‘अब घर के घर ही में कर पाना संभव, ‘होमियोपैथी’ उपचार !’
अनुक्रमणिका
- १. होमियोपैथी स्वउपचार वास्तव में कैसे करना चाहिए ?
- १ अ. बीमार होने पर निर्माण हुए लक्षण, इसके साथ ही उनसे संबंधित सूत्रों का बारकाई से निरीक्षण कर उन्हें लिख लें ।
- १ आ. अपनी बीमारी संबंधी प्रकरण पढना
- १ इ. अपनी बीमारी में अचूक गुणकारी औषधि ढूंढना
- १ ई. एक ही औषधि लेना
- १ उ. कुछ बीमारियों के विषय में आरंभ में लक्षणों की तीव्रता न्यून करनेवाली औषधि लेना आवश्यक होना
- १ ऊ. औषधि तैयार करने की पद्धति
- १ ए. औषधियों की शीशियों (बोतलों) पर व्यक्ति एवं औषधि के नाम की पट्टी (लेबल) लगाना आवश्यक
- १ ऐ. औषधि लेने की पद्धति
- १ ओ. औषधि लेते समय बरती जानेवाली सावधानी
- १ औ. औषधि प्रतिदिन कितनी बार लेनी है ?
- १ अं. औषधि का परिणाम हो रहा है, यह कैसे पहचानें ?
- २. होमियोपैथी ‘स्वउपचार’संबंधी मार्गदर्शक सूत्र
- ३. अन्य पैथीनुसार उपचार शुरू हों, तो क्या करें ?
अब हम देखेंगे ‘अपनी बीमारी पर अचूक गुणकारी औषधि ढूंढना, कुछ बीमारियों के विषय में आरंभ में लक्षणों की तीव्रता न्यून करनेवाली औषधि लेना क्यों आवश्यक होना, औषधि तैयार करने की पद्धति और औषधि का परिणाम कैसे पहचानें ?’, इत्यादि संबंधी जानकारी ।
संकलक : होमियोपैथी डॉ. प्रवीण मेहता, डॉ. अजित भरमगुडे एवं डॉ. (श्रीमती) संगीता भरमगुडे
१. होमियोपैथी स्वउपचार वास्तव में कैसे करना चाहिए ?
अब यदि हम बीमार पड गए तो इस लेखमाला की सहायता से प्रत्यक्ष स्वउपचार कैसे करना चाहिए? उसे क्रमवार समझ लेंगे ।
१ अ. बीमार होने पर निर्माण हुए लक्षण, इसके साथ ही उनसे संबंधित सूत्रों का बारकाई से निरीक्षण कर उन्हें लिख लें ।
हमें कुछ भी कष्ट होने लगे (उदा. बुखार आया), अपघात अथवा चोट लगने पर, बाहर ठंडी हवा में जाने के उपरांत, भीगने के उपरांत इत्यादि’ के कारण (उदा. बुखार आता हो), हमारी तबियत में चरण दर चरण हुए परिवर्तन, इसके साथ ही बुखार के साथ हमारी चिडचिड बढ तो नहीं गई है ? प्यास अधिक लगती है ? कुछ विशेष खाने-पीने की इच्छा हो रही है क्या ?’, इत्यादि अन्य सभी लक्षण, इसके साथ ही हमें होनेवाला कष्ट किससे कम होता है ? किससे बढता है ? इत्यादि अपनी बीमारी से संबंधित सभी सूत्र ‘सबसे महत्त्वपूर्ण और सबसे तीव्र, सबसे पहले’ इस क्रम से लिख लें ।
१ आ. अपनी बीमारी संबंधी प्रकरण पढना
तदुपरांत लेखमाला में अपनी बीमारी संबंधी (उदा. ताप) प्रकरण खोलकर पूर्ण पढें । उसमें अपनी बीमारी की (उदा. बुखार) में दी जानेवाली जानकारी पढकर, इसके साथ ही दिए गए अन्य सूत्र पढकर, उदा. ‘थर्मोमीटर’ लगाकर बुखार कितना है ? इसकी निश्चिती करें । यदि बुखार केवल १०० अंश फैरन्हाइट है, तो तुरंत औषधि लेने की आवश्यकता नहीं । उससे अधिक होगा, तो औषधि लेना आवश्यक है ।
