिकम् पर्फोरेटम् (Hypericum Perforatum)

 

३. मधुमक्खी अथवा ततैया

३ अ. अर्टिका युरेन्स (Urtica Urens) : काटने के पश्चात तुरंत यह औषधि लें ।

३ आ. आर्निका मोन्टाना (Arnica Montana) : काटे जाने के स्थान पर इस औषधि का मूल अर्क लगाने पर सूजन और वेदना २ घंटों में कम होती है ।

३ इ. एपिस मेलिफिका (Apis Mellifica) : दंश के कारण सूजन और जलन हो, अथवा सुई चुभने समान वेदना हो रही हो और सूजन पर बर्फ लगाने पर अच्छा लग रहा हो, तो यह औषधि लें ।

३ ई. आर्सेनिकम् आल्बम् (Arsenicum Album) : आग से जलने समान वेदना हो रही हो, अत्यंत अस्वस्थता हो, बहुत प्यास लग रही हो और रोगी घबराया हुआ हो, तो यह औषधि लें ।

३ उ. एसेटिकम् एसिडम् (Aceticum Acidum) : दंश के कारण होनेवाला ज्वर, दमा, इत्यादि दुष्परिणाम टालने के लिए यह औषधि उपयुक्त है ।

 

४. जोंक का काटना

डॉ. (श्रीमती) संगीता अ. भरमगुडे

४ अ. लैचेसिस म्युटस (Lachesis Mutus)

 

५. बिच्छू का काटना

५ अ. लेडम पालुस्त्रे (Ledum Palustre) : बिच्छू के काटते ही यह औषधि लें ।

५ आ. हायपेरिकम् पर्फोरेटम् (Hypericum Perforatum) : बिच्छू के काटने के पश्चात तीव्र वेदना हो रही हो, तो यह औषधि लें ।

 

६. सर्पदंश

६ अ. आर्निका मोन्टाना (Arnica Montana) : सर्प के काटने के स्थान पर सूजन आती है और वह भाग काला-नीला पड जाता है । वेदना होती है । ऐसे समय पर यह औषधि प्रति २ घंटे में लें । इसके साथ ही २ चम्मच औषधि एक कप पानी में डालकर, वह दंश किए स्थान पर सतत लगाते रहें ।

६ आ. आर्सेनिकम् आल्बम् (Arsenicum Album) : ह्रदय की ओर जानेवाली असह्य वेदना होना और बहुत थकान होना, दंश किए गए स्थान पर सूजन और उलटी होना, ऐसे लक्षण हों, तो यह औषधि हर आधे घंटे में देनी है ।

६ इ. अमोनियम कार्बोनिकम् (Ammonium Carbonicum) : सर्पदंश के उपरांत यदि घाव से सतत काले रंग का रक्त बह रहा हो, तो यह औषधि उपयुक्त होती है ।

६ ई. एकिनेशिया एंगस्टिफोलिया (Echinacea Angustifolia) : सर्प दंश के कारण कमजोरी आना, शरीर में वेदना, बोलने की गति मंद हो जाना, ऐसे लक्षण दिखाई देने पर इस औषधि के मूल अर्क की १० बूंदें हर ५ मिनट में पानी में डालकर दें ।

(टिप्पणी : किसी भी विषैले कीटक ने काटा हो, तो यह औषधि गुणकारी है ।)

६ उ. नाजा ट्रिपुडियन्स (Naja Tripudians) : हर १० मिनट में इस औषधि के मूल अर्क की ५ बूंदें जीभ पर डालें ।

 

७. चूहा, कुत्ता, बिल्ली का काटना

७ अ. लेडम पालुस्त्रे ((Ledum Palustre) : उपरोक्त में से किसी भी प्राणी ने काटा हो, तो यह औषधि लें । उपरोक्त में से किसी भी प्राणी ने काटा हो, तो यह औषधि लें । यह धनुर्वात प्रतिबंधक होने से जखम दूषित (septic) नहीं होता और वेदना भी तुरंत कम हो जाती है । यह औषधि लेने के साथ ही उस स्थान पर भी लगाएं, जहां काटा हो ।

७ आ. कैलेंडुला (Calendula) : कुत्ता और बिल्ली ने काटा हो तो इस औषधि का मूल अर्क काटे गए स्थान पर भी लगाएं ।

७ इ. हायड्रोफोबिनम (Hydrophobinum) : पागल कुत्ते के काटने पर

इस औषधि को (Lyssinum) के नाम से भी जाना जाता है ।

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