490 वर्षाें के वनवास के उपरांत श्रीरामजन्मभूमिवर भव्य श्रीराममंदिर का निर्माण हो रहा है । उसके कारण संपूर्ण देश में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के हिन्दुओं में उत्साह का संचार हुआ है । अमेरिका में हिन्दुओं की ओर से श्रीराममंदिर के उपलक्ष्य में फेरियां निकाली जा रही हैं । संपूर्ण भारत राममय बन गया है । जैसे-जैसे 22 जनवरी की तिथि निकट आ रही है, वैसे भारतीयों में रामभक्ति की ज्योति अधिक तेजस्वी होकर प्रज्वलित हो रही है । प्रसारमाध्यमों से प्रतिदिन अनेक घंटोंतक श्रीराममंदिर, श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन, रामायण आदि से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं । श्रीराम से संबंधित नए-नए भक्तिगीत प्रसारित हो रहे हैं तथा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके विषय में पोस्ट कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं । संपूर्ण देश में रामलहर उमड पडी हैै । श्रीराम के मंदिर में तथा उनके नाम में कितनी शक्ति आहे, इसकी पुनः एक बार हिन्दू अनुभूति कर रहे हैं । विगत 5 शताब्दियों में श्रीरामजन्मभूमि की मुक्ति हेतु लाखों रामभक्तों ने प्राणों का बलिदान दिया । विगत अनेक दशकों से इस विषय में न्यायालयों में अभियोग चलाए गए तथा अंततः जब हिन्दुओं ने न्यायालयीन लडाई में विजय प्राप्त की, तो अब श्रीराममंदिर का निर्माण हो रहा है । इतिहास में श्रीरामजन्मभूमि की लडाई अमर हो गई है । अब हिन्दुओं को यही रुकना नहीं है, अपितु मथुरा एवं काशी के मंदिरों की भूमि मुक्त कराने हेतु अपनी लडाई जारी रखकर ईश्वर की कृपा से वहां भी विजय प्राप्त करनी चाहिए । केवल मथुरा एवं काशी ही नहीं, अपितु देश के 3.5 लाख मंदिरों को गिराकर वहां मस्जिदें बनाई गई हैं, इसी प्रकार से मध्य प्रदेश के धार में स्थित भोजशाला के श्री सरस्वती मंदिर को भी हडप लिया गया है, उसके लिए भी लडाई लडनी चाहिए । गोवा जैसे राज्य में पोर्तुगीजों के कार्यकाल में मंदिरों को गिराकर चर्च बनाए गए हैं, उन मंदिरों को भी मुक्त करने की आवश्यकता है । ऐसे सभी देवताओं को स्थानों को पुनः जागृत करने होंगे । इसके लिए कानून को हाथ में लेने की आवश्यकता नहीं है , जबकि इसके लिए न्यायालयीन पद्धति से प्रयास किए जा सकते हैं । इसके लिए स्थानीय राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार को भी हिन्दुओं की सहायता करना अपेक्षित है । भाजपाशासित राज्यों में यह संभव हो सकता है; परंतु अन्य राज्यों में यह संभव होना आज के समय में तो कठिन है । श्रीराममंदिर के कारण इस लडाई को बल मिला है । भविष्य में यदि मथुरा एवं काशी में भी हिन्दुओं को विजय मिली, तो शेष मंदिरों को पुनः प्राप्त करने हेतु इन प्रयासों को अधिक बल मिल सकता है ।
मंदिर धर्मशिक्षा के केंद्र बनें !
हिन्दुओं के मंदिर चैतन्य के स्रोत हैं । आध्यात्मिकदृष्टि से उनका जो महत्त्व है, उसे साधक, संत एवं भक्त ही समझ सकते हैं । इसी कारण ऐसे चैतन्य के स्रोतों का विरोध करनेवाले बुऱी सोचवाले लोगों के द्वारा इन मंदिरों को नष्ट किया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । हिन्दुओं के मंदिरों के माध्यम से समाज में भाव-भक्ति, धर्माचरण, साधना, त्याग, मनःशांति आदि बातें साध्य की जाती हैं । मंदिरों का यह महत्त्व हिन्दुओं को ज्ञात है । देश के प्रत्येक गांव में एक ही नहीं, अपितु अनेक मंदिर होते हैं । ऐसे