१ इ. अपनी बीमारी में अचूक गुणकारी औषधि ढूंढना
‘होमियोपैथी’विषयी प्रकाशित किए जानेवाले ग्रंथ में प्रत्येक रोग की संक्षिप्त जानकारी के उपरांत उस बीमारी पर गुणकारी होमियोपैथी औषधियों की जानकारी दी है । इसमें प्रत्येक औषधि का गुणधर्म (अर्थात वे औषधि निरोगी व्यक्ति को देने के उपरांत उसमें निर्माण होनेवाले लक्षण) संक्षेप में दिए हैं । ये गुणधर्म पढकर अपने लक्षणों के अनुरूप औषधि चुनना है, उदा. हमें बुखार आ रहा हो और उसके साथ ही मन अस्वस्थ होना और बहुत प्यास लगना और उसके लिए बहुत मात्रा में ठंडा पानी पीना, ऐसे लक्षण हों, तो उस पर ‘कोनाईट नैपेलस (Aconite Napellus)’, औषधि लेनी होती है; परंतु बुखार के साथ चेहरा लाल और सूजा दिखाई दे, बुखार के समय प्यास तनिक भी न लगना, ऐसे लक्षण हों, तब ‘बेलाडोना (Belladona)’, औषधि लेनी होती है ।
इसलिए केवल बुखार इस एकमात्र मुख्य लक्षण पर आधारित औषधि का चयन नहीं करना होता है, अपितु उस बीमारी पर कौनसी औषधि के विशिष्ट गुणधर्म से अपने लक्षण सर्वाधिक मेल खाते हैं, यह देखकर ही औषधि लेनी होती हैं ।
बुखार आने के पश्चात हममें ध्यान में आए विविध लक्षण और उस प्रकरण में दिए किसी औषधि के गुणधर्म से जहां अधिकाधिक साधर्म्य दिखाई देता है, उस औषधि का नाम अपने कागद पर लिखें । यदि २-३ औषधियों का साधर्म्य ध्यान में न आए, तो पुन: सर्व औषधियों का गुणधर्म पढे बिना उसमें कौन सी औषधि से अपने लक्षण सर्वाधिक मेल खाते हैं, यह देखें ।
१ ई. एक ही औषधि लेना
यदि हमें बीमारी के लक्षणों के २-३ औषधियों के गुणधर्म से साधर्म्य प्रतीत हो रहा हो और उस कारण एक ही औषधि निश्चित न कर पा रहे हों, तब एक समय उन्हीं में से सर्वाधिक साधर्म्यवाली एक ही औषधि हमें लेना चाहिए ।
१ उ. कुछ बीमारियों के विषय में आरंभ में लक्षणों की तीव्रता न्यून करनेवाली औषधि लेना आवश्यक होना
कुछ बीमारियों के विषय में, उदा. ‘पेटदर्द’, इस बीमारी के प्रकरण में ‘पेट में वेदना होते समय तुरंत वेदनामुक्ति हो, इसके लिए मैग्नेशियम फॉस्फोरिकम् (Magnesium Phosphoricum) इस औषधि की ४ गोलियां आधे कप गुनगुने पानी में घोलकर, उसमें से १-१ चम्मच पानी प्रत्येक १५ मिनटों में वेदना रुकने तक लें ।’, इस अनुसार जिस रोग के विषय में दिया हो, वहां उस रोग के लक्षण आरंभ होने पर उपचार के आरंभ में पहले वह औषधि लें । तदुपरांत ‘सूत्र क्र. १’ में बताए अनुसार अपने लक्षण उस बीमारी पर गुणकारी औषधियों में से जिस औषधि के गुणधर्माें से सर्वाधिक मेल खाते हैं वह औषधि शुरू करें ।
१ ऊ. औषधि तैयार करने की पद्धति
