सात्त्विक उदबत्ती में बांस की लकडी का उपयोग करने पर भी उससे कोई हानि नहीं; अपितु लाभ ही होना एवं वह उदबत्ती धर्मशास्त्र के विरुद्ध भी न होना

Article also available in :

हिन्दू पूजा एवं आरती करने के लिए घर, दुकान एवं मंदिरों में उदबत्ती का उपयोग बहुत होता है । उदबत्ती में बांस की लकडी का उपयोग किया जाता है । आजकल जालस्थल एवं विविध प्रसारमाध्यम ऐसे आशय के समाचार दे रहे हैं कि उदबत्ती में उपयोग की जानेवाली बांस की लकडी से हानि होती है । प्रस्तुत लेख में वैज्ञानिक उपकरण का उपयोग कर किए गए शोधन का निष्कर्ष, इन सूत्रों के विषय में सूक्ष्म से मिला ज्ञान, इसके साथ ही सूक्ष्म-चित्र के आधार कर इसका खंडन किया गया है ।

उदबत्ती से प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य से आवरण दूर होना

 

 

१. हाट (बाजार) की उदबत्ती, सात्त्विक उदबत्ती और धूप की आध्यात्मिक विशेषताओं का तुलनात्मक अभ्यास करने के लिए ‘यू.टी.एस्. (युनिवर्सल थर्मो स्कैनर)’ इस उपकरण द्वारा ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण !

‘हाट की (बाजार की) सामान्य उदबत्ती, सात्त्विक उदबत्ती एवं धूप की आध्यात्मिक विशेषताएं वैज्ञानिक उपकरण के माध्यम से अध्ययन करने हेतु ‘महर्षि अध्यात्म विश्ववविद्यालय’द्वारा ‘यू.टी.एस्. (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर)’ इस उपकरण द्वारा एक परीक्षण किया । यह परीक्षण रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में ३.११.२०१७ एवं ६.१२.२०१७ को किया गया । इस परीक्षण में हाट (बाजार) की सामान्य उदबत्ती, सात्त्विक उदबत्ती एवं धूपब‌त्ती (ये जलाने से पूर्व एवं जलाने के उपरांत ‘यू.टी.एस्.’ उपकरण द्वारा उनकी ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावायोलेट’ इन दोनों नकारात्मक ऊर्जा एवं सकारात्मक ऊर्जाओं का निरीक्षण किया गया । इन सभी निरीक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।

१ अ. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन

१ अ १. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन – हाट की सामान्य उदबत्ती में नकारात्मक ऊर्जा मिलना एवं उदबत्ती जलाने के पश्चात वह ऊर्जा न्यून होना; परंतु सात्त्विक उदबत्ती एवं धूपबत्ती में आरंभ में, वैसे ही जलाने के पश्चात भी नकारात्मक ऊर्जा न मिलना

हाट की सामान्य उदबत्ती जलाने से पूर्व उसमें ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावॉयलेट’ ये दोनों नकारात्मक ऊर्जाएं पाई गईं । उदबत्ती जलानेपर वे नकारात्मक ऊर्जाएं अनुक्रम से नष्ट एवं न्यून हो गईं । सात्त्विक उदबत्ती एवं धूप में दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी एवं वे दोनों घटक जलाने के पश्चात भी उनमें नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

१ अ २. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन – हाट की उदबत्ती में सकारात्मक ऊर्जा न पाई जाना; परंतु सात्त्विक उदबत्ती एवं धूप जलाने से पहले एवं बाद में भी उन दोनों में सकारात्मक ऊर्जा पाई जाना

