अनुक्रमणिका
सूर्य एवं चंद्र, कालपुरुष के नेत्र समझे जाते हैं । सूर्य एवं चंद्र के भ्रमण के कारण हम कालमापन कर सकते हैं और उसका व्यवहार में उपयोग भी कर सकते हैं । ‘वर्ष, अयन, ऋतु, मास एवं पक्ष’ इन प्राकृतिक कालविभागों की जानकारी इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।
१. वर्ष : वर्षों के प्रचलित २ प्रकार हैं – सौरवर्ष एवं चांद्रवर्ष
१ अ. सौरवर्ष
सूर्य वसंतसंपात बिंदु पर (टिप्पणी) आने से पुन: उस बिंदु पर आने में सूर्य को जो समय लगता है, उसे ‘सौरवर्ष’ कहते हैं । सौरवर्ष की अवधि ३६५.२४ दिन है । सौरवर्ष में महिने एवं ऋतु का मेल रहता है । वर्तमान में उपयोग की जानेवाली ग्रेगोरियन (यूरोपीय) कालगणना सौरवर्षमान का अवलंब करती है; परंतु ग्रेगोरियन वर्ष के आरंभदिन का (१ जनवरी का) कोई खगोलशास्त्रीय आधार नहीं है ।
टिप्पणी – पृथ्वी का सूर्य के सर्व ओर भ्रमण करने का मार्ग (क्रांतिवृत्त) एवं पृथ्वी का अक्ष (विषुववृत्त) एकदूसरे को जहां छेद देते हैं, उन दो बिंदुओं को अनुक्रम से ‘वसंतसंपात’ एवं ‘शरदसंपात’ कहते हैं । वसंतसंपात सौरवर्ष का आरंभबिंदु एवं शरदसंपात मध्यबिंदु है ।
१ आ. चांद्रवर्ष
एक अमावास्या से अगली अमावास्यातक एक चांद्रमास होता है । १२ चांद्रमासों का एक चांद्रवर्ष होता है । चांद्रवर्ष की अवधि ३५४.३६ दिन की है । चांद्रवर्ष में मास एवं ऋतु का मेल नहीं रहता । हिजरी (इस्लामी) कालगणना चांद्रवर्ष का अवलंब करती है ।
भारतीय कालगणना सौरवर्ष एवं चांद्रवर्ष, इन दोनों प्रकारों का समन्वय साधती है । भारतीय कालगणना में वर्ष सौर एवं महिने चांद्र पद्धति के हैं, अर्थात वर्ष का आरंभ वसंत ऋतु में होता है; परंतु दिनांक से नहीं अपितु तिथि से होता है । सौरवर्ष एवं चांद्रवर्षोंमें प्रतिवर्ष ११ से १२ दिनों का अंतर पडता है, इसलिए उनमें मेल रहने के लिए प्रत्येक ३ वर्षों में ‘अधिकमास’ सम्मिलित करने की पद्धति वैदिक काल से चली आ रही है । इसलिए भारतीय कालगणना ‘चांद्र-सौर’ (luni-solar) पद्धति की है ।
२. अयन : अर्थात जाना
वर्ष में ६ माह सूर्य उत्तर दिशा से एवं ६ माह दक्षिण दिशा से भ्रमण करता है । इसे ‘उत्तरायण एवं दक्षिणायन’ कहते हैं । वास्तविक सूर्य स्थिर होने से वह उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में नहीं जाता; परंतु पृथ्वी का अक्ष (विषुववृत्त) ‘२३.५ अंश’ झुका होने से ऐसा लगता है । वर्तमान में प्रतिवर्ष २१ दिसंबर को उत्तरायण एवं २१ जून को दक्षिणायन शुरू होता है । उत्तरायण में दिन बडा होता जाता है एवं दक्षिणायन में रात्र बडी होती जाती है ।
३. ऋतु
सूर्य का उत्तरायण एवं दक्षिणायन भ्रमण के कारण पृथ्वी पर ‘वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत एवं शिशिर’ ये ६ ऋतुएं दिखाई देती हैं । ऐसा होते हुए भी पृथ्वी के सर्व प्रदेशों में सर्व ऋतुएं नहीं दिखाई देतीं, उदा. पृथ्वी के उष्ण-कटीबंधीय प्रदेशों में ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतुएं प्रमुखरूप से दिखाई देती हैं ।
