अनुक्रमणिका
- १. अनिष्ट शक्तियों द्वारा व्यक्ति पर कष्टदायक आवरण लाने पर प्रमुखरूप से सूक्ष्म से क्या ध्यान में आता है ?
- २. आवरण व्यक्ति के सर्व ओर कितनी दूरी तक फैला होता है ?
- ३. व्यक्ति पर आया कष्टदायक आवरण कैसा होता है ?
- ४. प्रथम कुंडलिनीचक्र पर आवरण आना और तदुपरांत कष्ट बढकर शरीर के बाहर भी आवरण आना
- ५. अनिष्ट शक्तियों के कष्टदायक आवरण लाने पर व्यक्ति को होनेवाले कुछ कष्ट और उस आवरण को निकालने की आवश्यकता
- ६. व्यक्ति पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा आवरण लाने पर प्राणशक्तिवहन उपायपद्धतिनुसार आध्यात्मिक उपचार ढूंढते समय कैसा लगता है ?
- ७. अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाया आवरण निकालने संबंधी ध्यान में रखने हेतु सामान्य सूचनाएं
- ८. अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाए आवरण निकालने हेतू आध्यात्मिक उपचार कैसे करें ?
- ९. आध्यात्मिक उपचार (नामजप, मंत्रजप) करने से पूर्व भी स्वयं पर आवरण न होने की निश्चिती करें !
- १०. स्वयं पर अनिष्ट शक्तियां आवरण तो नहीं लाईं ?, यह बीच-बीच में देखना आवश्यक !
अनिष्ट शक्तियां ऊपरी-ऊपर कष्टदायक आवरण ला रही हैं। आध्यात्मिक उपचार करके वह कम करें। आवरण आध्यात्मिक उपचार द्वारा कैसे निकाले यह अवश्य पढें।
अनिष्ट शक्तियों का तीव्र कष्ट होते समय साधकों को प्राणशक्तिवहन उपायपद्धति अनुसार आध्यात्मिक उपचार ढूंढकर देने की मैं सेवा करता हूं । ऐसे भी वह पुन: पुन: साधकों के लिए मुद्रा, न्यास एवं नामजप ढूंढते समय ध्यान में आया कि इन साधकों पर अनिष्ट शक्तियां ऊपरी-ऊपर कष्टदायक आवरण ला रही हैं, इसके साथ ही वे आवरण एक बार आध्यात्मिक उपचार द्वारा निकालने पर रहा है । इस संदर्भ में ध्यान में आए सूत्र आगे दिए हैं ।
१. अनिष्ट शक्तियों द्वारा व्यक्ति पर कष्टदायक आवरण लाने पर प्रमुखरूप से सूक्ष्म से क्या ध्यान में आता है ?
१ अ. आवरण आए हुए व्यक्ति को स्वयं को कैसा लगता है ?
जिस व्यक्ति पर आवरण आया है, उसे स्वयं को सूक्ष्म से शरीर में मुख्यरूप से भारीपन (जडत्व) प्रतीत होता है । यदि संपूर्ण शरीर पर आवरण आया हो, तो ऐसा लगता है कि अपने शरीर के सर्व ओर कुछ तो है और हम किसीप्रकार के कोष में हैं । शरीर के कुछ निर्धारित स्थानों पर आवरण आया हो तो वहां भी कुछ लक्षण प्रतीत होते हैं, उदा. सिर पर आवरण आया हो तो ऐसा लगता है जैसे हमें ऊपर से कोई दबा रहा है, आंखों पर आवरण आया हो तो आंखों पर पट्टी अथवा परदा आए समान प्रतीत होता है, छाती एवं गले पर आवरण आया हो तो ऐसा लगता है मानो श्वास लेने में कोई बाधा निर्माण कर रहा है ।
१ आ. सूक्ष्म समझनेवाले दूसरे व्यक्ति को क्या लगता है ?
