संत तुकाराम महाराज
नलगे द्यावा जीव सहजचि जाणार ।
आहे तो विचार जाणा काही ॥ १ ॥
मरण जो मागे गाढवाचा बाळ ।
बोलिजे चांडाळ शुद्ध त्यासी ॥ २ ॥
तुका म्हणे कई होईल स्वहित ।
निधान जो थीत टाकू पाहे ॥ ३ ॥ – संत तुकाराम महाराज
‘अमूल्य एवं दुर्लभ मनुष्यजन्म का महत्त्व ध्यान में न लेते हुए लोग आजकल छुटपुट कारणवश प्राण त्याग रहे हैं । यह अत्यंत निंदनीय है । उसके समान पाप कर्म नहीं । ब्रह्महत्या को महापातक कहा गया है । इससे लोगों को परावृत्त करने के लिए तुकाराम महाराज कहते हैं, ‘अरे, प्राण क्यों देते हो ? मृत्यु तो निश्चित है, फिर जानबूझकर उसे क्यों गले लगाते हो ? जो मृत्यु मांगता है, उसे गधे का पुत्र कहना चाहिए, अर्थात वह शुद्ध मूर्खता है । उसे ‘शुद्ध चांडाल’ कहना होगा । आत्महत्या करनेवालों की इतनी घोर निंदा संतों ने की है । मरण मांगना कायरता है । वास्तव में सर्व शास्त्र, साधु, संत यही कहते हैं कि अन्य किसी भी योनी की तुलना में मनुष्ययोनी श्रेष्ठ है । इसी मानवी देह में आकर ईश्वरप्राप्ति की ब्रह्मानुभूति ले सकते हैं । श्रेष्ठ कर्मों से अपने साथ ही जगत को भी सुखी कर सकते हैं । इतनी पात्रता मनुष्य देह में होते हुए आत्महत्या कर इस अवसर को क्यों गंवा रहे हो ? जीवन की चुनौतियों से भागे नहीं अपितु समर्थरूप से उसका सामना करें और मृत्यु को ही मार डालें । यही खरा पुरुषार्थ है । कितना सुंदर उपदेश है !’