मंदिरों का अब हिन्दुओं की धर्मशिक्षा के केंद्र बन जाना आवश्यक हुआ है । श्रीराममंदिर के उपलक्ष्य में हिन्दुओं में आध्यात्मिकदृष्टि से एक प्रकार की जागृति आई है । इस जागृति को आगे बढाने की आवश्यकता है । उसके लिए प्रत्येक मंदिर में हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देकर उन्हें प्रत्यक्ष साधना एवं धर्माचरण के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । इसी से हिन्दुओं को, समाज को तथा देश को मंदिरों का लाभ मिलनेवाला है, यह भी उन्हें बताया जाना चाहिए । विश्व हिन्दू परिषद ने श्रीराममंदिर के उद्घाटन के दिन देश के लगभग 5 लाख मंदिरों में पूजा-अर्चना, आरती आदि कार्यक्रमों का आयोजन करने का आवाहन किया है । उससे पूर्व अर्थात 14 जनवरी से 22 जनवरी की अवधि में मंदिरों की स्वच्छता का आवाहन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है । इसका क्या अर्थ है ?, तो इन मंदिरों से हिन्दुओं को संगठित बनाना संभव हो रहा है । उसके लिए अलग से जागृति एवं उद्बोधन की आवश्यकता नहीं लगती । अभीतक तो हिन्दुओं में मंदिरों के प्रति श्रद्धा एवं भाव टिका हुआ है । इसी को आगे बढाने हेतु हिन्दुओं को प्रतिदिन मंदिरों के साथ जोडकर रखने की आवश्यकता है ।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने के कारण प्रधानमंत्री मोदी अथवा कोई भी सरकार हिन्दुओं को सीधे धर्मशिक्षा देने की व्यवस्था नहीं बना सकती; परंतु अब हिन्दुओं के संगठनों को उसके लिए प्रयास करने आवश्यक बन गए हैं । धर्मशिक्षा के कारण जन्महिन्दुओं के द्वारा हिन्दुओं के देवताओं का होनेवाला अनादर रुक जाएगा । अन्य धर्मियों के द्वारा हिन्दुओं का किया जानेवाला बुद्धिभ्रम रुककर धर्मांतरण पर भी बडे स्तर पर अंकुश लगेगा । लव जिहाद की शिकार होनेवाली हिन्दू लडकियों की रक्षा होगी । हिन्दुओं में धर्म के प्रति अधिक प्रेम एवं जागृति आए,गी तथा उन्हें स्वयं को हिन्दू कहलाने में गौरव प्रतीत होगा !
मंदिर पर्यटन के केंद्र न बनें !
आज के समय में मंदिरों का विकास किया जा रहा है अर्थात वहां अधिकाधिक सुविधाएं बनाई जा रही हैं । वहां पहुंचने हेतु विभिन्न माध्यम बनाए जा रहे हैं । यह तो आवश्यक ही हैं; परंतु एक श्रद्धालु, साधक एवं भक्त की दृष्टि से उसका उपयोग कर लेने की आवश्यकता है । वास्तव में ऐसा कितनी मात्रा में होता है, इस पर चिंतन किया जाना चाहिए । आज मंदिरों की ओर एक पर्यटन के केंद्र के रूप में देखा जा रहा है । कुछ चुनिंदा मंदिर हैं, जो उनका मूल स्वरूप टिकाए हुए हैं तथा श्रद्धालु उनकी ओर उसी दृष्टि से देख रहे हैं । मंदिर पर्यटन के केंद्र कदापि नहीं बन सकते । वे तो चैतन्य के केंद्र हैं । इस चैतन्य को टिकाए रखना श्रद्धालुओं का केवल कर्तव्य ही नहीं है, अपितु वह साधना है । यह चैतन्य यदि नष्ट हो जाता है, तो उन मंदिरों का कोई महत्त्व नहीं रहेगा; क्योंकि उनमें भगवान ही नहीं होंगे । अनेक उन्नतों एवं संतों के यह बात ध्यान में आ रही है कि मंदिरों में विद्यमान चैतन्य नष्ट होकर वहां का देवत्व निकल गया है । हिन्दुओं के लिए यह बडा समष्टि पाप है । कुछ संत ऐसे मंदिरों में जाकर वहां की शुद्धि करते रहते हैं; परंतु जब इस चैतन्य को नष्ट करने के कारणों पर ही रोक लगाई गई, तो वह अधिक महत्त्वपूर्ण होगा । मंदिरों का विकास करते समय सरकार को इसकी ओर इस दृष्टि से देखना चाहिए ।
मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करें !