सूक्ष्म समझनेवाले व्यक्ति को वह व्यक्ति जिस पर आवरण आया है वह स्पष्ट नहीं दिखाई देता, अपितु धुंधला दिखाई देता है । इसके साथ ही उसके समीप आने पर दाब लगता है, मितली एवं कभी-कभी दुर्गंध भी आती है ।
२. आवरण व्यक्ति के सर्व ओर कितनी दूरी तक फैला होता है ?
अनिष्ट शक्तियों द्वारा व्यक्ति के सर्व ओर लाया हुआ आवरण उसके शरीर से लगभग २ – ३ सें.मी. से लेकर १५ सें.मी. अथवा कभी २ – ३ मीटर. की दूरी तक भी फैला हो सकता है ।
(आवरण की लंबाई कितनी है ?, यह सूक्ष्म समझनेवाले व्यक्ति को उसकी हथेली को हुए आवरण के स्पर्श से ज्ञात हाे सकता है । उसके लिए आवरण आए व्यक्ति के सामने हथेली कर दूर से धीरे-धीरे उसके निकट जाना पडता है । आवरण आए हुए व्यक्ति को भी यदि सूक्ष्म समझ में आता हो और उस पर आवरण ३० – ४० सें.मी. तक हो तो उसे स्वयं की हथेली को दूर से धीरे-धीरे अपने पास लाने पर स्वयं पर आए आवरण की लंबाई ध्यान में आ सकती है ।)
३. व्यक्ति पर आया कष्टदायक आवरण कैसा होता है ?
यह आवरण कभी व्यक्ति के सिर के सर्व ओर गोल किनार समान, कभी उसकी आंखों पर पट्टी बांधे समान, तो कभी उसने कंबल ओढने समान, कभी उसके शरीर के केवल सामने की ओर, कभी उसके शरीर के केवल आधे भाग पर, कभी उसके संपूर्ण शरीर पर, इसके साथ ही कभी हल्का, तो कभी कडा (रबर समान) होता है ।
४. प्रथम कुंडलिनीचक्र पर आवरण आना और तदुपरांत कष्ट बढकर शरीर के बाहर भी आवरण आना
सर्वसाधारण तौर पर अनिष्ट शक्ति प्रथम व्यक्ति के किसी कुंडलिनीचक्र पर आवरण लाती है और फिर वह उसे बढाकर उसके शरीर पर बाहर से भी आवरण लाती है । जब शरीर के किसी भाग पर बाहर से भी आवरण आता है, तब बहुत बार उस स्थान पर विद्यमान कुंडलिनीचक्र पर अथवा उस भाग के निकट के कुंडलिनीचक्र पर (उदा. आंखों पर आवरण आने पर आज्ञाचक्र पर) आवरण आया होता है । कभी-कभी कुंडलिनीचक्र पर आवरण न आकर केवल शरीर पर बाहर से आवरण आता है । जब कुंडलिनीचक्र के स्थान पर आवरण आता है, तब वहां बहुत दाब प्रतीत होता है; परंतु जब शरीर के बाहर से भी आवरण आया हुआ होता है, तब उस व्यक्ति को स्वयं पर आवरण आया है, यह ध्यान में भी नहीं आता । उसे मानसिक कष्ट अवश्य होते रहते हैं ।
५. अनिष्ट शक्तियों के कष्टदायक आवरण लाने पर व्यक्ति को होनेवाले कुछ कष्ट और उस आवरण को निकालने की आवश्यकता
अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाए आवरण के कारण व्यक्ति को कुछ न सूझना, मन अस्वस्थ होना, मन में नकारात्मक विचार आना, निरुत्साह, नामजप करने का मन न होना, उपायों का परिणाम न होना इत्यादि कष्ट होते हैं । कभी-कभी शरीर के किसी भाग में वेदना होना, पित्त होना जैसे कष्ट भी हो सकते हैं ।
व्यक्ति पर कष्टदायक आवरण आया हो, तो वह भले ही कितनी भी देर मुद्रा एवं न्यास कर स्वयं पर आध्यात्मिक उपचार करे, तब भी आवरण के कारण उन उपायों के सात्त्विक स्पंदन उस तक नहीं पहुंचते और इसकारण उसके कष्टों का निवारण नहीं होता ।
६. व्यक्ति पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा आवरण लाने पर प्राणशक्तिवहन उपायपद्धतिनुसार आध्यात्मिक उपचार ढूंढते समय कैसा लगता है ?
