वर्तमान के भागदौड के जीवन में किसी को भी और कभी भी संसर्गजन्य बीमारियों अथवा अन्य किसी भी विकारों का सामना करना पड सकता है । ऐसे समय पर यथाशीघ्र वैद्यकीय विशेषज्ञ से परामर्श उपलब्ध हो ही सकेगा, ऐसा कह नहीं सकते । सर्दी, खांसी, बुखार, उलटियां, जुलाब, बद्धकोष्ठता, आम्लपित्त जैसी विविध बीमारियों पर घर के घर में ही उपचार किया जा सके, इस दृष्टि से होमियोपैथी चिकित्सापद्धति सर्वसामान्य लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है । यह उपचारपद्धति घर के घर ही में कैसे उपयोग में लाएं ? होमियोपैथी की औषधियां किसप्रकार तैयार करें ? उसका संग्रह कैसे करें ? इसप्रकार की अनेक बातें इस लेखमाला द्वारा दे रहे हैं ।
पाठकों से विनती है कि किसी बीमारी पर स्वउपचार आरंभ करने से पूर्व ‘होमियोपैथी स्वउपचार संबंधी मार्गदर्शक सूत्र एवं प्रत्यक्ष औषधि का चयन कैसे करें ?’, इस संदर्भ की जानकारी पाठक पहले समझ लें और उस अनुसार प्रत्यक्ष औषधि का चयन करें !
संकलक : होमियोपैथी डॉ. प्रवीण मेहता, डॉ. (श्रीमती) संगीता अ. भरमगुडे और डॉ. अजीत भरमगुडे
पेट में आम्ल की (acid की) मात्रा अधिक होने से आम्लपित्त का कष्ट होता है । मुंह में खट्टा स्वाद आना, छाती में जलन (विशेषरूप से रात को भोजन के पश्चात), ग्रहण किया अन्न अथवा खट्टा पानी पेट से पुन: मुंह में आना, निगलने में कष्ट होना, अपचन होना, पेट के ऊपर के भाग में वेदना इत्यादि आम्लपित्त के लक्षण हैं ।
१. आम्लपित्त का कष्ट टालने के लिए घरेलू उपाय
१ अ. क्या टालें
कॉफी, चटपटे और मसालेदार पदार्थ, अत्यधिक खाना
१ आ. क्या करें ?
१ आ १. नियमित व्यायाम
१ आ २. केला, सेब, तरबूज, दही, नारियल पानी, मट्ठे का सेवन करें ।
२. होमियोपैथी औषधि
२ अ. रोबिनिया स्यूडोकेसिया (Robinia Pseudocacia)
२ अ १. मितली आना
२ अ २. निरंतर खट्टी डकारें आना और उलटियां होना
२ अ ३. गले में खट्टा (आम्ल) पानी आना
२ अ ४. पेट में तीव्र वेदना होना, साथ में सिर के सामने की ओर वेदना होना
२ अ ५. पसीने, शौच को खट्टी दुर्गंध आना
२ अ ६. आम्लपित्त का कष्ट प्रमुखरूप से रात के समय होना
२ आ. सल्फर (Sulphur)
२ आ १. अतिमद्यसेवन, इसके साथ ही फुंसियों के उपचार से पूर्णरूप से ठीक होने के स्थान पर केवल उन्हें दबा दिए जाने (Suppressed eruptions) के पश्चात हुआ आम्लपित्त
२ आ २. खट्टी डकार आना, गले से खट्टा (आम्ल) पानी आना
२ आ ३. शरीर में सर्वत्र आग होना
२ आ ४. सवेरे ११ बजे अत्यंत कमजोरी और थकान अनुभव होना और ऐसा लगना कि कुछ तो खाना चाहिए !
२ आ ५. दूध सेवन करने के पश्चात आम्लपित्त का कष्ट होना और बढना
२ इ. नक्स वॉमिका (Nux Vomica)
२ इ १. निम्नप्रकार के व्यक्तियों को आम्लपित्त का कष्ट होना
अ. चिंताग्रस्त, अकेले रहना पसंद करनेवाला, उदासीन, तनिक भी आवाज से घबरा जानेवाला अथवा दुर्गंध के कारण अस्वस्थ होनेवाला
आ. अत्यधिक मानसिक तनाव और आसीन (बैठी) जीवनशैली
इ. कॉफी, तंबाखू, मद्य का व्यसन
२ इ २. आगे दी गई परिस्थितियों में आम्लपित्त का कष्ट होना
अ. निद्रानाश होने के कारण
आ. एलोपैथी की अनेक औषधियां लेने के कारण
२ ई. कैप्सिकम् (Capsicum)
२ ई १. पेट के ऊपरी भाग में आग होना और वह गले तक अनुभव होना
२ ई २. पेट में काफी मात्रा में गैस बनना और कभी-कभी उलटी होना
२ उ. सल्फुरिकम् एसिडम् (Sulphuricum Acidum)
२ उ १. छाती में जलन होना, खट्टी डकार आना
२ उ २. मितली आना और उसके साथ ही ठंड लगना
२ उ ३. अनेक वर्षाें से पित्त का कष्ट होना
२ ऊ. आर्सेनिकम् आल्बम् (Arsenicum Album)
२ ऊ १. खट्टे पदार्थ, ‘आईस्क्रीम’ खाने के उपरांत शिकायत आरंभ होना
२ ऊ २. पेट में अत्यधिक आग होना और गरम पेय पीने से अच्छा लगना
२ ऊ ३. प्रत्येक बार थोडा-थोडा सामान्य तापमानवाला पानी पीना
२ ऊ ४. अत्यंत चिंता, थकान होना
२ ए. कल्केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica)
२ ए १. अतिश्रम के उपरांत आम्लपित्त होना
२ ए २. डकार, उलटी, जुलाब में दही समान गंध आना
२ ए ३. चरबीयुक्त पदार्थ में अरूचि
२ ए ४. खडिया (चॉक), कोयला, ‘पेन्सिल’, इसप्रकार की न पचनेवाली वस्तु खाने का मन करना
२ ए ५. कमर के आसपास वस्त्र कसकर लपेटनेपर, उसे सहन न होना
२ ए ६. सोते समय सिर और छाती पर पसीना आना
३. बाराक्षार औषधि
नेट्रम् फॉस्फोरिकम् ६x (Natrum Phosphoricum 6x) – ४ गोलियां दिन में ३ बार लेना