ऐसा नहीं है कि सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तुओं में सकारात्मक ऊर्जा होती ही है । हाट की उदबत्तियों में आरंभ एवं उदबत्ती जलाने पर भी सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिली । सात्त्विक उदबत्ती, इसके साथ ही धूपब‌त्ती जलाने से पूर्व किए हुए निरीक्षण में उन दोनों घटकों के लिए ‘यू.टी.एस्.’ स्कैनर की भुजाएं १७० अंश के कोण में खुलीं । इसका अर्थ दोनों घटकों में सकारात्मक ऊर्जा थी; परंतु उस ऊर्जा का प्रभामंडल इतना नहीं था कि वह नापा जा सके । (स्कैनर की भुजाएं १८० अंश के कोण में खुलने पर ही उसका प्रभामंडल नाप सकते हैं ।) उदबत्ती एवं धूपबत्ती जलाने के पश्चात किए गए निरीक्षण में मात्र सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल नापा जा सका एवं वह दोनों घटकों से अनुक्रम ६५ सें.मी. एवं ७१ सें.मी. दूरतक थे ।

१ आ. निष्कर्ष

सात्त्विक उदबत्ती में बांस की काडी होते हुए भी उसे जलाने के पश्चात उसमें जलाई गई धूपबत्ती समान ही सकारात्मक ऊर्जा पाई गई, लगभग उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा सात्त्विक उदबत्ती में मिली । हाट की सर्वसाधारण उदबत्ती में मात्र सकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई । उसमें नकारात्मक ऊर्जा पाई गई ।

१ इ. निष्कर्ष के पीछे अध्यात्मशास्त्र

सात्त्विक उदबत्ती में जैसे सकारात्मक ऊर्जा पाई गई, वैसे हाट की उदबत्ती में न पाई जाने के कारण आगे दी गई सारणी से ध्यान में आएंगे ।

हाट (बाजार) की उद्ब‌त्ती सा‌‌त्त्विक उदबत्ती
१. उद्देश्य आर्थिक लाभ आध्यात्मिक लाभ
२. घटक एवं उनका परिणाम रासायनिक घटकों का उपयोग अधिक होने से ईश्वरीय चैतन्य मिलने की मात्रा अत्यंत अल्प होना आध्यात्मिक घटकों का (उदा. गोमूत्र, विभूती) उपयोग अधिक होने से और उसकी सुगंध किसी न किसी देवता का तत्त्व आकर्षित करनेवाली होने से ईश्वरीय चैतन्य अधिक मिलता है ।
३. किसे मह‌त्त्व है ? आकर्षकता को सात्त्विकता को
४. कुल परिणाम रज-तमगुणों की निर्मिति सात्त्विकता की निर्मिति
५. उपयुक्तता अनेक बार मिलावटी होने से आध्यात्मिक उपायों के लिए निरुपयोगी शुद्ध स्वरूप की होने से आध्यात्मिक उपायों के लिए उपयोगी
६. लाभ का विनियोग अधिकतर भोगवाद के लिए राष्ट्र एवं धर्म के कार्य के लिए

उदबत्ती का उपयोग करना आध्यात्मिकदृष्टि से हानिकारक नहीं; परंतु उसके लिए सात्त्विक होना आवश्यक है । सात्त्विक उदबत्ती आध्यात्मिकदृष्टि से धूपबत्ती समान ही लाभ देती है, यह इस परीक्षण से ध्यान में आता है ।’

– आधुनिक वैद्या (डॉ.) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्व‍वविद्यालय, गोवा. (७.१२.२०१७)

 

२. उदबत्ती का उपयोग हानिकारक होने का वृ‌त्त के सूत्रों का आध्यात्मिक स्तर पर किया खंडन

२ अ. सूत्र १

उदबत्ती में बांस की काडी का उपयोग करना, यह धर्मशास्त्र के विरुद्ध है; कारण धर्मशास्त्र द्वारा बांस जलाना निषिद्ध माना जाता है । बांस जलाने से पितृदोष लगता है ।

२ अ १. खंडन – धर्मशास्त्र द्वारा विविध धार्मिक कर्मों में बांस का उपयोग करने के लिए बताया जाना

‘हिन्दू धर्मशास्त्र में बताए अनुसार बांस का उपयोग आगे दिए धार्मिक कर्मों में किया जाता है ।