आगे ‘सूत्र क्र. ७’ में बताए अनुसार बाजार में मिलनेवाली होमियोपैथी की औषधि के लिए उपयोग में आनेवाली छोटी उंगली की लंबाई की प्लास्टिक की शीशी में ‘४०’ क्रमांक की शक्कर की गोलियां भरकर उसमें हम चुनी गई औषधि की ३-४ बूंदें डालकर शीशी का ढक्कन बंद कर, शीशी की गोलियां ऊपर-नीचे करें । इससे औषधि प्रत्येक गोली पर समान फैलती है । तदुपरांत उसमें से ४ गोलियां जीभ के नीचे रखें । ऐसी शीशी और शक्कर की गोलियां होमियोपैथी औषधि की दुकान में मिलती हैं ।
बाजार में अनेक ‘पोटन्सी’की (शक्ति की) औषधियां उपलब्ध होती हैं; परंतु स्वउपचार करने के लिए हम सामान्यतः केवल ‘३०’ पोटन्सी की औषधियों का उपयोग करते हैं । इससे भिन्न ‘पोटन्सी’की औषधि का उपयोग करना हो, तो वहां हमने दिया है ; अन्यथा अन्य पोटन्सी की औषधि केवल विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श से ही लें ।
१ ए. औषधियों की शीशियों (बोतलों) पर व्यक्ति एवं औषधि के नाम की पट्टी (लेबल) लगाना आवश्यक
ऐसा हो सकता है कि घर में एक ही समय पर २-३ व्यक्तियों को होमियोपैथी औषधियां शुरू हों । ऐसे समय पर प्रत्येक के लिए औषधियों की गोलियां तैयार करने से पहले उस व्यक्ति और औषधि का नाम बोतल पर डालकर ही उसमें शक्कर की गोलियां और औषधि की बूंदें डालकर बनाएं ।
१ ऐ. औषधि लेने की पद्धति
औषधि लेते समय डिब्बी से ४ गोलियां डिब्बी के ढक्कन लेकर सीधे जीभ के नीचे रखना । वे अपनेआप घुल जाती हैं । औषधि की गोलियां निगले नहीं । औषधि सामान्यतः जीभ के नीचे रखी जाती है; परंतु नवजात शिशुओं में उसकी कलाई पर, पैर के तलवों को अथवा पैर के अंगूठे की घडी में (फोल्ड में) लगा सकते हैं । जो प्रौढ व्यक्ति गोलियां नहीं ले सकता है, उदा. कोमा में गया व्यक्ति, ऐसों को औषधियां सूंघा सकते हैं । ऐसे समय पर औषधि का ढक्कन हटाकर शीशी रोगी के नाक के नीचे ३० सेकंड रखें ।
१ ओ. औषधि लेते समय बरती जानेवाली सावधानी
अ. औषधि लेने से १५ मिनट पहले और लेने के १५ मिनट पश्चात कुछ भी खाएं-पीएं नहीं ।
आ. इत्र, कपूर, गरम मसाले (इलायची, काली मिर्च) इत्यादि की उग्र गंध से, इसके साथ ही सूर्यप्रकाश से औषधि दूर रखें ।
इ. औषधि लेने से पूर्व और पश्चात १ घंटा टूथपेस्ट (उसमें विद्यमान पुदिना अर्थात mint के कारण) उपयोग न करें । सर्दी के लिए ली जानेवाली औषधि, इसके साथ ही त्वचा पर लगाई जानेवाली ‘विक्स वेपोरब’जैसी औषधियां (उनमें विद्यमान कपूर, मेन्थॉल, नीलगिरी के तेल के कारण) टालें ।
१ औ. औषधि प्रतिदिन कितनी बार लेनी है ?
सामान्यतः औषधि सवेरे, दोपहर और रात, इसप्रकार ३ बार लेनी होती है; परंतु ताप, अतिसार इसप्रकार की छोटी-छोटी बीमारियों के लिए (acute illnesses के लिए) आवश्यकता अनुसार दिन में ३ से ८ बार भी लेनी पड सकती है । अपघात होने पर यदि चोट लगी हो, तो प्रत्येक घंटे में भी औषधि लेनी पड सकती है ।
१ अं. औषधि का परिणाम हो रहा है, यह कैसे पहचानें ?