६ अ. शरीर पर आवरण आया हो तो क्या लगता है ?
अपने कष्ट पर हम स्वयं आध्यात्मिक उपचार ढूंढ रहे होते हैं तब न्यास करने का स्थान ढूंढने के लिए हाथ की उगंलियां कुंडलिनीचक्रों पर घुमाते हैं, तब शरीर पर अनिष्ट शक्तियाें द्वारा आवरण लाया गया हो, तो अपने हाथ की उंगलियों को वह अनुभव होता है । आवरण हल्का हो तो हाथों की उंगलियां कुंडलिनीचक्रों पर ऊपर-ऊपर सरकती हैं; परंतु उस समय अपने कुंडलिनीचक्रों को उंगलियों से प्रक्षेपित होनेवाली प्राणशक्ति के स्पंदन ध्यान में नहीं आते ।
देह पर हलका आवरण लाकर अनिष्ट शक्ति हमें धोखा देती हैं । वे हमें यह आभास नहीं होने देती कि आवरण है । जब आवरण बहुत गहरा हो जाता है तब अपने हाथों की उंगलियों को कुंडलिनीचक्रों के ऊपर-ऊपर सरकाना कठिन होता है और ध्यान में आता है कि कोई सतह जमी है । कई बार तो आवरणवाले भाग से हाथ की उंगलियां ऊपर ही नहीं सरकतीं । (आवरण के कारण ही नहीं, अपितु कुंडलिनीचक्र के स्थान पर यदि बहुत काली शक्ति एकत्र हो गई है, तब भी हाथों की उंगलियां ऊपर नहीं सरकतीं । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले) इसीलिए हम न्यास करने का स्थान ढूंढ नहीं पाते ।
६ अ १. मायावी आवरण हो, तो क्या प्रतीत होता है और तब क्या करना चाहिए ?
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि स्वयं को कष्ट तो हो रहा होता है; परंतु न्यास करने का स्थान ढूंढने के लिए कुंडलिनीचक्रों पर हाथ की उंगलियां घुमाने पर किसी भी प्रकार की बाधा एवं किसी भी चक्र पर दबाब नहीं प्रतीत होता, इसके साथ ही आवरण भी नहीं ध्यान में आता । तब स्वयं पर मायावी आवरण आने की संभावना है । उस मायावी आवरण को दूर करने के लिए कुंडलिनीचक्रों पर हाथ की उंगलियां घुमाते हैं, उस हाथ की हथेली घुमाने पर उस हथेली से प्रक्षेपित होनेवाले निर्गुण स्पंदनों के कारण मायावी आवरण दूर होकर शरीर पर आवरण प्रकट होता है और तब उन चक्रों पर उंगलियां घुमाते समय आवरण ध्यान में आने लगता है ।
६ आ. कुंडलिनीचक्र पर आवरण हो तो क्या लगता है ?
केवल किसी कुंडलिनीचक्र पर आवरण आया हो, उपाय ढूंढने के लिए उस कुंडलिनीचक्रस्थान पर से हाथ की उंगलियां घुमाते समय अपनी उंगलियों को रुकावट नहीं अनुभव होती; परंतु तब हमें श्वास लेने में कठिनाई होती है अथवा उस स्थान पर वेदना अनुभव होती है ।
७. अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाया आवरण निकालने संबंधी ध्यान में रखने हेतु सामान्य सूचनाएं
७ अ. आवरण निकालना आरंभ करते समय प्रथम उपास्यदेवता से भावपूर्ण प्रार्थना करें !