२ अ १ अ. पार्थिव ले जाने के लिए तिरडी बनाते समय बांस का उपयोग किया जाना

पार्थिव ले जाने के लिए तिरडी का उपयोग किया जाता है । यह तिरडी बनाने के लिए बांस का उपयोग करते हैं । बांस की रिक्ती में मृत व्यक्ति की वायुरूप में विद्यमान लिंगदेह सहजता से प्रवेश कर सकती है और पार्थिव की धनंजय वायु भी बांस की रिक्ती में भर जाती है । इससे प्रेत से संबंधित स्पंदन तिरडी में कार्यरत होकर उस पर किए संस्कार मृत व्यक्ति की लिंगदेह तक पहुंचते हैं ।

२ अ १ आ. गुढीपाडवा पर बांस की गुढी खडी करने का शास्त्र

गुढीपाडवा पर घर के सामने खडी की जानेवाली गुढी भी बांस से बनाई जाती है । बांस के घनभागकडे /घनभाग की ओर तेजरूपी सगुण चैतन्यतरंगें एवं बांस में कार्यरत रिक्ती में वायुरूपी निर्गुण चैतन्यतरंगें एवं निर्गुणतत्त्व प्रबल ब्रह्मतत्त्व की तरंगें शीघ्रता से आकृष्ट होती हैं ।

२ अ १ इ. भागवतकथा के समय पितर वह कथा सुन सकें, इसलिए कार्यक्रमस्थल पर बांस गाढा जाना

अनेक स्थानों पर विशेषत: उत्तर भारत में बडे मैदान में श्रीमद्भागवत की कथाएं होती हैं । उसे सुनने के लिए अनेक लोग एकत्र होते हैं । इन कथाओं का भावपूर्ण श्रवण करने से जीव के समस्त पाप नष्ट होते हैं । इससे कथा सुननेवाले व्यक्ति के अतृप्त पितरों को भी उसका लाभ होने हेतु कथा के स्थान पर व्यासपीठ के निकट भूमि पर एक बांस गाढा जाता है । इस बांस पर प्रत्येक व्यक्ति एक डोरा बांधता है । भाविकों की श्रद्धा है कि इससे व्यक्ति के पितरों को बांस की रिक्ती में आकर बैठना और पूरी कथा सुनना सुलभ होता है ।

इसप्रकार बांस का संबंध (पितर एवं मृतात्मा) लिंगदेह एवं देवता, इन दोनों से होने से उसका उपयोग शुभकार्य में एवं अंत्यसंस्कार, इन दोनों में होता है । इसलिए बांस का उपयोग करना निषिद्ध नहीं । इसके साथ ही बांस जलाने से पितृदोष नहीं लगता ।’

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्मातून मिळालेले ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (४.१२.२०१७, रात्री ११)
२ अ १ ई. बांस से निर्माण की हुई वास्तु में एवं पात्र में स्पंदन एवं शक्ति टिकी रहना

‘बांस में विद्यमान स्थिति एवं वायु, इन तत्त्वों के कारण बांस का मंडप बनाना एवं वंशपात्र (सूप) जैसा घटकों की निर्मिति के लिए उपयोग किया जाता है । बांस से निर्माण की हुई वास्तु में धार्मिक कृति करने से उस वास्तु का चैतन्य टिका रहता है, तो बांस ने निर्माण किए हुए पात्र में वस्तु रखने पर उसके स्पंदन एवं शक्ति बाह्य वायुमंडल से प्रक्षेपित न होकर उस वस्तु में टिकी रहती है । – श्री. निषाद देशमुख (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), (२.१२.२०१७, रात्रि ९.०९)

२ आ. सूत्र २ – उदबत्ती में बांस की काडी की उपयोग अनुचित है ।

२ आ १. खंडन – उदबत्ती में विद्यमान बांस की काडी का महत्त्व

२ आ १ अ. बांस प्राकृतिक वनस्पति होने से उससे बनाई गई उदबत्ती सात्त्विक होना

‘बांस एक प्राकृतिक वनस्पति है । मानवनिर्मित वस्तुओं की तुलना में प्रकृति द्वारा निर्मिति पदार्थों में अधिक सात्त्विकता होती है, उदा. शंख, रुद्राक्ष । इससे बांस से बनाई हुई उदबत्तियां सात्त्विक होती हैं ।

