आयुर्वेद की अनमोल देन अनेक रोगों पर उपयुक्त औषधि !

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भगवान ने सर्वप्रथम वेदों की निर्मिति की । तदुपरांत सृष्टि की निर्मिति की और फिर मानव की निर्मिति की । कालानुसार मानव को वेदों का ज्ञान भी ऋषि-मुनियों के माध्यम से ही मिला । वेदों का ही एक भाग आयुर्वेद है । भारत की बहुतांश वनस्पतियों में औषधीय गुणधर्म है । कुछ वनस्पतियों में इतनी सात्त्विकता है कि उन्हें देवत्व प्राप्त हो गया है । तुलसी जैसी वनस्पतियों में औषधीय गुणधर्म अधिक हैं । वनस्पतियों की जडें, तना, छाल, कोमल टहनियां, प‌त्ते, पुष्प, फल एवं बीज, इसप्रकार प्रत्येक अंग ही मनुष्य के लिए उपयुक्त होता है !

प्राचीन भारतीय समृद्ध औषधि विद्या अंग्रेजों ने दबा दी और स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात भी तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने उसे जानबूझकर ऊपर उठने नहीं दिया । पाश्चात्त्यों के व्यापारी प्रभाव से सेब ‘प्रत्येक दिन खाने का फल’ हो गया । वास्तव में उसका मानव के लिए ‌विशेष उपयोग नहीं है, अपितु आंवले समान बहुगुणी फल अत्यंत लाभदायक है । यह अब सामने आ रहा है जबकि आयुर्वेद इसे प्राचीन काल से ही जानता है ।

अब जग में आयुर्वेद को भारी मात्रा में मान्यता मिल रही है, इसलिए अब भारतीयों को भी अपनी आंखें खोलकर देखने का समय आ गया है । उसके लिए अनेक रोगों पर उपयुक्त कुछ वनस्पतियां अथवा फलों का उपयोग यहां देखेंगे ।

 

१. बहुगुणी महाऔषधि – अदरक !

अदरक / सोंठ

अदरक का पौधा एक हाथ की ऊंचाई तक बढता है । उसकी जडों को अदरक कहते हैं । अदरक को सुखाकर सोंठ बनाई जाती है । सोंठ को महौषधि (बडी औषधि) एवं विश्वभेषज (सर्व विकारों पर उपयोगी) भी कहते हैं ।

गुण

अदरक पाचक, सारक, अग्निदीपक आमपाचक, वातशामक, वातानुलोमक, शूलनाशक, रुचिप्रद एवं कंठ के लिए हितकारी है । सोंठ, लघु, स्निग्ध तीखा परंतु मधुर एवं उष्णवीर्य है ।

उपयोग

सूजन, गले के रोग, खांसी, दमा, पेट फूलना, उलटी एवं पेट में वेदना

१. खांसी, दमा, भूख न लगना एवं अग्निमांद्य (मंद जठराग्नि) पर उपयोगी अदरकपाक !
अदरकपाक

अदरक के रस में चार गुना पानी एवं शक्कर डालकर पाक होने तक उबालें । तदुपरांत उसमें केशर, इलायची, जायफल (जायपत्री) एवं लवंग का चूर्ण डालकर उसे भरकर रखें ।

२. अजीर्ण एवं भूख लगने के लिए

अदरक के रस में नीबू का रस एवं सैंधव नमक डालकर दें ।

३. अजीर्ण

सोंठ एवं जवाखार (यवक्षार/potassium carbonate)) का चूर्ण गरम पानी के साथ दें ।

४. उलटी

२ चम्मच अदरक एवं २ चम्मच प्याज का रस एकत्र कर दें ।

५. आमांश (आंव)

सोंठ, सौंफ, खसखस एवं छुहारे का चूर्ण गरम पानी के साथ दें ।

६. कृमि एवं अग्निमांद्य (मंद जठराग्नि)

सोंठ एवं वायविडंग (विडंग) का चूर्ण शहद के साथ दें ।

७. शूल (पोटदुखी)

सोंठ, सज्जीक्षार (सोडा बायकार्ब) एवं हींग का चूर्ण गरम पानी के साथ दें ।

८. परिणाम शूल

सोंठ, तिल एवं गुड एकत्र कूटकर गाय के दूध में पकाकर दें ।

९. संग्रहणी (dysentry) एवं पेचिश (आंव), प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढना, splenomegaly)

सोंठ के काढे से तैयार किया हुआ देसी घी दें ।

१०. मूलव्याध (Piles)

