अनुक्रमणिका
- सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में होनेवाले अच्छे और कष्टदायक परिवर्तन अर्थात देवासुर संग्राम का स्थूल से हुआ प्रकटीकरण !
- १. भीत (दीवार) पर अनिष्ट शक्तियों के पैर की हड्डी समान आकार निर्माण करने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- २. भीत पर उभरे सफेद पंजे का मायावी कार्य
- ३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा पेन्सिल से बनाई ‘ॐ’ समान आकृति निर्माण करने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ४. उत्तर की दीवार पर वर्ष २०१४ में हाथ के पंजे की केवल उंगलियां दिखाई देना, वर्ष २०१८ में उंगलियों के नीचे हथेली का भाग दिखाई देना और वर्ष २०२१ में छायाचित्र में धब्बा अस्पष्ट दिखाई देने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ५. दक्षिण की भीत पर उभरे धब्बों का आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ५ अ.सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की दक्षिण की भीत पर विविध चेहरे दिखाई देना और इन सभी का वर्ष २०१४ में अधिक स्पष्ट दिखाई देना, जबकि वर्ष २०२१ में सर्वाधिक स्पष्ट दिखाई देना, इसके पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ५ आ.सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में दक्षिण की भीत पर वर्ष २०१३ में खींचे गए छायाचित्र की तुलना में वर्ष २०२१ में खींचे गए छायाचित्र में भीत पर दाग-धब्बे न्यून होना दिखाई देने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ६. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की उत्तर की दीवार पर वर्ष २०१८ में छायाचित्र में दिखाई देनेवाला दाग वर्ष २०२१ में छायाचित्र में न दिखाई देने के पीछे का आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
- ७. ‘कक्ष के उत्तर दिशा की भीत पर वर्ष २०१८ में लिए छायाचित्र में भीत पर आए उभार में चेहरा दिखना और वर्ष २०२१ में छायाचित्र में वह उभार फूटकर चेहरा उद्ध्वस्त होने समान दिखाई देना’, इन उभारों में परिवर्तन के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
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सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की दीवार पर, इसके साथ ही फर्श पर पडे दाग-धब्बों के ११ से १३.३.२०२१ तक छायाचित्र खींचे गए । उसीप्रकार इनके वर्ष २०१३ एवं वर्ष २०१८ में भी छायाचित्र खींचे गए थे । इन छायाचित्रों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया । (कुछ दाग-धब्बों के छायाचित्र वर्ष २०१३ में नहीं लिए गए थे ।)
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष के उत्तर की दीवार पर वर्ष २०१८ में खींचे छायाचित्र में पैर की हड्डी समान, साथ ही पंजे समान सफेद दाग अथवा पेन्सिल से बनाई गई ‘ॐ’ समान आकृति दिखाई दे रही है । वर्ष २०२१ में खींचे छायाचित्र में उसी स्थान पर दोनों धब्बे दिखाई नहीं दे रहे हैं । वे ऐसे दिखाई दे रहे हैं मानो उन दोनों धब्बों मानो पोछ दिया गया हो । इसके पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव आगे दिए अनुसार है ।
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सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में होनेवाले अच्छे और कष्टदायक परिवर्तन अर्थात देवासुर संग्राम का स्थूल से हुआ प्रकटीकरण !