२ आ १ आ. बांस में रिक्ती होने से वायु एवं आकाश तत्त्व काफी मात्रा में कार्यरत होने से बांस की ओर ब्रह्मतत्त्व आकृष्ट होना

जिसप्रकार दर्भ में सात्त्विकता एवं चैतन्य की मात्रा अधिक होती है और दुर्वा में गणेशतत्त्व प्रबल होता है, उसीप्रकार बांस में रिक्ती होने से उसमें वायु एवं आकाश तत्त्व भी भारी मात्रा में कार्यरत होने से बांस की ओर ब्रह्मतत्त्व आकृष्ट होता है ।

२ इ. सूत्र ३

उदबत्ती की काडी में विद्यमान बांस के जलने पर उससे निर्माण होनेवाला धुआं विषैला होने से वह स्वास्थ्य के लिए अपायकारक है । इसकारण कर्करोग एवं हृदयविकार, इसके साथ ही मस्तिष्क से संबंधित व्याधियां होती हैं । बांस की काडीयुक्त उदबत्ती के धुएं से कक्ष का वातावरण दूषित होता है ।
२ इ १. सात्त्विक उदबत्ती जलाने पर होनेवाली सूक्ष्म प्रक्रिया

सात्त्विक उदबत्ती की काडी पर लगाया गया सुगंधित लेप, पृथ्वीतत्त्व से संबंधित होता है, तो उस उदबत्ती में विद्यमान काडी वायु एवं आकाश तत्त्वों से संबंधित होती है । सात्त्विक उदबत्ती जलाने से पृथ्वीतत्त्वमय सुगंधीलेप का अग्नि का स्पर्श होकर हम उससे सगुण स्तर की अच्छी ऊर्जा गंधमय तरंगों के रूप में कार्यरत होती है । सात्त्विक उदबत्ती में बांस की काडी को अग्नि तत्त्व का स्पर्श होने से काडी की वायु एवं आकाश तत्त्वों से अच्छी शक्ति धुएं के रूप में निर्माण होती है ।

२ इ २. सात्त्विक उदबत्ती जलाने से होनेवाला परिणाम

सात्त्विक उदबत्ती जलाने पर उससे प्रक्षेपित होनेवाला धुआं एवं गंधमय तरंगें वायु के साथ संपूर्ण कक्ष में अथवा वास्तु में फैलती हैं । उनका कार्य आगे दिए समान है ।

२ इ २ अ. संपर्क में आनेवाले व्यक्ति

सात्त्विक उदबत्ती से प्रक्षेपित होनेवाली सात्त्विक ऊर्जा के कारण व्यक्ति के सर्व ओर निर्माण हुए कष्टदायक शक्ति का आवरण नष्ट होता है । सात्त्विक उदबत्ती का धुआं पवित्र एवं सात्त्विक होने से व्यक्ति की देह के कष्टदायक शक्ति के स्थान भी नष्ट होकर व्यक्ति की, अर्थात पिंड की आध्यात्मिक शुद्धि होकर उसके सर्व ओर चैतन्य का संरक्षककवच निर्माण होता है । इसलिए जलती हुई सात्त्विक उदबत्ती की धुआं किसी भी जीव के लिए अपायकारक नहीं, अपितु आध्यात्मिकदृष्टि से लाभदायक है ।

२ इ २ आ. वातावरण
२ इ २ आ १. सात्त्विक उदबत्ती के बांस की काडी जलने से निर्माण होनेवाले धुएं से वातावरण की शुद्धि होना

बांस की काडी के जलने से उससे मारक शक्ति की तरंगों का प्रक्षेपण होेता है । इसलिए कक्ष अथवा वास्तु के वातावरण में कार्यरत रज-तमप्रधान तरंगों का उच्चाटन होकर वातावरण की शुद्धि होती है ।

२ इ २ आ २. सात्त्विक उदबत्ती की गंधमय तरंगों के कारण वातावरण की सात्त्विकता बढना

सात्त्विक उदबत्ती के सुगंधमय द्रव्य के लेप से पवित्र एवं सात्त्विक सुगंधमय गंधतरंगों के साथ वातावरण में प्रक्षेपण होकर वातावरण की सात्त्विकता बढती है । इस प्रकार बांस की काडी युक्त सात्त्विक उदबत्ती के धुएं से कक्ष का वातावरण दूषित नहीं होता, अपितु पवित्र एवं सात्त्विक होता है ।’