प्रार्थना – हे … देवता, आपकी कृपा से मुझे अपने शरीर पर से आवरण निकालते आने दें और मुझे हो रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट शीघ्र दूर होने दें, ऐसी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है !
७ आ. आवरण निकालते समय नामजप करें !
आवरण निकालते समय हमें उपास्यदेवता का अथवा श्रीकृष्ण का नामजप करना है । ऐसे करने से भगवान की सहायता मिलने पर आवरण शीघ्र निकलता है, इसके साथ ही अनिष्ट शक्तियों के कष्टों से हमारी रक्षा होने में सहायता भी होती है ।
(अपने कष्टों पर मुद्रा, न्यास एवं नामजप ढूंढकर उपाय करते समय भी जब हम बीच-बीच में आवरण निकालते हैं, तब उस समय उपायों में आया हुआ जप करें ।)
७ इ. आवरण निकालते समय आंखें खुली रखें !
इससे आवरण शीघ्र निकलता है; कारण उस समय अपनी आंखों से प्रक्षेपित हो रहे तेजतत्त्व की आवरण निकालने में सहायता मिलती है ।
७ ई. उपास्यदेवता के प्रति कृतज्ञता
आवरण निकालने के पश्चात उपास्यदेवता के प्रति भावपूर्ण कृतज्ञता व्यक्त करें !
८. अनिष्ट शक्तियों द्वारा लाए आवरण निकालने हेतू आध्यात्मिक उपचार कैसे करें ?
अ. शरीर पर आवरण आया हो तो आगे दिए अनुसार आध्यात्मिक उपचार करें !
८ अ १. अपने हाथों द्वारा अथवा किसी सात्त्विक वस्तु की सहायता से आवरण निकालना !
अ. गर्मी होने पर हम कई बार अपने हाथों से जैसे हवा देते हैं, वैसे अपने दोनों हाथों से अपने शरीर पर से आवरण दूर ढकेलें । हाथों से दूर ढकेलते समय हाथों की उंगलियों से अविरतरूप से प्रक्षेपित हो रही प्राणशक्ति के कारण आवरण दूर होने में सहायता होती हैे ।
आ. शरीर पर आया आवरण मानो अपने हाथों की मुठ्ठी में एकत्र कर, बैठे हुए स्थान पर ही शरीर से दूर फेंकें ।
इ. आवरण दूर करने के लिए सात्त्विक वस्तु, उदा. सनातन प्रभात नियतकालिक, मोरपंखों का गुच्छ, बिना प्रज्वलित सात्त्विक उदबत्ती इत्यादि का भी उपयोग करने के उपरांत आवरण दूर होने का अनुभव कुछ साधकों को भी आया है । इन वस्तुओं से आवरण निकालते समय जैसे हाथों से आवरण शरीर से दूर ढकेलते हैं वैसे अथवा वह वस्तु को शरीर के सर्व ओर घुमाकर भी आवरण निकाल सकते हैं । सात्त्विक वस्तुओं की अच्छी शक्ति के कारण शरीर पर आवरण दूर होने में सहायता होती है ।
८ अ २. शरीर से आवरण निकालते समय आवरण के बाहरी ओर से आरंभ कर शरीर तक आवरण निकालना !
शरीर के आसपास लगभग ४० सें.मी. अंतर तक आवरण आया हो, तो उसे हम स्वयं निकाल सकते हैं; कारण वहां तक हमारा हाथ पहुंच सकता है । उससे अधिक अंतर तक आवरण आया हो तो उसे अच्छी साधनावाले एवं जिसे अनिष्ट शक्तियों का कष्ट नहीं है, ऐसे किसी व्यक्ति से आवरण निकलवाना पडता है । दूसरा व्यक्ति उपलब्ध न हो, तो स्वयं ही आवरण निकालने के लिए उपाय करें । उससे भी आवरण निकाल सकते हैं ।
अपना स्वयं का आवरण निकालते समय पहले हाथ लंबे कर स्वयं पर दूर का आवरण निकालें । तदुपरांत हाथ थोडे शरीर के पास लाकर वहां का आवरण निकालें । तदुपरांत हाथ और निकट लेकर वहां का आवरण निकालें । ऐसा करते-करते शरीर से लगा आवरण निकालें । इस प्रकार आवरण के बाहरी भाग से आरंभ कर शरीरतक का आवरण निकालें । प्रत्येक चरण पर लगभग आधा से एक मिनट आवरण निकालें । दूसरे द्वारा आवरण निकालते समय भी यही पद्धति उपयोग में लाएं ।
८ अ ३. आवरण नीचे से ऊपर तक चरण दर चरण निकालें !