पृथ्वी के उत्तर गोलार्ध में जो ऋतु होगी, उसके विरुद्ध ऋतु दक्षिण गोलार्ध में उस समय होती है, उदा. उत्तर गोलार्ध में जिस समय ग्रीष्म ऋतु (गर्मियां) होती हैं, उस समय दक्षिण गोलार्ध में हेमंत ऋतु (सर्दियां) होती हैं ।
३ अ. व्यावहारिक कार्यों के लिए सौरऋतु एवं धार्मिक कर्मों के लिए चांद्रऋतु का उपयोग होना
सौरवर्ष एवं चांद्रवर्ष के अनुसार ऋतु मानने की पद्धति भिन्न है । सौरवर्षानुसार सूर्य वसंतसंपात बिंदु पर आने के ३० दिन पूर्व वसंत ऋतु का आरंभ होता है (वर्तमान में २१ फरवरी को), तो चांद्रवर्षानुसार चैत्र मास को वसंत ऋतु का आरंभ होता है । व्यावहारिक कार्य सौरऋतु के अनुरूप की जाती है, तो धार्मिक कर्म चांद्रऋतुओं के अनुरूप करने के लिए धर्मशास्त्र कहता है । पृथ्वी के उत्तर गोलार्ध में सौर एवं चांद्र ऋतुओं के आरंभ होने के दिन नीचे की सारणी में दिए हैं ।
ऋतु | आरंभ होने के दिन | |
---|---|---|
सौरवर्ष पद्धति | चांद्रवर्ष पद्धति | |
वसंत | २१ फरवरी | चैत्र शुक्ल १ |
ग्रीष्म | २१ अप्रैल | ज्येष्ठ शुक्ल १ |
वर्षा | २१ जून | श्रावण शुक्ल १ |
शरद | २१ अगस्त | आश्विन शुक्ल १ |
हेमंत | २१ अक्टूबर | मार्गशीर्ष शुक्ल १ |
शिशिर | २१ दिसंबर | माघ शुक्ल १ |
४. मास : सौरमास एवं चांद्रमास, ये २ प्रकार के मास प्रचलित हैं ।
४ अ. सौरमास
आकाश के ३० अंश (१ राशि) भ्रमण करने के लिए सूर्य को जो समय लगता है, उसे ‘सौरमास’ कहते हैं । सौरमास की अवधि लगभग ३०.४३ दिन की होती है । सूर्य ‘वसंतसंपात’ बिन्दू पर आने से (२१ मार्च से) वर्ष के पहले सौरमास का आरंभ होता है । सौरमासों के कारण सूर्य के उत्तरायण-दक्षिणायन भ्रमण एवं ऋतुओं का ज्ञान होता है ।
४ आ. चांद्रमास
सूर्य एवं चंद्र आकाश में एकत्र आने पर अमावास्या होती है । एक अमावास्या से अगली अमावास्या तक एक चांद्रमास होता है । चांद्रमास की अवधि २९.५३ दिन है । १२ चांद्रमासों के नाम अनुक्रम ‘चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ एवं फाल्गुन’ हैं । चांद्रमासों के नाम नक्षत्रों पर पडे हैं । चांद्रमासों के कारण तिथि, नक्षत्र, योग आदि के पर्याय से शुभाशुभ दिनों का ज्ञान होता है । हिन्दू धर्म के सभी त्याेहार, उत्सव, व्रत, देवी-देवताओं की जयंती इत्यादि चांद्रमासानुसार मनाई जाती है ।
५. पक्ष
पक्ष (१५ दिनों की अवधि) केवल चांद्रमास में होती है । अमावास्या से पूर्णिमातक शुक्लपक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्णपक्ष होता है । मुहूर्त की दृष्टि से शुक्लपक्ष शुभ एवं कृष्णपक्ष अशुभ माना गया है ।’
बहुत सरल शब्दों में बहुत सटीक जानकारी