परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों के एवं हाथों की उंगलियों के नखों पर खडी रेखाएं एवं नख के मूल से ऊपर जानेवाली गुलाबी रंग की अर्धवर्तुलाकार २ – ३ वलयों का स्पर्श खुरदरा लगना एवं इन रेखाओं का उठावदारपना बढने के पीछे अध्यात्मशास्त्र !
संतों के केवल अस्तित्व से ही वातावरण की शुद्धि होती है । संतों के सान्निध्य में जो वस्तुएं हैं, उन पर भी उनके चैतन्य का सकारात्मक परिणाम दिखाई देता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समष्टि गुरु एवं जगद्गुरु होने से उनका अवतारी कार्य संपूर्ण ब्रह्मांड में चल रहा है । यह कार्य पूर्णत्व तक ले जाने के लिए उनकी देह में भी पंचतत्त्व कार्यरत होते हैं । इसलिए अवतारी कार्य के शुरू रहते उनकी सूक्ष्म देह से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों का परिणाम उनकी देह पर भी दिखाई देता है । यह कोई चमत्कार नहीं, अपितु साधना के कारण हुआ परिणाम है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विद्यमान चैतन्य का उनके हाथ एवं चरणों के नखों पर दिखाई दिया दृश्य परिणाम और उसकी कारणमीमांसा इस लेख द्वारा देखेंगे ।
‘जून २०२१ से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के हाथों के एवं चरणों की उंगलियों के नखों पर खडी रेखाएं (छायाचित्र क्र. १ देखें) एवं नख के मूूल से ऊपर जानेवाले गुलाबी रंग की अर्धवर्तुलाकार २ – ३ वलय दिखाई दे रही थीं ।। अगस्त २०२१ से इन रेखाओं का स्पर्श खुरदरा लगने लगा । ६.१०.२०२१ को इन रेखाओं का उठावदारपना बढना ध्यान में आया । (छायाचित्र क्र. २ देखें) इसके पीछे का अध्यात्मशास्त्र आगे दिए अनुसार है ।
नखों पर खडी रेखाओं से संपूर्ण वातावरण में भारी मात्रा में मारक शक्ति एवं चैतन्य की तरंगों का प्रक्षेपण होता है । नखों पर अर्धवर्तुलाकार वलयों में तारक शक्ति एवं चैतन्य कार्यरत होता है । इसलिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी पर पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियां द्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक काली शक्ति की तरंगें देह में प्रविष्ट होने से रोक ली जाती हैं । नखों पर खडी रेखाएं काली शक्तियों के विघटन करने के एवं अर्धवर्तुलाकार रेखाएं कष्टदायक तरंगों से रक्षा करने का कार्य करती हैं ।
१. नखों पर रेखाओं में पंचतत्त्वों के स्तर पर चैतन्य कार्यरत होने पर रेखाओं में होेनेवाले परिवर्तन
१.अ. पंचतत्त्व का नखों की रेखाओं पर होनेवाला परिणाम
१.अ.१. पृथ्वी – सुगंध लगना
१.अ.२. आप – रेखाओं से शक्ति एवं चैतन्य सहजता से प्रवाहित होना
१.अ.३. तेज – चमक बढना
१.अ.४. वायु – स्पर्श कोमल (मुलायम) लगना
१.अ.५. आकाश – निर्गुण स्तर पर चैतन्य प्रक्षेपित होना
सर्वसामान्य व्यक्ति एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नखों में कार्यरत शक्ति अनुसार उनके नखों पर रेखाओं का स्पर्श खुरदरा लगाना एवं रेखाएं उठावदार दिखाई देना ।
सर्वसामान्य व्यक्ति के नखों में जब रज-तम प्रधान शक्ति की तरंगें कार्यरत होती हैं, तब नखों का स्पर्श खुरदरा लगता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नखों में कार्यरत निर्गुण-सगुण स्तर पर शक्ति की तरंगें जब सगुण-निर्गुण स्तर पर प्रक्षेपित होने लगती हैं, तब उनका घनीकरण होने लगता है । इसलिए नखों पर रेखाओं का स्पर्श खुरदरा लगता है और वह उठावदार दिखाई देने लगती है ।
– कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत) (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.११.२०२१)
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले अवयव नाक, कान, आंख, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रियां हैं । ये पंचज्ञानेंद्रियां, मन एवं बुद्धि के परे अर्थात सूक्ष्म । साधना में प्रगति करने पर कुछ व्यक्तियों को ये सूक्ष्म संवेदनाएं ध्यान में आती हैं । इस सूक्ष्म के ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
वाईट शक्ती : वातावरण में अच्छी एवं अनिष्ट शक्तियां कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां अच्छे कार्य करने के लिए मनुष्य की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां उन्हें कष्ट देती हैं । पूर्वकाल में जैसे ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों के विघ्न लाने की अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्ति, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच एवं उसीप्रकार करनी, भानामती का प्रतिबंध कऱने के लिए मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्टों से निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादि धर्मग्रंथों में बताए हैं । |