सोंठ का चूर्ण मठ्ठे के साथ दें ।

११. सर्दी

अदरक अथवा सोंठ, दालचीनी एवं खडी शक्कर के साथ दें ।

१२. खांसी, दमा

अ. अदरक का रस शहद के साथ लें ।

आ. अदरक का रस दुगुनी खडीशक्कर अथवा गुड के साथ दें ।

१३. ज्वर

पुराना ज्वर – सोंठ मठ्ठे के ऊपर के पानी में घिसकर २१ दिन दें ।

१४. सूजन

अ. गुडार्द्रक योग – आधा चम्मच अदरक का रस एवं १/२ चम्मच पुराना गुड पहले दिन । तदुपरांत प्रतिदिन १ चम्मच इस मात्रा में बढाते जाएं । दसवें दिन ५ चम्मच अदरक का रस एवं ५ चम्मच गुड दें । इसप्रकार एक माह दें ।

आ. सोंठ का चूर्ण गुड में पकाकर पुनर्न‍वा के रस में अथवा काढे के साथ दें ।

१५. आमवात

सोंठ ४ भाग + सौंफ १ भाग एकत्र कर गुड के साथ खाएं ।

१६. कमर, जांघें, पीठ, गुदा की हड्डी (coccyx/tail bone) मे

यदि वेदना हो रही हो तो अदरक के रस में अथवा महाळुंगा के रस में देसी घी डालकर दें ।

१७. अर्धशिशी (माईग्रेन)

अदरक का रस नाक में निचोडें ।

१८. अर्धांग वात (लक‍वा, paralysis)

लहसुन एवं सोंठ के चूर्ण से तैयार किया हुआ गाय का देसी घी – १ से २ चम्मच दें ।

१९. श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया)

सोंठ से तैयार दूध – गाय का दूध १४० मि.ली. + पानी २१० मि.ली. + सोंठ ८ ग्राम + शक्कर ८ ग्राम पानी सूखने तक उबालें । सवेरे-शाम २१ दिन लें ।

२०. वीर्यवृद्धि के लिए

सोंठ १० ग्राम २० ग्राम देसी घी में तलें । तदुपरांत उसमें १० ग्राम गुड एवं ५० मि.ली. पानी डालकर, पानी सूखने तक उबालें । सवेरे एवं शाम को दें ।

२१. पेशाब की मात्रा बढने पर

अदरक का रस खडीशक्कर डालकर दो बार दें ।

२२. पेशाब में बारीक पथरी गिरना

सोंठ के काढे में हलदी एवं गुड डालकर पीएं ।

निषेध : ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में, रक्तपित्त एवं पांडुरोग (पीलिया) में न दें ।

(मात्रा : अदरक का रस ५ से १० मि.ली. सोंठ चूर्ण १ से २ ग्राम)

 

२. सात्त्विक तुलसी का वरदान !

तुलसी के पौधे १ से ३ फुट ऊंचे होते हैं । तुलसी के प‌त्ते, जडें एवं बीजों का उपयोग औषधियों में करते हैं ।

गुण

तीखी, कडवी, लघु, रुक्ष, उष्ण, दुर्गंधनाशक, हृदयोत्तेजक । तुलसी के बीज पेशाब की मात्रा बढानेवाले एवं पेशाब की दाह न्यून करनेवाले हैं ।

मात्रा

स्वरस १० से २० मिलीलीटर, बीजों का चूर्ण ३ से ६ ग्राम

उपयोग

विषमज्वर, सर्दी, खांसी, दमा, पार्श्वशूल, उलटी, पीठ में वेदना तुलसी के रोगों पर उप‍युक्त

१. विषमज्वर

काली तुलसी के पत्तों के रस में काली मिर्च पाऊडर डालकर दें । तुलसी के ३ पत्ते गुड में डालकर खाएं अथवा गुड में तुलसी का प‌त्तों का रस डालकर गोली बनाकर दें । तुलसी के ३ पत्ते सोंठ एवं खडी शक्कर के काढे के साथ लें ।

२. वायु (पेट में गैसेस)

काली तुलसी ६ भाग + निर्गुंडी ४ भाग, माका ६ भाग, वायवर्णा १ भाग का चूर्ण ३ ग्राम शहद के साथ लें ।

३. उलटी

तुलसी के रस में मधु (शहद) डालकर सवेरे लें ।

४. उलटी एवं अतिसार (दस्त/जुलाब) , रक्तातिसार (रक्त सहित दस्त/जुलाब)

तुलसी के बीज पीसकर गाय के दूध के साथ लें अथवा तुलसी का रस इलायची का पाउडर डालकर लें ।

५. गैस

तुलसी का रस एवं अदरक का रस, काली मिर्च पाउडर, देसी घी एवं शहद मिलाकर लें ।

६. शीतपित्त

शरीर पर पित्त उछरना : तुलसी का रस शरीर पर मलें ।

७. कान बहना

काली तुलसी का एवं माका का रस एकत्र कर कान में डालें ।

 

३. दिव्य फल – आंवला !