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‘प्राचीन काल में ऋषि-मुनि जब यज्ञयागादि करते थे, तब महाबलशाली राक्षस उसमें विघ्न लाते थे । वे ऋषि-मुनियों पर प्राणघातक आक्रमण करते और गोमांसभक्षण करते । इसप्रकार युगों-युगों से देवासुर संग्राम निरंतर जारी ही है ।
सप्त लोकों की दैवीय अथवा अच्छी शक्तियों एवं सप्त पातालों की अनिष्ट शक्तियों में चल रही इस लडाई का भूतल पर भी स्थूल से प्रकटीकरण हुआ दिखाई देता है । पृथ्वी की सात्त्विकता नष्ट करना और दुष्प्रवृत्तियों के माध्यम से भूतल पर अनिष्ट शक्तियों के राज्य की स्थापना करना ही सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों का ध्येय है और इसके लिए वे प्रयत्न कर रही हैं । भूतल पर ‘हिन्दू राष्ट्र’ अर्थात ‘विश्वकल्याणार्थ कार्यरत सात्त्विक लोगों का राष्ट्र’ स्थापन करने के लिए संत एवं अच्छी शक्तियां कटिबद्ध हैं । इससे ‘अनिष्ट शक्तियों का राज्य’ की स्थापना हेतु प्रयत्नशील अनिष्ट शक्तियों के प्रयत्नों को अंकुश लगता है; इसलिए वे समष्टि साधना करनेवाले संत एवं साधकों के कार्य में और सेवा में अनेक विघ्न लाती हैं । साधकों के कपडे, शरीर और मन के साथ-साथ उनके वास्तु में देवी- देवताओं के चित्र, वस्तु आदि पर भी सूक्ष्म से आक्रमण करती हैं । स्थूल से कार्य हमें दिखाई देता है; परंतु सूक्ष्म से चल रहे कार्य के विषय में हम अनभिज्ञ रहते हैं । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के साथ हो रही इस लडाई में संत सूक्ष्म से जो कार्य कर रहे हैं, उसके विषय में हम पूर्णरूप से अज्ञानी हैं । सूक्ष्म युद्ध के कुछ वर्षाें उपरांत स्थूल, अर्थात दृश्य परिणाम दिखाई देने लगता है ।
सूक्ष्म युद्ध में कार्यरत दैवीय शक्ति का चैतन्य जब सगुण स्तर पर कार्यरत होता है, तब यह चैतन्य पंचतत्त्वों के स्तर पर प्रकट होता है । पृथ्वी तत्त्व के कारण दैवीय सुगंध फैलती है । आपतत्त्व के कारण फर्श अथवा शीशे पारदर्शक होते हैं । तेजतत्त्व के कारण विविध रंगों की छटाएं अथवा विविध प्रकार की दैवीय आकृतियां उभरती हैं । वायु तत्त्व के कारण दीवार, फर्श अथवा खिडकियों के शीशों (कांच) का स्पर्श अधिक चिकना होता है । आकाश तत्त्व के कारण विविध प्रकार के दैवीय नाद सुन सकते हैं । दैवीय परिवर्तन के कारण देवता का तत्त्व कार्यरत होकर वास्तु में दैवीय शक्ति कार्यरत होती है और अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से वास्तु के साथ ही वास्तु में रहनेवाले लोगों की भी रक्षा होती है ।
यही नियम कष्टदायक शक्तियों के लिए भी लागू होने से जब कष्टदायक शक्ति सगुण स्तर पर कार्यरत होती है, तब उसमें विद्यमान पृथ्वीतत्त्व के कारण दुर्गंध निर्माण होती है । आपतत्त्व के कारण फर्श अथवा कांच की पारदर्शकता न्यून होकर वहां पतली-पतली धार सी निर्माण होती हैं । तेजतत्त्व के कारण खरोंचें, दाग-धब्बे अथवा विविध प्रकार की कष्टदायक आकृतियां निर्माण होती हैं । वायु तत्त्व के कारण दीवार अथवा खिडकियों के शीशों का स्पर्श चिपचिपा, खुरदरा अथवा उष्ण प्रतीत होता है । आकाश तत्त्व के कारण विविध प्रकार के कष्टदायक नाद सुनाई देते हैं । अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए गए परिवर्तनों के कारण कष्टदायक शक्ति कार्यरत होकर वास्तु में कष्ट प्रतीत होता है ।
– श्रीमती प्रियांका गाडगीळ, शोधकार्य समन्वयक, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा
१. भीत (दीवार) पर अनिष्ट शक्तियों के पैर की हड्डी समान आकार निर्माण करने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
