संविधान के द्वारा भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना आवश्यक ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
विगत ७५ वर्षों में हिन्दुओं को धर्मशिक्षा से वंचित रखा गया । केवल संत, महात्माओं की कृपा से भारत में आज भी धर्म टिका हुआ है । ‘सेक्युलारिजम’ (धर्मनिरपेक्षता) शब्द के कारण हिन्दुओं को धर्मशिक्षा प्रदान करने का मार्ग बंद किया गया है । धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था अर्थात अधर्मी व्यवस्था है । वर्ष १९१९ में ‘प्लेसेस ऑफ वर्शीप एक्ट’ द्वारा (‘धार्मिक स्थल कानून १९९१’ द्वारा) अयोध्या का श्रीराम मंदिर छोडकर अन्य सभी मंदिर वर्ष १९४७ से जिस स्थिति में हैं, उसी स्थिति में रखने के लिए मान्यता दी गई । इसलिए काशी के विश्वनाथ मंदिर के साथ ही सहस्रों मंदिर मुक्त करने में अडचनें निर्माण हुई है ।
इसलिए भारत को पुनः हिन्दू राष्ट्र करने के लिए आंदोलन, संसद एवं न्यायव्यवस्था इन लोकतांत्रिक मार्गों द्वारा आवाज उठाना आवश्यक है । चिकित्सकीय शिक्षा होते हुए भी जबतक प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं होता, तबतक ‘डॉक्टर’ के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं होती । ठीक उसी प्रकार हिन्दुबहुल व्यवस्था रहते हुए भी संविधान द्वारा भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करना आवश्यक है ।
मान्यवरों के करकमलों से सनातन संस्था के ग्रंथ का लोकार्पण !
इस अवसर पर व्यासपीठ पर उपस्थित भागवताचार्य (अधिवक्ता) श्री. राजीवकृष्णजी महाराज झा, पू. भागिरथी महाराज, पूज्य संत श्रीराम ज्ञानीदास महात्यागीजी, अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैनजी, महंत दीपक गोस्वामी के करकमलों से सनातन की ग्रंथशृंखला के अंतर्गत ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की अनमोल सीख’ ‘प्रत्यक्षरूप से साधना सिखाने की पद्ध्तियां’ इस हिन्दी एवं मराठी भाषा के ग्रंथ का लोकार्पण किया गया ।