शरीर के केवल किसी भाग पर, उदा. छाती पर आवरण आया हो तो वहां आवरण उपरोक्त अनुसार निकालें; परंतु शरीर के बडे भाग पर, उदा. सिर से छाती तक आवरण आया हो तो नीचे से ऊपर तक चरण दर चरण निकालते जाएं, उदा. पहले २ – ३ मिनट छाती पर से आवरण निकालें । वहां का आवरण निकालते समय ऊपर बताए अनुसार आवरण को बाहर से आरंभ कर शरीर तक के आवरण को निकालने के लिए यह पद्धित उपयोग में लाएं । (ऐसा प्रत्येक चरण पर करें ।) तदुपरांत अपनी कुंडलिनीचक्रों पर हाथ की उंगलियां घुमाकर यह देखें कि अब आवरण कहां तक है । तब छाती पर से आवरण न्यून (कम) होकर गले पर आवरण प्रतीत हो रहा हो, तो वहां के आवरण ऊपर दिए अनुसार निकालें ।
इस प्रकार चरण दर चरण सिर तक का आवरण निकालें । अनिष्ट शक्तियां अधिकांशत: शरीर पर ऊपर से नीचे तक, अर्थात आज्ञाचक्र से आरंभ कर नीचे के कुंडलिनीचक्रों तक आवरण लाती हैं । (कभी उलटा भी होता है ।) जहां से उन्होंने आवरण आरंभ किया होता है, वहां वे गहरा होता और आगे वह हल्का होता जाता है । हल्का आवरण निकालना सरल होता है; इसलिए पहले वह निकालें ।
८ अ ४. स्वयं पर आवरण आया है या नहीं, यह ठीक से समझ में न आने पर सहस्रारचक्र से स्वाधिष्ठानचक्र तक आवरण निकालने की कृति !
स्वयं पर आवरण आया है अथवा नहीं, यह सूत्र ६ अ में दी हुई पद्धति अनुसार ठीक से समझ में न आया हो, तो सहस्रारचक्र से स्वाधिष्ठानचक्र तक के प्रत्येक चक्र पर आवरण निकालने की कृति १० – १५ मिनट करें । तदुपरांत मुद्रा, न्यास एवं नामजप उपाय अथवा अन्य उपाय करें । ऐसा करने से शरीर एवं चक्रों पर थोडा-बहुत यदि आवरण आया हो, तो वह निकल जाने से अगले उपाय परिणामकारक होने में सहायता होती है ।
८ आ. कुंंडलिनीचक्र पर से आवरण निकालने की कृति !