श्रीराममंदिर का निर्माण श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से किया जा रहा है । न्यायालय के आदेश से इस ट्रस्ट का गठन हुआ है । सरकार का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है; परंतु आज के समय में देश के लाखों मंदिर राज्य सरकारों के नियंत्रण में हैं । इन मंदिरों में आनेवाला अरबों रुपए का अर्पण सरकार के कोष में जा रहा है । इनमें से थोडासा ही धन प्रत्यक्ष मंदिरों के कार्य के लिए उपयोग में लाया जा रहा है, जबकि अन्य सभी पैसे सरकारी परियोजनाओं के लिए उपयोग किए जा रहे हैं; साथ ही मंदिर समितियां भी इन पैसों का उपयोग हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देने हेतु अथवा धर्मकार्य हतेु उपयोग करती हुई दिखाई नहीं देती । जैसे घर का कर्ताधर्ता बडा भाई छोटे भाईयों का भरणपोषण करता है, वैसे ही अधिक आयवाले मंदिरों को देश के जिन छोटे मंदिरों की आय अल्प है अथवा जिनकी स्थिति जर्जर है; उनके अभिभावक बनकर वहां की व्यवस्था को सुचारू बनाने की आवश्यकता है; परंतु वैसे होता हुआ दिखाई नहीं देता । इसका अर्थ यही है कि हिन्दुओं द्वारा अर्पित पैसों का उपयोग धर्म के लिए नहीं होता । यह पैसा चिकित्सालयों के निर्माण में, बाढपीडितों की सहायता में, विद्यालयों हेतु तथा रोगियों की सहायता हेतु लगाया जाता है । धर्मधन का उपयोग सामाजिक कार्याें के लिए किया जाना अपेक्षित नहीं है । सामाजिक कार्य के लिए अन्य आर्थिक स्रोत उपलब्ध हैं; परंतु धर्मकार्य के लिए इस प्रकार से शाश्वत स्रोत नहीं हैं । अतः मंदिरों के धन का उपयोग धर्मकार्य हेतु ही किया जाना चाहिए । कुछ मंदिरों के पैसों का उपयोग अन्य धर्मियों के लिए किए जाने के उदाहरण भी सामने आए थे । हिन्दुओं के लिए यह लज्जाप्रद है । अतः मंदिरों को सरकारों के चंगुल से मुक्त कर उनका नियंत्रण सच्चे भक्तों एवं साधना करनेवाले श्रद्धालुओं के हाथ में दिया जाना चाहिए । सरकारी अधिकारियों के स्थान पर ऐसे श्रद्धालु ही वास्तव में मंदिरों को भावभक्ति से नियंत्रित कर पाएंगे । इसके लिए अब हिन्दुओं को प्रयास करना आवश्यक है । जिन मंदिरों का प्रबंधन भावभक्ति से नहीं होता, जिन मंदिरों के पैसों एवं आभूषणों की लूट होती है तथा जिन मंदिरों के धन का उपयोग धर्मकार्य हेतु नहीं होता, क्या उन मंदिरों में भगवान का वास हो सकता है ? इसके लिए अब हिन्दुओं को लडाई लडने की आवश्यकता है । इसके लिए अब संपूर्ण देश में जागृति लाकर बडा आंदोलन खडा करना पडेगा । मंदिरों के धन का उपयोग धर्मशिक्षा के लिए होने हेतु प्रयास किए ज सकता हैं । जिन बडे मंदिरों की करोडों रुपए की आय है, उनके द्वारा विभिन्न स्थानों पर गुरुकुलों का निर्माण होने की आवश्यकता है । इन पैसों से वातावरण की शुद्धि हेतु निरंतर यज्ञ-याग करने आवश्यक हैं । कोरोनाकाल में जिस प्रकार निर्जंतुकीकरण किया जा रहा था, उसी प्रकार से यज्ञ-याग भी आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करते हैं ।
रामराज्य के समान आदर्श हिन्दू राष्ट्र चाहिए !
भले ही श्रीराममंदिर का निर्माण हुआ हो; परंतु वह अंतिम साध्य न बने । इस देश में 500 वर्ष उपरांत श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा हो रही हो, तो अब देश में रामराज्य की भी स्थापना होना आवश्यक है । इसका अर्थ क्या है, तो प्रभु श्रीराम ने इस देश में जिस प्रकार से अपना राज्य चलाया था, उसके अनुसार इस देश को चलाने की आवश्यकता है । क्या आज के समय में ऐसा है ?, तो नहीं ! इसके लिए पहले भारत को धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए । यह देश हिन्दुओं का है । मुसलमानों एवं ईसाईयों ने इस देश पर लगभग 1 हजार वर्षतक राज्य किया है । उनकी गुलामी में भारत अपनी मूल संस्कृति भूल चुका है । इसका क्या अर्थ है ?, तो साधना करने की संस्कृति भूल चुका है । भारत इस जगत् का विश्वगुरु था तथा वह आध्यात्मिक स्तर पर था । आज देश में यह स्थिति है कि क्या भारत जगत् का विश्वगुरु बन सकता है ?, तो इसका उत्तर है नहीं ! इसलिए पहले इस देश में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर हिन्दू धर्म के अनुसार राज्य चलाया जाना चाहिए । इससे देश का प्रत्येक व्यक्ति हिन्दू धर्म का पालन करने लगेगा । यहां हिन्दू धर्म के अनुसार निर्णय लिए जाएंगे तथा कार्य किए जाएंगे । उसी दृष्टि से विकास किया जाएगा । जब ऐसी स्थित देश में आएगी, तब ‘अब रामराज्य आया है’, ऐसा कहा जा सकेगा । ऐसे शासनकर्ता पितृतंत्र के अनुसार कार्य करेंगे । ऐसे देश की प्रजा राजा की भांति होगी । इस राज्य में कोई दुखी नहीं होगा तथा किसी को भी कोई समस्या नहीं होगी, अपितु उनकी समस्याओं का तत्परता से समाधान किया जाएगा । अन्य देशों को भारत के प्रति शत्रुता नहीं, अपितु सम्मान होगा । वे भारत का आदर्श सामने रखकर अपना राज्य चलाएंगे ।