हड्डियों में पृथ्वी तत्व एवं वायु तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होते हैं । जब अनिष्ट शक्ति करनी (अर्थात काला जादू) हेतु हड्डियों का उपयोग करती हैं, तब हड्डियों के माध्यम से पृथ्वी और वायु, इन तत्त्वों के स्तर पर कष्टदायक मायावी शक्ति अधिक मात्रा में कार्यरत होती है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को कष्ट देने के लिए पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियों ने पृथ्वी एवं वायु, इन तत्त्वों के स्तरों पर काली शक्ति का प्रक्षेपण किया । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर छोडी गई कुल ६० प्रतिशत कष्टदायक काली शक्ति से उनकी रक्षा करने के लिए उनकी खोली की उत्तर दिशा की भीत पर भी शक्ति ५ प्रतिशत मात्रा में अवशोषित हुई । इसलिए कक्ष के उत्तर की दीवार पर हड्डियों समान दिखाई देनेवाली आकृतियां निर्माण हुई हैं । शेष ५५ प्रतिशत अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की स्थूलदेह पर हुए । इसलिए उनकी प्राणशक्ति न्यून होकर उन्हें बहुत थकान आना, पैरों में वेदना, कमजोरी और चक्कर आना जैसे विविध प्रकार के शारीरिक कष्ट हुए ।
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२. भीत पर उभरे सफेद पंजे का मायावी कार्य
भीत पर उभरा सफेद पंजा मायावी शक्ति से प्रभारित होने से वह आशीर्वाद देनेवाली मुद्रा में होना प्रतीत होता है; परंतु वह प्रत्यक्ष में पंचतत्त्वों के स्तर पर कष्टदायक (काली) शक्ति प्रत्येक उंगली से प्रक्षेपित कर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की प्राणशक्ति खींच लेने के लिए कार्यरत हुई है ।
३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा पेन्सिल से बनाई ‘ॐ’ समान आकृति निर्माण करने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
दैत्यगुरु शुक्राचार्य, भगवान शिव के उपासक हैं । उन्हें शिव से मिली हुई दैवीय शक्तियों पर तंत्रविद्या का आवरण लाकर उसका रूपांतर कष्टदायक मायावी शक्ति में कर, उसे सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की दिशा में प्रक्षेपित किया । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में उत्तर दिशा की भीत (दीवार) पर शिव की निर्गुण-सगुण स्तर पर शक्ति कार्यरत है । शिव की इस शक्ति ने शुक्राचार्य द्वारा छोडी गई मायावी शक्ति को रोककर रखा है । इसलिए उत्तर की दीवार पर शिव की अच्छी शक्ति और मायावी शक्ति में भीषण सूक्ष्म युद्ध होने लगा । तब उस दीवार पर कार्यरत हुई मायावी शक्ति ने पेन्सिल द्वारा बनाए ‘ॐ’ समान आकृति धारण कर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को धोखा देने का प्रयत्न किया; परंतु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी त्रिकालदर्शी होने के कारण उन्होंने इस मायावी शक्ति को पहचान लिया । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की दृष्टि से प्रक्षेपित हुई मारक शक्ति के कारण भीत पर मायावी ‘ॐ’ की आकृति में संग्रहित कष्टदायक शक्ति नष्ट हो गई है ।
४. उत्तर की दीवार पर वर्ष २०१४ में हाथ के पंजे की केवल उंगलियां दिखाई देना, वर्ष २०१८ में उंगलियों के नीचे हथेली का भाग दिखाई देना और वर्ष २०२१ में छायाचित्र में धब्बा अस्पष्ट दिखाई देने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