होमियोपैथी औषधियों का परिणाम व्यक्ति के अनुरूप भिन्न हो सकता है । कुछ लोगों में औषधि आरंभ करते ही स्पष्टरूप से लक्षण कम होते हुए दिखाई देने लगते हैं । ऐसा भी देखा गया है कि कुछ लोगों में लक्षणों के कम होने से पहले उनमें कुछ मात्रा में वृद्धि भी हो सकती है । कुछ लोगों के विषय में उनके रोग के विशिष्ट लक्षणों में (उदा. त्वचा पर फुंसियां) बहुत परिवर्तन नहीं होता, उनके कुल शरीर और मन के स्तर पर भारी मात्रा में सकारात्मक परिवर्तन ध्यान में आता है । होमियोपैथी में कुल सकारात्मक परिवर्तन अच्छे लक्षण माने जाते हैं; कारण ऐसा होना दर्शाता है कि यह औषधि रोग पर सबसे मूलभूत स्तर पर कार्य कर रही है ।’ अर्थात् आगे सभी लक्षण जाना अपेक्षित है और वैसा ही होता है ।
२. होमियोपैथी ‘स्वउपचार’संबंधी मार्गदर्शक सूत्र
२ अ औषधि कितने दिन लेनी है ?
होमियोपैथी में ‘अमुक दिनों तक औषधि लेनी है’, ऐसा नहीं होता । औषधि आरंभ करने पर यदि १ से २ दिनों में ही अच्छा लगने लगे अथवा जिस मात्रा के उपरांत (dose के उपरांत) अच्छा लगने लगे, तदुपरांत वे औषधि लेना बंद कर दें । संक्षेप में, जिस क्षण से हमें अच्छा लगने लगे, उदा. बुखार उतर गया अथवा जुलाब रुक जाएं, तो औषधि लेना बंद कर देना है ।
बीमारी नई है अथवा पुरानी ? इस पर भी औषधि कितना समय तक लेनी है, यह निर्धारित होता है, उदा. बुखार पर आरंभ की औषधि का परिणाम तुरंत दिखाई देता है । इससे बुखार उतरने पर तुरंत औषधि बंद करनी होती है । इसके विपरीत जोडों का दर्द, दमा, पीठदर्द जैसे पुरानी बीमारियों को ठीक होने में कुछ समय लग सकता है । यदि हम बीमारी पर योग्य औषधि ढूंढने पर सफल हो गए, तो बीमारी पूर्णरूप से ठीक हो जाती है । अन्यथा पुरानी बीमारी के पुन: शुरू होने पर योग्य औषधि ढूंढकर उसे लें और तदुपरांत बीमारी का कष्ट ५० प्रतिशत न्यून होने पर औषधि बंद करें । कुछ समय पश्चात कष्ट यदि पुन: हो, तो पहले की ही औषधि पुन: आरंभ करें ।
२ आ. औषधि बदलने का विचार कब करना है ?
औषधि शुरू करने के पश्चात भी कुछ तो सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देना अपेक्षित है । छोटे अवधि की बीमारियां, उदा. बुखार, जुलाब में औषधि आरंभ करने के पश्चात १ दिन बीत जाने पर यदि तनिक भी परिवर्तन नहीं हो रहा हो, तो हम यह तय कर सकते हैं कि यह औषधि बीमारी पर काम नहीं कर रही । तदुपरांत ऊपर बताए अनुसार सब प्रक्रिया पुनश्च कर अपनी बीमारी पर गुणकारी औषधि ढूंढें ।
इसके विपरीत अनेक माह से अथवा वर्षाें पुराना दमा, संधिवात (गठिया), कमर में दर्द, पीठदर्द इत्यादि पुरानी बीमारियों के विषय में औषधि बदलने का निर्णय तुरंत नहीं ले सकते । ऐसी बीमारियों में हमारे लिए गुणकारी औषधि ढूंढने पर उसकी ४ गोलियां दिन में २ बार (सवेरे और रात) इसप्रकार १५ दिन लें । तदुपरांत अपनी बीमारी की स्थिति का ब्योरा लें । बीमारी के लक्षण यदि कम हो गए होें, तो प्रतीक्षा कर सकते हैं । यदि कष्ट पुन: न हो, तो औषधि पुन: नहीं लेनी है । यदि कष्ट पुन: होने लगे अथवा न्यून हो गया; परंतु पूर्णरूप से ठीक नहीं हुआ, तो पुन: १५ दिन औषधि लेकर पहले के समान ब्योरा लें । कुल १ माह औषधि लेने पर भी अच्छा न लग रहा हो, तो पुन: बीमारी पर ऊपर दिए अनुसार पुन: औषधि ढूंढें; संभव हो तो होमियोपैथी डॉक्टर से परामर्श करें । पुरानी बीमारी को ठीक होने में कुछ समय लगता है; परंतु होमियोपैथी औषधि से बीमारी की तीव्रता न्यून होती है और दो वेदनाओं के बीच की अवधि बढ जाती है ।
२ इ. बीमारी ठीक होने के पश्चात शेष रह गई औषधि का क्या करें ?