आंवले का पौधा २० से २५ फुट ऊंचा होता है । उसका फल है आंवला ।

गुण

आंवले के सभी गुण हिरडे समान हैं; परंतु आंवला ठंडा है, तो हिरडा उष्ण है । आंवला सर्व रसायनों में श्रेष्ठ है । त्रिदोषशामक है । छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध लोगों तक सर्व धातुओं के लिए बलदायक है । खट्टे पदार्थ सामान्यतः पित्तवर्धक हैं, तब भी आंवला एवं अनार खट्टे होते हुए भी पित्तशामक हैं । आंवला हिरडा की तुलना में रक्तपित्त (रक्तस्राव की प्रवृत्ति), प्रमेह, जननेंद्रियों के लिए बलदायक एवं रसायन गुण में श्रेष्ठ है । आंवला में नमकीन छोडकर शेष सभी रस अर्थात मीठा, खट्टा, तीखा, कडुवा और कसैला, ऐसे सभी रस होते हैं । आंवला, अनार, अंगूर एवं महाळुंग (नीबू वर्गीय वनस्पति पौधा), ये फल सभी फलों में श्रेष्ठ हैं ।

उपयोग

पचन अच्छा होना, केश का आरोग्य, शक्ति देनेवाला

१. ज्वर (बुखार)

आंवला, नागरमोथा एवं गुलवेल का काढा दें ।

२. सर्व ज्वरों पर (बुखारों पर)

आंवला, हिरडा, पिंपळी, चित्रक एवं सैंधव का चूर्ण सभी प्रकार के ज्वरों पर उपयोगी है ।

३. ज्वर में कंठ सूखना एवं अरुचि

आंवला, अगूर एवं शक्कर की चटनी बनाकर मुंह में रखें ।

४. हृद्रोग

अनार के दाने १ भाग, आंवला १ भाग एवं मूग ६ भाग एकत्र कर उनका कढण पीने के लिए दें ।

५. पंडुरोग (पीलिया)

धात्र्यावलेह – आंवला, लोहभस्म, सोंठ, काली मिर्च, पिंपली, हलदी, मधु (शहद) एवं शक्कर का अवलेह बनाएं ।

६. पीलिया

१. आंवले का रस मनुका (काली किशमिश) के साथ लें ।

२. गुलवेल, आंवला एवं मनुका से तैयार किया हुआ देसी घी दें ।

७. त्वचारोग

दाह – आंवला, अंगूर, नारियल एवं शक्कर का शरबत पीएं ।

८. मुंहासे (तारुण्यपिटिका)

सूखा आंवला, लोघ्र अथवा बरगद, पीपल की छाल के काढे से मुंह बारंबार धोएं ।

९. पचन संस्था

मुंह सूखना

१. आंवला, कमल, कुष्ठ, बरगद के अंकुर एवं लाही (लाह्या) का चूर्ण मधु (शहद) के साथ पीसकर उसकी गोली बनाकर मुंह में रखें ।

२. आंवला के रस के साथ चंदन एवं मधु (शहद) दें ।

उलटी

मनुका (काली किशमिश), शक्कर एवं आंवला प्रत्येकी ४० ग्राम लेकर उसकी चटनी बनाएं । उसमें ४० ग्राम शहद एवं ढाई लीटर पानी डालकर ठीक से मिलाएं और छान लें । यह पानी थोडा-थोडा पीने के लिए दें ।

हिचकी

आवले का रस मधु (शहद) एवं पिंपली डालकर दें ।

१०. मूत्रेंद्रिय
११. मूत्रावरोध

पेशाब एकत्र हो जाना – पेट के निचले भाग पर आंवले की चटनी का लेपन करें ।

१२. पेशाब करते समय कष्ट होना (मूत्रकृच्छ)