शरीर के बाहर से आया आवरण निकालने के उपरांत उस भाग के कुंंडलिनीचक्र पर (अथवा चक्रों पर) आया आवरण निकालें । प्रथम थोडे समय शरीर के बाहर से आवरण आने पर उसे जैसे निकालते हैं, वैसे उस चक्र पर से आवरण निकालें । इससे उस चक्र पर प्रतीत हो रहा दाब न्यून होकर वह सहने योग्य हो जाता है । तदुपरांत उस चक्र पर उपाय करने के लिए प्राणशक्तिवहन उपायपद्धतिनुसार उपाय ढूंढकर जो मुद्रा, न्यास एवं नामजप आएगा, वह करें । मुद्रा, न्यास एवं नामजप कर उस चक्र पर उपाय करने से वहां विद्यमान आवरण संपूर्णरूप से दूर हो जाता है और हमें हलका लगने लगता है ।
(जब किसी चक्र पर बहुत दाब लगता है, तब वहां आवरण अधिक मात्रा में होने से मुद्रा, न्यास एवं नामजप के उपायों के स्पंदन उस चक्र तक नहीं पहुंच सकते । इसकारण पहले वहां का आवरण कुछ मात्रा में निकालना पडता है । तदुपरांत ढूंढी हुई मुद्रा, न्यास एवं नामजप, इन उपायों से वह आवरण पूर्णरूप से चला जाता है ।)
८ आ १. आज्ञाचक्र एवं अनाहतचक्र पर भारी मात्रा में आवरण हो और श्वास लेने में कष्ट हो रहा हो तो प्रथम आज्ञाचक्र पर से आवरण निकालें !
अनेक बार साधकों के आज्ञाचक्र एवं अनाहतचक्र पर आवरण आया होता है । जब आवरण बहुत मात्रा में होता है, तब कई बार उन साधकों को श्वास लेने में कष्ट होता है । इस संदर्भ में ऐसे ध्यान में आया है कि अनिष्ट शक्तियों के मुख्य आक्रमण का स्थान आज्ञाचक्र होता है और वह वहां स्थान निर्माण कर अनाहतचक्र पर कष्टदायक शक्ति छोडकर श्वास लेने में बाधा लाती हैं । ऐसे समय पर प्रथम अनाहतचक्र पर आवरण निकालने पर उसका कष्ट घटने पर बहुत परिणाम नहीं दिखाई देता; कारण अनिष्ट शक्तियों का स्थान आज्ञाचक्र होता है । इसके विपरीत प्रथम आज्ञाचक्र पर आवरण निकालने पर अनिष्ट शक्तियां के स्थान नष्ट होने लगता है, और वे अनाहतचक्र पर कष्टदायक शक्ति छोडकर उन्हें कष्ट नहीं पहुंचा पाती । इससे अनाहतचक्र पर आवरण अपनेआप दूर होकर वे साधक सहजता से श्वास ले सकते हैं ।
९. आध्यात्मिक उपचार (नामजप, मंत्रजप) करने से पूर्व भी स्वयं पर आवरण न होने की निश्चिती करें !
नामजप-उपाय, मंत्र-उपाय आदि उपाय करने से पूर्व भी स्वयं पर आवरण न होने की निश्चिती करें । आवरण हो तो उसे निकालें और बाद में आध्यात्मिक उपचार करें ।
१०. स्वयं पर अनिष्ट शक्तियां आवरण तो नहीं लाईं ?, यह बीच-बीच में देखना आवश्यक !
कष्ट हाेनेवाले साधकों को एक घंटे में २ – ३ बार देखें कि उन पर आवरण तो नहीं आ गया ? तब उन्हें अपने हाथ की उंगलियां स्वाधिष्ठानचक्र से सहस्रारचक्र तक घुमाएं और पुन: उसे स्वाधिष्ठानचक्र तक लाएं । ऐसा २ – ३ बार करें । इस पूर्ण कृति के लिए १ – २ मिनट ही लगते हैं । जिन्हें कष्ट नहीं है वे साधक दिन भर में बीच-बीच में स्वयं पर आवरण नहीं है न इसकी निश्चिती कर सकते हैं । स्वयं पर यदि आवरण आया हो, तो उसे निकाल सकते हैं ।
– (पू.) डॉ. मुकुल गाडगीळ, गोवा.
अनिष्ट शक्ति : वातावरण में अच्छी और बुरी शक्तियां कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां अच्छे कार्य के लिए मनुष्य की सहायता करती हैं, तो बुरी शक्तियां उन्हें कष्ट देती हैं । पूर्वकाल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों के विघ्न डालने का उल्लेख अनेक कथा वेद-पुराणों में है । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच का प्रतिबंध करने के लिए मंत्र दिए हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में बताए हैं ।