यदि रोग ठीक हो जाए; परंतु उस बीमारी पर तैयार की गई औषधि की गोलियां शेष रह गई हों, तो एक प्लास्टिक के पैकट पर औषधि के नाम की पट्टी चिपकाकर उसमें वह शीशी डालकर रखनी है । तदुपरांत ६ माह अथवा एक वर्ष उपरांत भी यदि किसी को उस औषधि की आवश्यकता लगे, तो हम उसका उपयोग कर सकते हैं ।
२ ई. होमियोपैथी औषधि गलती से अधिक मात्रा में ले ली गई हो, तो क्या करें ?
यदि छोटे बच्चे गलती से होमियोपैथी औषधि की पूरी शीशी गोली खा लें, तब भी चिंता करने की कोई बात नहीं । हम उसे कॉफी पीने के लिए दे सकते हैं । कॉफी पीने से औषधि का परिणाम निकल जाता है । इसका कारण यह है कि कॉफी होमियोपैथी औषधियों के लिए ‘हारक परिणाम’ (antidote) करनेवाला है ।
२ उ. अपनी बीमारी के लक्षणों पर होमियोपैथी औषधि मिले ही नहीं, तो क्या करें ?
यदि हमारी बीमारी के लक्षणों पर होमियोपैथी औषधि हमें नहीं मिली हो, तो ऐसे समय पर हम ‘बाराक्षार औषधि’ ले सकते हैं । प्रत्येक बीमारी के लिए कौन-सी ‘बाराक्षार औषधि’ लेनी है, यह अधिकांश बीमारियों के प्रकरणों के अंत में दिया है । कुछ बीमारियों में, उदा. ‘जलना’ इसमें हम जली हुई त्वचा पर होमिओपैथी औषधि (कैन्थरिस वेसिकाटोरिया (Cantharis Vesicatoria) लगानी है, यह विशेषरूप से बताए जाने के कारण उस प्रकरण में बाराक्षार औषधि विषयी नहीं दिया है ।
३. अन्य पैथीनुसार उपचार शुरू हों, तो क्या करें ?
होमियोपैथी औषधि ऊर्जा के स्तर पर कार्य करती है । होमियोपैथी औषधियों में सफेद शक्कर की गोलियां, केवल इस मूल औषधि की केवल वाहक हैं । वे गोलियां स्वयं औषधि नहीं हैं; इसीलिए होमियोपैथी की सभी औषधियां एकसमान ही दिखाई देती हैं । होमियोपेथी उपचारपद्धति निर्मूलन के तत्त्व पर आधारित है । व्यक्ति के अस्तित्व में असंतुलन निर्माण करनेवाले शरीर एवं मन (नकारात्मक विचार एवं भावना रूपी) में विषजन्य (toxic) घटकों का निर्मूलन कर, पुन: संतुलित करते हैं । इसलिए होमियोपैथी औषधि अन्य पैथी की औषधियों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करती, इसके साथ ही अन्य पैथी भी होमियोपैथी औषधियों के कार्यपर परिणाम नहीं करती । इसलिए अन्य पैथीनुसार उपचार शुरू होने पर भी हम होमियोपैथी उपचार ले सकते हैं । होमियोपैथी उपचार आरंभ करने पर अन्य पैथी के उपचार अपने मन से बंद न करें । अन्य पैथी की औषधि कम अथवा बंद करनी हो, तो उन अमुक पैथियों के विशेषज्ञों से परामर्श कर, उनकी देख-रेख में उपचार लें ।