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (४.१२.२०१७, रात्रि ११)
२ इ ३. धूप एवं उदबत्ती में भेद
धुप सात्त्विक उदब‌त्ती
१. प्रधान त्रिगुण ‘सत्त्व सत्त्व-रज
२. प्रधान पंचतत्त्व पृथ्वी-आप तेज-वायु
३. ईश्वरीय तत्त्व्
३ अ. आकर्षित करने की क्षमता (प्रतिशत) १५ १०
३ आ. प्रक्षेपित करने की क्षमता (प्रतिशत) १० ३०
४. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट न्यून करने की क्षमता (प्रतिशत) १० ३०
– श्री. निषाद देशमुख (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान),  (२.१२.२०१७, रात्रि ९.०९)

 

३. उपासनाकांडानुसार की जानेवाली पूजा में सात्त्विक उदबत्ती का उपयोग श्रेष्ठ, तो शास्त्रोक्त पूजा में धूप का प्रयोग अधिक श्रेष्ठ !

‘पूर्वकाल में जीवों की एवं वायुमंडल की सात्त्विकता अधिक मात्रा में थी । इसलिए धूप के उपचार से आवश्यक ईश्वरीय तत्त्व जीव को सहजता से ग्रहण होता था । कलियुग के अधिकांश जीवों को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होने से एवं उन पर आए कष्टदायक शक्ति के आवरण के कारण वे ईश्वरीय शक्ति ग्रहण नहीं कर पाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्टवाले जीवों के लिए शास्त्रोक्त पूजा करना भी संभव नहीं होता । इसलिए ऐसे जीवों को उपासनाकांड की पूजा से अधिक चैतन्य प्राप्त होने एवं उनका उनके अनिष्ट शक्तियों के कष्ट न्यून होने हेतु धूप की तुलना में सात्त्विक उदबत्ती का उपयोग अधिक श्रेष्ठ होता है । इसके विपरीत शास्त्रोक्त पूजा में धूप अर्पण करना अधिक श्रेष्ठ होता है ।’

– श्री. निषाद देशमुख (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२.१२.२०१७, रात्रि ९.०९)

धर्म के अभ्यासकों से विनती !

‘सनातन प्रभात’में प्रकाशित होनेवाले साधकों को मिलनेवाला नया ज्ञान योग्य है अथवा अयोग्य, इसके साथ ही साधकों को आनेवाली विशेष अनुभूतियां’, इनका अभ्यास करने के संदर्भ में सहायता करें ! : ‘अब तक के युगों में धर्मग्रंथों में जो उपलब्ध नहीं था, ऐसा नूतन ज्ञान ईश्वर की कृपा से सनातन के कुछ साधकों को मिल रहा है । वह ज्ञान नया होने से पुराने ग्रंथों का संदर्भ लेकर यह नहीं कह सकते कि वह ज्ञान ‘योग्य है अथवा अयोग्य ?’, इस संदर्भ में, साथ ही साधकों को आनेवाली विशेष अनुभूतियों के संदर्भ में (उदा. उच्च लोक, पंचमहाभूत का विषय की अनुभूतियों के संदर्भ में) धर्म के अभ्यासकों को हमारा मार्गदर्शन करने पर मानवजाति को नए योग्य ज्ञान का लाभ होगा । इतना ही नहीं, तो ‘अयोग्य क्या ?’, यह भी समझ में आएगा । इसके लिए हम धर्म के अभ्यासकों को इस संदर्भ में हमारा मार्गदर्शन करने की विनती करते हैं ।’

– संपादक, सनातन प्रभात

सूक्ष्म : प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाली पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे अर्थात ‘सूक्ष्म’. साधना में प्रगति किए हुए कुछ व्यक्तियों को ये ‘सूक्ष्म’ संवेदना समझ में आती हैं । ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।

Leave a Comment