अ. आंवले का रस मधु (शहद) के साथ लें ।

आ. आंवले का रस गुड के साथ अथवा गन्ने के रस के साथ लें ।

इ. आंवले के रस में इलायची का चूर्ण देें ।

ई. आंवला, अंगूर, विदारीकंद (भूमिकूष्मांड), ज्येष्ठमध एवं गोखरू का काढा शक्कर डालकर पीएं ।

१३. पेशाब से रक्त आना

आंवले का रस मधु (शहद) के साथ लें ।

१४. योनीदाह पर

आंवले का रस शक्कर डालकर पीएं ।

१५. केस एकदम काले करने के लिए

३ आंवले, ३ हिरडे, १ बेहडा, ५ आमों का गुदा एवं २० ग्राम लोहभस्म पीसकर तैयार किया मिश्रण बनाकर रातभर लोहे की कढाई में रखें । उसका लेप लगाने से केश एकदम काले हो जाते हैं ।

१६. स्थूलता

विडंग, सोंठ, जवखार, मण्डूर भस्म, जव एवं आंवलाचूर्ण शहद के साथ चाटें ।

१७. प्रमेह

हलदी, आंवले का रस, शहद का मिश्रण सभी प्रकार के प्रमेहों में उपयोगी है ।

१८. मज्जासंस्था

१. मूर्च्छा : उबले हुए आंवले, मनुका एवं सोंठ एकत्र पीसकर शहद के साथ चाटन बनाएं । (निघंटु रत्नाकर – भाग २)

२. आंवला अथवा हिरडे के काढे से तैयार किया देसी घी का सेवन !

१९. अंधत्व

त्रिफला, शतावरी, कडवा चिचिंडा, मूंग, आंवला एवं जौ (संस्कृत : यव, Barley) का कढण पुराने देसी घी के साथ लें ।

२०. आंखों में जलन, आंखों में वेदना

शतावरी, नागरमोथा, आंवला, कमल बकरी के दूध में डालकर देसी घी तैयार करें और १-१ चम्मच दो बार लें ।

नींद न आती हो तो : सूखा आंवला, सोंठ एवं खडीशक्कर से तैयार की हुई कण्हेरी (कंजी) दें । (अष्टांगहृदय चि. १/२३)

 

४. रसायन

१.  आंवला चूर्ण एवं तिल का चूर्ण समभाग में लेकर देसी घी एवं शहद के साथ दें ।

२. आंवला चूर्ण + अश्वगंधा चूर्ण, देसी घी एवं शहद के साथ दें ।

३.  आंवला चूर्ण २० ग्राम + गोखरू २० ग्राम + गुलवेल सत्त्व १० ग्राम देसी घी शक्कर के साथ लें ।

४. आंवले का रस, मधु (शहद), खडीशक्कर एवं देसी घी, ये द्रव्य एकत्र कर खाएं । इससे बुढापा शीघ्र नहीं आता ।

५. आंवला चूर्ण, असना का नार, तेल, देसी घी, शहद एवं लोहभस्म एकत्र कर, इसके नित्य सेवन करने से चिरकाल यौवन टिकता है ।

६. आंवला काले तिल के साथ खाने से चिरकाल यौवन बना रहता है ।

७. १ हिरडा, २ बेहडा एवं ४ आंवला शहद एवं देसी घी के साथ खाएं । इससे बुुढापा शीघ्र नहीं आता । (चरक चिकित्सा १-९)

८. ज्येष्ठमध, वंशलोचन, पिंपली, मधु (शहद) देसी घी एवं खडीशक्कर के साथ त्रिफला लें । यह रसायन है ।

९. लोहभस्म, सुवर्णभस्म, वेखंड, मधु (शहद), देसी घी, वायडिंग, पिंपली, त्रिफला एवं सैंधव एकत्र कर १ वर्ष सेवन करने पर बलदायक, बुद्धि, स्मृति एवं आयु बढानेवाली होती है । (चरक चिकित्सा १९)

१०. आंवले के चूर्ण को आंवले के रस की भावना दें और वह चूर्ण देसी घी, मधु (शहद) एवं शक्कर के साथ चाटें ।

११. आंवले का चूर्ण एवं सुवर्ण का वर्ख एकत्र घोटकर मधु (शहद) के साथ चाटें । रोगी की गंभीर परिस्थिति होते हुए भी अरिष्ट चिन्ह होने पर भी वह जीता है ।

(मात्रा : आंवले का चूर्ण ३ से ६ ग्राम, आंवले का स्वरस – १० से २० मिलीलीटर.)

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