वर्ष २०१४ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में उत्तर की दिशा की भीत पर उभरी हाथ के पंजे की उंगलियों से सगुण-निर्गुण स्तर पर कष्टदायक शक्ति कार्यरत हुई । छोटी उंगली से पृथ्वी, अनामिका से आप, मध्यमा से तेज, तर्जनी से वायु एवं अंगूठे से आकाश, इन तत्त्वों के स्तरों पर शक्ति वातावरण में प्रक्षेपित हो रही थी । वर्ष २०१८ में इस हथेली से निर्गुण-सगुण स्तर पर कष्टदायक शक्ति प्रक्षेपित होना आरंभ होने से उंगलियों के नीचे का पंजा दिखाई देने लगा । वर्ष २०१८ से वर्ष २०२१ तक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी से प्रक्षेपित हुई श्रीविष्णु के निर्गुण-सगुण स्तर पर तत्त्व के कारण उत्तर की ओर दीवार पर पंजा और उंगलियोेंं से कष्टदायक शक्ति की मात्रा अत्यंत न्यून हो गई । इसलिए वर्ष २०२१ में छायाचित्र में धब्बे अस्पष्ट दिखाई दे रहे हैं ।
५. दक्षिण की भीत पर उभरे धब्बों का आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
५ अ.सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की दक्षिण की भीत पर विविध चेहरे दिखाई देना और इन सभी का वर्ष २०१४ में अधिक स्पष्ट दिखाई देना, जबकि वर्ष २०२१ में सर्वाधिक स्पष्ट दिखाई देना, इसके पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में दक्षिण की भीत पर विविध चेहरे दिखाई देते हैं । इन दाग-धब्बों में मायावी शक्ति वायुतत्त्व के स्तर पर कार्यरत होने से ऐसा लगता है कि इन दाग-धब्बों पर उभरे चेहरे सजीव हो गए हैं और उनके नेत्र अपनी ओर देख रहे हैं । वर्ष २०१३ में इन दाग-धब्बों में निर्गुण-सगुण स्तर पर कष्टदायक शक्ति कार्यरत होने से ये दाग स्पष्ट नहीं दिखाई देते थे । तदुपरांत उनकी त्रासदायक शक्ति के न्यून होने से उन धब्बों की कक्ष के निर्गुण चैतन्य से लढने की क्षमता न्यून होकर वह सगुण-निर्गुण स्तर पर कार्यरत होकर प्रकट होने लगी । इसकारण वर्ष २०१३ में छायाचित्रों की तुलना में वर्ष २०१४ में छायाचित्र में दाग-धब्बे अधिक स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं । वर्ष २०२१ में इन दाग-धब्बों की सर्व कष्टदायक शक्ति पूर्णरूप से क्षीण होकर वह सगुण स्तर पर प्रकट होने के कारण इन दागों के चेहरे वर्ष २०२१ में सर्वाधिक स्पष्ट दिख रहे हैं ।
५ आ.सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष में दक्षिण की भीत पर वर्ष २०१३ में खींचे गए छायाचित्र की तुलना में वर्ष २०२१ में खींचे गए छायाचित्र में भीत पर दाग-धब्बे न्यून होना दिखाई देने के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
वर्ष २०१३ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर अनिष्ट शक्तियां दक्षिण से भारी मात्रा में आक्रमण कर रही थीं । ये आक्रमण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की स्थूलदेह पर अधिक मात्रा में होने से इन आक्रमणों का स्तर सगुण-निर्गुण होता है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के देह की अनिष्ट शक्तियों के कष्टों से रक्षा करने के लिए उनके चैतन्यदायी कक्ष में दक्षिण दिशा की भीत ने वे स्वयं पर झेले । इसलिए दक्षिण दिशा की भीत पर विविध प्रकार के दाग-धब्बे उभर आए । इसी अवधि में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर महामृत्युयोग का संकट आकर उनकी प्राणशक्ति कम होने लगी । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर महामृत्युयोग के संकट से रक्षा करने के लिए शिव की शक्ति कार्यरत हुई । यही शिव की शक्ति सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की दिशा में प्रक्षेपित हुई और वह उनकी खोली की उत्तर की भीत पर निर्गुण-सगुण स्तर पर कार्यरत हुई । इस भीत से दक्षिण की भीत पर के दागों पर शिव के निर्गुण-सगुण स्तर पर शक्ति और चैतन्य का प्रक्षेपण होने से दक्षिण की भीत पर दागों में कार्यरत विघातक कष्टदायक शक्ति की मात्रा न्यून हुई । इसलिए वर्ष २०२१ में दक्षिण की भीत पर उभरे दागों की मात्रा न्यून हुई । उसके साथ ही सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की देह के सर्व ओर शिव की शक्ति महामृत्युंजय कवच के रूप में कार्यरत होने से उन पर से महामृत्युयोग का संकट दूर हुआ ।’
६. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की उत्तर की दीवार पर वर्ष २०१८ में छायाचित्र में दिखाई देनेवाला दाग वर्ष २०२१ में छायाचित्र में न दिखाई देने के पीछे का आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
श्रीविष्णु भगवान शिव के आराध्य हैं और शिवजी श्रीविष्णु के आराध्य हैं । विष्णुस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के पाताल की बडी अनिष्ट शक्तियां एवं शुक्राचार्य द्वारा किए गए सूक्ष्म के आक्रमणों से रक्षा करने के लिए वर्ष २०१३ से शिवतत्त्व कार्यरत हुआ है । देवासुर संग्राम की तीव्रता के अनुसार शिव का तत्त्व वर्ष २०१३ से वर्ष २०२१ तक बढ रहा है । इसलिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर प्राणघातक आक्रमणों से रक्षा होने के लिए उन पर महामृत्युयोग का संकट दूर हो रहा है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की रक्षा के लिए कार्यरत शिवतत्त्व का घनीकरण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की उत्तर दिशा की भीत में हुआ है; कारण उत्तर दिशा में कैलाश पर्वत है । उत्तर की ओर भीत में शिवतत्त्वमय चैतन्य उत्तरोत्तर बढते समय इस भीत पर दागों की मात्रा न्यून होकर वे पूर्णरूप से नष्ट हो गए हैं । दैवीय चैतन्य के आगे बुरी शक्ति की माया अधिक काल टिकी नहीं रह सकती । इसलिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष के उत्तर की भीत पर वर्ष २०१८ में छायाचित्र में हाथ के दाग दिखाई नहीं देते । यह परिणाम अनिष्ट शक्तियों पर दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है ।
७. ‘कक्ष के उत्तर दिशा की भीत पर वर्ष २०१८ में लिए छायाचित्र में भीत पर आए उभार में चेहरा दिखना और वर्ष २०२१ में छायाचित्र में वह उभार फूटकर चेहरा उद्ध्वस्त होने समान दिखाई देना’, इन उभारों में परिवर्तन के पीछे आध्यात्मिक कार्यकारणभाव
जब कष्टदायक शक्ति आप एवं वायुतत्त्वों पर कार्यरत होती है, तब भीत, कांच अथवा फर्श पर उभार आते हैं । उभार के पृष्ठभाग पर तेजतत्त्व कार्यरत होकर उस पर विविध प्रकार के अनिष्ट शक्तियों के चेहरे निर्माण होते हैं । इसप्रकार उभारों में आपतत्त्व के माध्यम से सगुण, चेहरे के तेजतत्त्व के माध्यम से सगुण-निर्गुण एवं वायुतत्त्व के माध्यम से निर्गुण-सगुण, ऐसे तीनों स्तरों पर कष्टदायक शक्ति का प्रक्षेपण होता है । इसकारण सगुण स्तर पर स्थूलदेह के विविध अवयव, सगुण-निर्गुण स्तर पर देह की प्राणशक्ति एवं निर्गुण-सगुण स्तर पर वायुरूपी प्राणों पर कष्टदायक शक्ति के आक्रमण एक ही समय पर हो रहे थे । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को कष्ट देने के लिए पाताल की अघोरी अनिष्ट शक्तियों ने शुक्राचार्य की संकल्पशक्ति के आधार पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पर आपतत्त्व की सहायता से सगुण, तेजतत्त्व की सहायता से सगुण-निर्गुण एवं वायुतत्त्व की सहायता से निर्गुण-सगुण, ऐसे तीनों स्तरों पर एक ही समय पर आक्रमण करने के लिए उनके कक्ष में उत्तर की भीत पर उभार निर्माण किए इसलिए सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का शारीरिक स्वास्थ्य बिगड गया और उन्हें विविध प्रकार की व्याधियां हो गईं । इसके साथ ही उनकी प्राणशक्ति न्यून होकर, उनके प्राणहरण करने के लिए उन पर महामृत्युयोग का संकट आया । उत्तर की भीत पर कार्यरत महामृत्युंजय स्वरूप शिवतत्त्व की प्रकट शक्ति ने भीत पर आए उभारों के आप एवं तेजतत्त्वों के स्तरों पर कष्टदायक शक्ति