गुरुदेव, आप करें कृपादृष्टि ।
आप बिन शून्य यह संपूर्ण सृष्टि ।।
मध्यप्रदेश के श्रीक्षेत्र उज्जैन के उत्तर में ५५ किलोमीटर पर स्थित मंदसौर जिले की मनासा तालुका ! ७ जुलाई को १९२० श्री. सखाराम एवं श्रीमती अन्नपूर्णाबाई कसरेकर दंपति को पुत्ररत्न प्राप्त हुआ । उसका नाम दिनकर रखा गया ।
बचपन से ही दिनकर अर्थात इंदौर के महान संत प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) ने अपनी शिष्यावस्था में उनके गुरु श्री अनंतानंद साईश की दिन-रात सेवा की । प.पू. बाबा को जैसे-तैसे केवल एक वर्ष दस माह ही अपने गुरु का सान्निध्य मिला । इस काल में गुरु ने उनकी शिष्य से लेकर गुरु पदतक प्रगति करवा ली । श्रीगुरु ने ही प.पू. बाबा का नामकरण भक्तराज किया । भजन, भ्रमण एवं भंडारा, इस त्रिसूत्र के अनुसार प.पू. बाबा ने जीवनभर भक्तों के उद्धार के लिए अपना जीवन व्यतीत किया ।
प.पू. भक्तराज महाराज सनातन के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु थे । उन्हीं के कृपाशीर्वाद से सनातन की स्थापना हुई । सनातन को प.पू. बाबा के उत्तराधिकारी प.पू. रामानंद महाराज का भी कृपाछत्र मिला । उनके आशीर्वाद से वर्ष १९९१ में स्थापित हुए सनातन के कार्य का विस्तार किसी विशाल वटवृक्ष समान हो गया है । सनातन परिवार प.पू. बाबा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ है !
यहां श्री अनंतानंद साईश एवं प.पू. बाबा की मूर्ति, उन दोनों की एवं प.पू. रामानंद महाराजजी की पादुकाएं रखी हैं । इसके साथ ही श्री अनंतानंद साईश द्वारा उपयोग की गई कुर्सी मध्यभाग में रखी है । इनके भावपूर्ण दर्शन लेकर अपना जीवन कृतार्थ करेंगे !
प.पू. भक्तराज महाराज की कांदळी (पुणे) के आश्रम में समाधि