पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पूर्वजों की अतृप्त इच्छाएं तृप्त होकर उन्हें सद्गति प्राप्त होती है ! – श्रीमती राजरानी माहूर, सनातन संस्था
नोएडा (उत्तर प्रदेश) – पितृपक्ष में श्राद्ध करने से हमारे अतृप्त पूर्वजों को पृथ्वी के वातावरण कक्षा में आना सरल बन जाता है, श्राद्ध के कारण पूर्वजों की इच्छाएं तृप्त होकर उन्हें सद्गति प्राप्त होती है, ऐसे श्राद्ध विधि हिंदू धर्म के आचारधर्म की एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृति है, तथा इसे वेद काल का आधार प्राप्त है, ऐसा मार्गदर्शन सनातन संस्था की श्रीमती राजरानी माहूर जी ने ग्रेटर नोएडा के अरिहंत अबोड सोसायटी में किया ।
अपने मार्गदर्शन में उन्होंने कहा की रामायण में प्रभु श्रीरामजी ने भी उनके पिता राजा दशरथ का श्राद्ध विधि किया था, इसलिए धर्मशास्त्र कहता है कि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अमावस्या की अवधि में महालय श्राद्ध करना चाहिए । जिस तिथि पर दादा-दादी, माता-पिता की मृत्यु होती है, उस तिथि को श्राद्ध किया जाता है, परंतु सभी पूर्वजों को सद्गति प्राप्त होने हेतु पितृपक्ष में भी श्राद्ध करना महत्वपूर्ण है । इन 15 दिनों की अवधि में एक दिन श्राद्ध करने से हमारे पूर्वज तृप्त होते हैं। इसलिए श्राद्ध विधि सभी करें क्योंकि “श्राद्ध ही श्रद्धा है।”
श्राद्ध विषय के प्रवचन ग्रेटर नोएडा के अजनारा होम्स सोसाइटी, पंचशील ग्रिंस 1 तथा सूरजपुर में तथा फरीदाबाद के सेक्टर 22 के मंदिर में सनातन संस्था द्वारा आयोजित किए गए थे । कई लोगों ने इन प्रवचनों का लाभ लिया । सभी जिज्ञासूओं का बहुत ही अच्छा एवं सकारात्मक प्रतिसाद रहा ।
१. अनेक जिज्ञासुओ ने कहा की ये सभी जानकारी हमे पता ही नही थी, आज बहुत सिखने काे मिला, हम अवश्य श्राद्ध करेंगे।
२. श्रीमती संगीता जी ने कहा की ये जो धर्मशिक्षा आज आपने हमे दी है ये सुनकर बहुत अच्छा लगा, आप इस प्रकार के प्रवचन लेने के लिए हमारे यहां नियमित आते रहिए ।