से सगुण एवं निर्गुण स्तरों पर सूक्ष्म युद्ध कर, उसका विघटन किया । जब शिवतत्त्वमय चैतन्य से उभारों का वायुतत्त्व के स्तर पर कष्टदायक शक्ति से निर्गुण-सगुण स्तर पर सूक्ष्म युद्ध किया । तब उभारों में विद्यमान वायुतत्त्वमय काली शक्ति में बडे विस्फोट हुए और उसका पूर्णरूप से विघटन हो गया । इसलिए वर्ष २०२१ में इन उभारों में से तेजतत्त्व के स्तर पर काली शक्ति द्वारा बनाया गया चेहरा उद्ध्वस्त हुए समान दिखाई दे रहा है । दीवार पर उभार और उस पर कष्टदायक चेहरा उद्ध्वस्त होना’, यह अनिष्ट शक्ति पर अच्छी शक्ति की विजय का प्रतीक है । अब उत्तरोत्तर अच्छी शक्ति की विजय होने से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी सनातन के विविध स्थानों के आश्रम एवं देशविदेश के विविध साधकों में अनिष्ट शक्तियों के कारण निर्माण हुईं खरोंचें, दाग, उभार एवं विविध प्रकार की आकृतियां पूर्णरूप से नष्ट होनेवाली हैं । जब हिन्दू राष्ट्र आएगा, तब उपरोक्त सभी स्थानों पर दैवीय चिन्ह उभरनेवाले हैं ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१८.४.२०२१)
वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों से विनती !‘सनातन के गोवा स्थित रामनाथी आश्रम में अनेक बुद्धिअगम्य घटनाएं होती रहती हैं । उनमें एक है, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कक्ष की दीवार पर २०१३ से वर्ष २०२१ तक उभरी विविध आकृतियां और उनमें अपनेआप हुए परिवर्तन ! ‘भीत पर ऐसी आकृतियां उभरने का वैज्ञानिकदृष्टि से कारण क्या है ? उसमें अपनेआप परिवर्तन कैसे होते हैं ? उन्हें कौन-से वैज्ञानिक उपकरणों से शोधकार्य करना है ?’ इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से शोधकार्य करनेवालों की सहायता मिलने पर हम कृतज्ञ रहेंगे ।’ – व्यवस्थापक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. |
सूक्ष्म : व्यक्ति का स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले अवयव नाक, कान, आंखें, जीभ और त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । ये पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे अर्थात सूक्ष्म । साधना में प्रगति किए बिना कुछ व्यक्तियों को ये सूक्ष्म संवेदना ध्यान में आती हैं । इस सूक्ष्म के ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
सूक्ष्म का दिखाई देना, सुनाई देना इत्यादि (पंच सूक्ष्मज्ञानेंद्रियों द्वारा ज्ञानप्राप्ति होना) : कुछ साधकाें की अंतर्दृष्टि जागृत होती है, अर्थात उन्हें सामान्य आंखों से न दिखाई देनेवाला भी दिखाई देता है, तो कुछ लोगों को सूक्ष्म का नाद अथवा शब्द सुनाई देते हैं । सूक्ष्म-परीक्षण : किसी घटना के विषय में अथवा प्रक्रिया के विषय में चित्त को (अंतर्मन को) जो लगता है, उसे ‘सूक्ष्म-परीक्षण’ कहते हैं । सूक्ष्म-जगत : जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों को (नाक, जीभ, आंखें, त्वचा और कान को) समझ में नहीं आता; परंतु जिसके अस्तित्व से ज्ञान साधना करनेवाले को होता है, उसे ‘सूक्ष्म-जगत’ संबोधित करते हैं । अनिष्ट शक्ति : वातावरण में अच्छी और बुरी शक्तियां कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्ति अच्छे कार्य के लिए मानव की सहायता करती है, तो अनिष्ट शक्ति उसे कष्ट देती है । पूर्वकाल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों द्वारा विघ्न लाने की अनेक कथा वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच इत्यादि के साथ ही करनी, भानामती को प्रतिबंधित करने के लिए मंत्र दिए जाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादि धर्मग्रंथों में बताए हैं । |