श्रीरामभक्तिमय हनुमानजी के समान ‘गुरुभक्ति’ एवं ‘गुरुसेवा’ ही साधकों के लिए धुन एवं श्वास बने !
‘३०.३.२०२३ को श्रीरामनवमी संपन्न हुई । युगों से जिनके दैवी अवतारत्व का चिन्ह जनमानस में अंकित है, वे अयोध्या के राजा प्रभु श्रीरामचंद्र इस घोर कलियुग में भी श्रीरामनवमी के निमित्त पुनः एक बार प्रत्येक के मन में अंतस्थ विराजमान हो गए हैं । अब श्रीरामभक्त महाबली हनुमानजी का अवतरण होगा । ६.४.२०२३ को हनुमान जयंती है ।
जिनका मंत्र ‘रामभक्ति’ तथा धुन ‘रामसेवा’ ही है, वे हनुमानजी हैं । प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात उनके श्रीचरणकमलों में बैठकर हनुमानजी ने अपने प्राणनाथ प्रभु से आर्तता से आगे दी हुई प्रार्थना की ।
‘रामकथेचे चिंतन गायन । ते रामाचे अमूर्त दर्शन ।
इच्छामात्रे या दासाते रघुकुलदीप दिसावा ।।
एकच वर द्यावा । प्रभो, मज एकच वर द्यावा ।।’
‘प्रभु श्रीराम के दिव्य अवतारी चरित्र का पुनः पुनः स्मरण करने, उसमें निहित श्रीराममय भावार्थ का चिंतन करने एवं रामचरित्र का गायन करने में ही प्रभु श्रीराम के निर्गुण (अमूर्त) रूप का दर्शन करने के समान ही आनंद मिलता है । ‘हे प्रभु, इन प्रयत्नों द्वारा इस दास हनुमान को ‘जब इच्छा हो, तब रघुकुलदीपक प्रभु श्रीराम का दर्शन मिले’, ऐसा वर दीजिए ।’
‘इस कलियुग में अवतरित श्रीरामस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के)अवतारत्व की अनुभूति लेते रहना’ ही ‘गुरुभक्ति’ है तथा उनके अवतारी चरित्र का कीर्तन करना ही ‘गुरुसेवा’ है । ‘गुरुभक्ति’ एवं ‘गुरुसेवा’ ही इस घोर कलियुग से पार पाने के लिए हमें ईश्वर से मिला हुआ सर्वाेत्तम वरदान है ।
साधको, ‘गुरुभक्ति’ और ‘गुरुसेवा’ द्वारा रामावतारी श्री गुरुदेवजी के चैतन्यस्वरूप का दर्शन कर उनके उस चैतन्य का अखंड अनुभव करेंगे !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